स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का निवास होता है, परन्तु यह भी सही है कि मन अस्वस्थ हो तो शरीर भी स्वस्थ नहीं रह पाता। शरीर अस्वस्थ होता है तो उसका तुरन्त इलाज करवाया जाता है, जाँच पड़ताल होती है, उस पर ध्यान दिया जाता है। दुर्भाग्यवश मानसिक स्वास्थ्य में कुछ गड़बड़ी (Some mental health disturbances) होती है तो आसानी से कोई उसे स्वीकार ही नहीं करता, ना ही उसका इलाज कराया जाता है। स्थिति जब बहुत बिगड़ जाती है तभी मनोचिकित्सक को दिखाया जाता है। आमतौर पर यह छुपाने की पूरी कोशिश होती है कि परिवार का कोई सदस्य मनोचिकित्सा ले रहा है।
शरीर की तरह ही मन को स्वस्थ रखने के लिए संतुलित भोजन और थोड़ा व्यायाम अच्छा होता है। काम, और आराम के बीच, परिवार और कार्यालय के बीच एक संतुलन बना रहे तो अच्छा होगा, परन्तु परिस्थितियाँ सदा अपने वश में नहीं होती, इसलिए तनाव तो जीवन में होते ही हैं। तनाव का असर मन पर होता ही है। अब इससे कैसे जूझना है यह समझना आवश्यक है।
मानसिक समस्याओं को मोटे तौर पर दो श्रेणियों में रख सकते हैं। पहली श्रेणी मे परिस्थितियों के साथ सामंजस्य न स्थापित कर पाने से उत्पन्न तनाव, अत्यधिक क्रोध, तीव्र भय अथवा संबन्धों में आई दरारों से पैदा समस्याएं आती हैं। दूसरी श्रेणी में मनोरोग आते हैं, इनका कारण शारीरिक भी हो सकता है और परिस्थितियों का सही तरीके से सामना न कर पाने से भी हो सकता है। इन दोनों श्रेणियों को एक अस्पष्ट सी रेखा ही अलग
अस्वस्थ मानसिकता की पहचान भी साधारण व्यक्ति के लिए कुछ कठिन होती है। किसी का मानसिक असंतुलन इतनी आसानी से नहीं पहचाना जा सकता। प्रत्येक व्यक्ति अपने में अलग-अलग विशेषतायें लिये होता है। कोई बहुत सलीके से रहता है तो कोई एकदम फक्कड़। कोई भावुक होता है तो कोई यथार्थवादी। कोई रोमांटिक होता है कोई शुष्क। व्यक्ति के ये गुण दोष उसकी पहचान होते हैं। यदि व्यक्ति के ये गुण दोष एक ही दिशा मे झुकते जायें तो व्यावहारिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इन्हें मनोरोग (psychopathy) नहीं कहा जा सकता परन्तु इनका उपचार कराना भी आवश्यक है, इन्हें अनदेखा नहीं करना चाहिये।
अस्वस्थ मानसिकता के उपचार के लिए दो प्रकार के विशेषज्ञ होते हैं। क्लिनिकल साइकोलोजिस्ट (Clinical psychologist) और साइकेट्रिस्ट (Psychiatrist)।
Clinical psychologist (नैदानिक मनोवैज्ञानिक) मनोविज्ञान के क्षेत्र से आते हैं, ये काउंसिलिंग और साइकोथेरेपी (Psychotherapy) में माहिर होते हैं। ये चेतन, अवचेतन और अचेतन मन से व्याधि का कारण ढूँढकर व्यावहारिक परिवर्तन करने की सलाह देते हैं।
साइकेट्रिस्ट इन हिंदी | Psychiatrist in Hindi
दूसरी ओर सयकैट्रिस्ट चिकित्सा के क्षेत्र से आते हैं, ये मनोरोगों का उपचार दवाइयाँ देकर करते हैं। मनोरोगियों को दवा के साथ काउंसिलिंग और सायकोथेरेपी की भी आवश्यकता होती है, कभी ये ख़ुद करते हैं, कभी मनोवैज्ञानिक के पास भेजते हैं।
