"भक्तों का बाप, रविश कुमार" #BKBRK वालों पाक-साफ नहीं एनडीटीवी भी, बरखा ने खोली पोल
नई दिल्ली। फेसबुक पर एक ग्रुप है "भक्तों का बाप, रविश कुमार" #BKBRK । वामपंथियों के नए मसीहा कन्हैया कुमार भी अक्सर एनडीटीवी देखने का प्रवचन करते सुनाई पड़ते हैं। समाचार चैनल एनडीटीवी के एंकर रवीश कुमार भी आजकल प्रधानमंत्री को कुछ ज्यादा ही चिट्ठियां लिख रहे हैं। इस बीच एनडीटीवी की पूर्व पत्रकार बरखा दत्त ने चैनल पर अतीत में खबरों को दबाने का आरोप लगाते हुए अपरोक्ष रूप से रवीश कुमार पर भी निशाना साधा है।
फेसबुक पर अपने आधिकारिक पेज पर बरखा दत्त ने एक पोस्ट में कहा है कि देश के पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम का लिया गया उनका इंटरव्यू चैनल ने नहीं चलाया था।
बरखा दत्त ने दावा किया कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर की गयी उनकी रिपोर्ट के लिए भी उन्हें एनडीटीवी में काफी विरोध का सामना करना पड़ा था।
बरखा के अनुसार एनडीटीवी के पूर्व पत्रकार नितिन गोखले द्वारा लिया गया नौसेना प्रमुख का इंटरव्यू भी चैनल ने बाद में हटा दिया था।
ताजा विवाद तब शुरू हुआ जब एनडीटीवी के मैनेजिंग एटिडटर श्रीनिवासन जैन ने ट्विटर और फेसबुक पर अमित शाह के बेटे जय शाह पर की गयी उनकी और मानस प्रताप सिंह की स्टोरी को एनडीटीवी की वेबसाइट से हटाने का आरोप लगाया।
जैन ने अपने पोस्ट में लिखा था कि एनडीटीवी प्रबंधन ने उनसे कहा था कि वो रिपोर्ट “कानूनी जाँच” के लिए हटायी गयी है।
समझा जा रहा है कि बरखा दत्त ने एनडीटीवी के साथ-साथ श्रीनिवासन जैन को भी निशाना बनाया है।
बरखा ने लिखा है कि जब चैनल में रहते हुए उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठायी थी तो बहुत से लोग जो आज बोल रहे हैं वो तब चुप थे।
बता दें बरखा दत्त 20 साल से ज्यादा समय तक एनडीटीवी के साथ रहीं। उन्होंने 1995
श्रीनिवासन जैन ने अपनी पोस्ट में वो कहा था कि वो इस मामले को “दुखद अपवाद” मानकर अभी एनडीटीवी के संग काम जारी रखेंगे। वहीं बरखा ने अपनी पोस्ट कहा है कि ये “शायद ही नई बात” है।
बरखा ने परोक्ष रूप से आरोप लगाया है कि एनडीटीवी में ऐसा होता रहा है। हालांकि बरखा ने अमित शाह के बेटे जय शाह की विवादित रिपोर्ट के बारे में यह कहकर टिप्पणी नहीं कि कि उन्हें इस मामले की जानकारी नहीं है।
बुधवार (18 अक्टूबर) को फेसबुक पर एक लम्बी पोस्ट में बरखा ने लिखा,
“पिछले कुछ दिनों में से मैं एनडीटीवी की अमित शाह की स्टोरी को लेकर चल रही बहस को संशकित लेकिन मनोरंजक तरीके से देख रही हूँ। मैं स्टोरी के बारे में यहाँ बात नहीं करूँगी और न ही मैं इसके सही या गलत होने पर कुछ कहूँगी लेकिन ये जरूर है कि एनडीटीवी में किसी स्टोरी की हत्या कर देना शायद ही नई बात है। और आज जो लोग खुद को नैतिकता के उच्च धरातल पर दिखाना चाह रहे हैं वो तब चुप थे जब हममें से कुछ लोगों ने मैनेजमेंट और मालिक से इस बारे में आपत्ति जतायी थी।”
बरखा ने लिखा,
“इसलिए मेरे एक पूर्व साथी इसी अपवाद बता रहे हैं जबकि ये झूठ है। जिस पूर्व सहकर्मी की बात हो रही है और कुछ दूसरे भी जो आज अभिव्यक्ति की आजादी के पैरोकार बने हुए हैं उन्हें अच्छी तरह पता है कि कई बार एनडीटीवी पर स्टोरियों को चलने नहीं दिया गया या उन्हें हटा दिया गया। ये सारे लोग तब चुप थे या मैनेजमेंट के फैसले का बचाव कर रहे थे।”
बरखा ने दावा किया कि उन्हें एनडीटीवी के अंदर खबरों को दबाने के खिलाफ बोलने के लिए सजा दी गयी। बरका ने दावा किया कि वो बीजेपी और कांग्रेस दोनों से जुड़ी स्टोरियों के लिए मैनेजमेंट से लड़ी थीं।
बरखा दत्त ने लिखा है कि वो बालिग हैं और उन्हें पता है कि दूसरे समाचार संस्थानों में भी खबरें दबाई जाती हैं लेकिन खुद को इतना पाक-साफ कोई नहीं बताता। बरखा ने आरोप लगाया कि जहाँ एक तरफ एनडीटीवी अभिव्यक्ति की आजादी की बात करता है तो दूसरी तरफ वो बीजेपी से मदद भी मांगता है। बरखा ने कहा है कि उन्होंने खबरों को दबाने का विरोध किया और उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ी।
बरखा दत्त ने लिखा है, “और निश्चय ही एनडीटीवी को न तो मैं पीड़ित समझती हूँ और न ही मसीहा। सच ये है कि ये फर्जी उदारवाद है।”