क्लिनिकल सयकौलौजिस्ट को यदि लगता है कि पीड़ित व्यक्ति को दवा देने की आवश्यकता है तो वे उसे मनोचिकित्सक के पास भेजते हैं। मनोवैज्ञानिक दवाई नहीं दे सकते। अत: ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, प्रतिद्वन्दी नहीं।
आमतौर से मनोवैज्ञानिक सामान्य कुंठाओं, भय, अनिन्द्रा, क्रोध और तनाव आदि का उपचार करते हैं और मनोचिकित्क मनोरोगों का। अधिकतर दोनों प्रकार के विशेषज्ञों को मिलकर इलाज करना पड़ता है।
यदि रोगी को कोई दवा दी जाय तो उसे सही मात्रा में जब तक लेने को कहा जाय लेना ज़रूरी है। कभी दवा जल्दी बंद की जा सकती है, कभी लम्बे समय तक लेनी पड़ सकती है। कुछ मनोरोगों के लिए आजीवन दवा भी लेनी पड़ सकती है, जैसे कुछ शारीरिक रोगों के लिए दवा लेना ज़रूरी है, उसी तरह मानसिक रोगों के लिए भी ज़रूरी है। दवाई लेने या छोड़ने का निर्णय चिकित्सक का ही होना चाहिये।
कभी कभी रिश्तो में दरार आ जाती हैं, जिनके कारण अनेक हो सकते हैं। आजकल विवाह से पहले भी मैरिज काउंसलिंग होने लगी है। शादी से पहले की रोमानी दुनियाँ वास्तविकता में बहुत अन्तर होता है। एक दूसरे से अधिक अपेक्षा करने की वजह से शादी के बाद जो तनाव अक्सर होते हैं, उनसे बचने के लिए ये अच्छा क़दम है। पति-पत्नी के बीच थोड़ी बहुत अनबन स्वाभाविक है, परन्तु रोज़-रोज़ कलह होने लगे, दोनों पक्ष एक दूसरे को दोषी ठहराते रहें तो घर का पूरा माहौल बिगड़ जाता है। ऐसे मे मैरिज काउंसलर जो कि मनोवैज्ञानिक ही होते है, पति पत्नी दोनों की एक साथ और अलग-अलग काउंसिलिंग करके कुछ व्यावहारिक सुझाव देकर उनकी शादी को बचा सकते हैं। वैवाहिक जीवन की मधुरता लौट सकती है। अगर पति पत्नी काउंसलिंग के बाद भी एक साथ जीवन नहीं बिताने को तैयार हों तो उन्हें तलाक के बाद पुनर्वास में भी मनोवैज्ञानिक मदद कर सकते हैं।
जीवन की कुँठाओं, क्रोध को कोई सकारात्मक दिशा दे सकते हैं। कभी कभी टूटे हुए रिश्ते व्यक्ति की सोच को कड़वा और नकारात्मक कर देते हैं। कोई शराब मे स्वयं को डुबो देता है। अत: समय पर विशेषज्ञ की सलाह लेने से जीवन में बिखराव नहीं आता।
कुछ लोगों को शराब या ड्रग्स की लत लग जाती है, कारण चाहें जो भी हों उन्हें मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक की मदद व परिवार के सहयोग की आवश्यकता होती है। इलाज के बाद समाज में उनका पुनर्वास हो सकता है। दोबारा व्यक्ति उन आदतों की तरफ़ न मुड़े, इसके लिये भी विशेषज्ञ परिवार के सदस्यों को व्यावाहरिक सुझाव दते हैं।
Psychological problems of children and adolescents
बच्चों और किशोरों की भी बहुत सी मनोवैज्ञानिक समस्याएं होती हैं, जिन्हें लेकर उनके और माता पिता के बीच टकराव हो जाता है। यदि समस्या गंभीर होने लगे तो मनोवैज्ञानिक से सलाह (Psychologist advice) लेनी चाहिये। हर बच्चे का व्यक्तित्व एक दूसरे से अलग होता है, उनकी बुद्धि क्षमतायें और रुचियाँ भी अलग होती हैं। अत: एक दूसरे से उनकी तुलना करना या अपेक्षा रखना भी उचित नहीं है। पढ़ाई में या व्यवहार में कोई विशेष समस्या आये तो उस पर ध्यान देना चाहिये। यदि आरंभिक वर्षों में लगे कि बच्चा आवश्यकता से अधिक चंचल है, एक जगह एक मिनट भी नहीं बैठ सकता, किसी चीज़ में भी ध्यान नहीं लगा पाता और पढ़ाई में भी पिछड़ रहा है तो मनोवैज्ञनिक से परामर्ष करें, हो सकता है कि बच्चे को अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (Attention deficit hyperactivity disorder-ADHD) हो। इसके लिये मनवैज्ञानिक जाँच होती है। उपचार भी संभव है। यदि बच्चे को बात करने में दिक्कत होती है, वह आँख मिला कर बात नहीं कर सकता आत्मविश्वास की कमी हो, पढ़ाई में बहुत पिछड़ रहा हो तो केवल यह न सोच लें कि वह शर्मीला है। एक बार मनोवैज्ञानिक से जाँच अवश्य करायें। ये लक्षण औटिम के भी हो सकते है। इसका कोई निश्चित उपचार तो नहीं है, परन्तु उचित प्रशिक्षण से नतीजा अच्छा होता है।
डिस्लेक्सिया (dyslexia disorder) में बच्चे को लिखने, पढ़ने में कठिनाई होती है, उसकी बुद्धि का स्तर अच्छा होता है। इन्हें अक्षर और अंक अक्सर उल्टे दिखाई देते हैं। अगर ऐसे कुछ लक्षण बच्चे में दिखें तो जाँच करवाये। इन बच्चों को भी उचित प्रशिक्षण से लाभ होता है। बच्चों में यदि कोई असमान्य लक्षण दिखें तो उन्हें अनदेखा न करें।
क्रोध सभी को आता है, यह सामान्य सी चीज़ है। कभी-कभी किसी का क्रोध किसी और पर निकलता है, अगर क्रोध आदत बन जाये व्यक्ति तोड़-फोड़ करने लगे या आक्रामक हो जाये तो ये सामान्य क्रोध नहीं होगा। जो व्यक्ति किसी मानसिक व्यधि से पीड़ित होता है, वह अक्सर अपनी परेशानी नहीं स्वीकारता। उसे एक डर लगा रहता है कि उसे कोई विक्षिप्त या पागल न समझ ले। उसे और परिवार को समझना चाहिये कि ये धारणा निर्मूल है, फिर भी यदि पीड़ित व्यक्ति ख़ुद मनोवैज्ञानिक के पास जाने को तैयार न हो तो परिवार के अन्य सदस्य उनसे मिलें, विशेषज्ञ कुछ व्यावहारिक सुझाव दे सकते हैं। यदि मनोवैज्ञानिक को लगे कि दवा देने की आवश्यकता है, तो रोगी को मनोचिकित्सक के पास ले जाने के लिए तैयार करना ही पड़ेगा।
मनोवैज्ञानिक असामान्य क्रोध का कारण जानने की कोशिश करते हैं। वे क्रोध को दबाने की सलाह नहीं देते, उस पर नियंत्रण रखना सिखाते हैं। व्यक्ति की इस शक्ति को रचनत्मक कार्यों में लगाने का प्रयास करते हैं। क्रोधी व्यक्ति यदि बिलकुल बेकाबू हो जाय तो दवाई देने की आवश्यकता हो सकती है।
जीवन में बहुत से क्षण निराशा या हताशा के आते हैं, कभी किसी बड़ी क्षति के कारण और कभी किसी मामूली सी बात पर अवसाद छा जाता है। कुछ दिनों मे सब सामान्य हो जाता है। यदि यह निराशा और हताशा अधिक दिनों तक रहे, व्यक्ति की कार्य क्षमता घटे, वह बात-बात पर रोने लगे तो यह अवसाद या डिप्रेशन के लक्षण (Symptoms of depression or depression) हो सकते हैं।
डिप्रैशन में व्यक्ति अक्सर चुप्पी साध लता है, नींद भी कम हो जाती है, भोजन या तो बहुत कम करता है या बहुत ज्यादा खाने लगता है। कभी-कभी इस स्थिति में यथार्थ से कटने लगता है। छोटी-छोटी परेशानियाँ बहुत बड़ी दिखाई देने लगती हैं। आत्महत्या के विचार आते हैं, कोशिश भी कर सकता है।
डिप्रैशन के लक्षण दिखने पर व्यक्ति का इलाज तुरन्त कराना चाहिये। मामूली डिप्रैशन मनोवैज्ञानिक उपचार से भी ठीक हो सकता है, दवाई की भी ज़रूरत पड़ सकती है।
क्या है उन्माद | Manic depressive disorder or bipolar disorder
एक और स्थिति में कभी अवसाद के लक्षण होते हैं कभी उन्माद के। उन्माद की स्थिति अवसाद के विपरीत होती है। बहुत ज्यादा और बेवजह बात करना उन्माद का प्रमुख लक्षण (Major symptoms of mania) होता है। व्यक्ति कभी अवसाद कभी उन्माद से पीड़त रहता है। इस मनोरोग का इलाज पूर्णत: हो जाता है। इस रोग को मैनिक डिप्रैसिव डिसआर्डर या बायपोलर डिसआर्डर कहते हैं।
फोबिया क्या है What is phobia in Hindi
भय या डर एक सामान्य अनुभव है, अगर ये डर बहुत बढ़ जायें तो इन असामान्य डरों को फोबिया कहा जाता है। फोबिया ऊँचाई, गहराई, अंधेरे, पानी या किसी और चीज़ से भी हो सकता है। इसकी जड़ें किसी पुराने हादसे से जुड़ी हो सकती हैं, जिन्हें व्यक्ति भूल भी चुका हो। उस हादसे का कोई अंश अवचेतन मन में बैठा रह जाता है। फोबिया का उपचार (Treatment of phobias) सायकोथैरेपी से किया जा सकता है। डर का सामना करने के लिए व्यक्ति तैयार हो जाता है।
कभी-कभी जो होता नहीं है वह सुनाई देता है या दिखाई देता है। ये भ्रम नहीं होता मनोरोग होता है जिसका इलाज मनोचिकित्सक कर सकते हैं। इसके लिये झाड़ फूंक जैसी चीज़ों में समय, शक्ति और धन ख़र्च करना बिलकुल बेकार है।
Obsessive compulsive disorder in hindi
एक रोग होता है, ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर, इसमे व्यक्ति एक ही काम को बार-बार करता है, फिर भी उसे तसल्ली नहीं होती। स्वच्छता के प्रति इतना सचेत रहेगा कि दस बार हाथ धोकर भी वहम रहेगा कि अभी उसके हाथ गंदे हैं। कोई भी काम जैसे ताला बन्द है कि नहीं, गैस बन्द है कि नहीं, दस बीस बार देखकर भी चैन ही नहीं पड़ता। कभी कोई विचार पीछा नहीं छोड़ता। विद्यार्थी एक ही पाठ दोहराते रह जाते हैं, आगे बढ़ ही नहीं पाते, परीक्षा में भी लिखा हुआ बार- बार पढ़ते हैं, अक्सर पूरा प्रश्नपत्र हल नहीं कर पाते। इस रोग मे डिप्रैशन के भी लक्षण होते हैं। रोगी की कार्य क्षमता घटती जाती है। इसका उपचार दवाइयों और व्यावहारिक चिकित्सा से मनोचिकित्सक करते हैं। अधिकतर यह पूरी तरह ठीक हो जाता है।
एक स्थिति ऐसी होती है जिसमें व्यक्ति तरह-तरह के शकों से घिरा रहता है। ये शक काल्पनिक होते हैं, इन्हें बढ़ा-चढ़ा कर सोचने आदत पड़ जाती है। सारा ध्यान जासूसी में लगा रहेगा तो कार्य क्षमता तो घटेगी ही। ये लोग अपने साथी पर शक करते रहते हैं, कि उसका किसी और से संबध है। इस प्रकार के पैरानौइड व्यवहार से घर का माहौल बिगड़ता है। कभी व्यक्ति को लगेगा कि कोई उसकी हत्या करना चाहता है, या उसकी सम्पत्ति हड़पना चाहता है। यदि घर के लोग आश्वस्त हों कि ये शक बेबुनियाद हैं, तो उसे विशेषज्ञ को ज़रूर दिखायें।
Fast facts on hypochondria
कभी शारीरिक बीमारियों के कारण डिप्रैशन हो जाता है। कभी उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर सोचने और उनकी चिन्ता करते रहने की आदत पड़ जाती है,' ज़रा सा सर मे दर्द हुआ कि लगेगा दिमाग़ मे टयूमर है। इसको हायपोकौंड्रिया कहते हैं। इसका भी इलाज मनोवैज्ञानिक से कराना चाहिये।
Anorexia nervosa in hindi
कुछ मनोरोग भोजन की आदतों से जुड़े होते हैं। बहुत से पतला होने के बावजूद भी अपना वज़न कम रखने की चिन्ता मे घुले रहते हैं। ऐनोरेक्सिया नर्वोसा में व्यक्ति खाना बेहद कम कर देता है, उसे भूख लगनी ही बन्द हो जाती है। बार बार अपना वज़न लेता है। डिप्रैशन के लक्षण भी होते है। बुलीमिया नरसोवा में भी पतला बने रहने की चिन्ता मनो विकार का रूप ले लती है। खाने के बाद अप्राकृतिक तरीकों से ये लोग उल्टी और दस्त करते हैं। ये मनोरोग कुपोषण की वजह से अन्य रोगों का कारण भी बनते हैं अत: इनका इलाज कराना बहुत ज़ूरूरी है, अन्यथा ये घातक हो सकते हैं।
बेहद कम खाना अनुचित है तो बेहद खाना भी ठीक नहीं है, कुछ लोग केवल खाने में सुख ढूंढते हैं। वज़न बढ़ जाता है, इसके लिए मनोवैज्ञानिक कुछ उपचारों का सुझाव देते हैं। अनिन्द्रा, टूटी टूटी नींद आना या बहुत नींद आना भी अनदेखा नहीं करना चाहिये। ये लक्षण किसी मनोरोग का संकेत हो सकते हैं।
बेचैनी, घबराहट यदि हद से ज्यादा हो चाहें किसी कारण से हो या अकारण ही उसका इलाज करवाना आवश्यक है। इसके साथ डिप्रैशन भी अक्सर होता है।
कभी-कभी व्यक्ति को हर चीज़ काली या सफ़ेद लगती है, या तो वह किसी को बेहद पसन्द करता है या घृणा करता है। कोई-कोई सिर्फ़ अपने से प्यार करता है, वह अक्सर स्वार्थी हो जाता है। ये दोष यदि बहुत बढ़ जायें तो इनका भी उपचार मनोवैज्ञानिक से कराना चाहिये, नहीं तो ये मनोरोगों का रूप ले सकते हैं।
एक समग्र और संतुलित व्यक्तित्व के विकास में भी मनैज्ञानिक मदद कर सकते हैं। भावुकता व्यक्तित्व का गुण भी है और दोष भी, किसी कला मे निखार लाने के लिए भावुक होना जरूरी है, परन्तु वही व्यक्ति अपने दफ्तर में बैठकर बात बात पर भावुक होने लगे तो ये ठीक नहीं होगा। इसी तरह आत्मविश्वस होना अच्छा पर है परन्तु अति आत्म विश्वास होने से कठिनाइयाँ हो जाती हैं।
मनोविज्ञान व्यवहार का विज्ञान है, यदि स्वयं आपको या आपके प्रियजनों को कभी व्यावहारिक समस्या मालूम पढ़े तो अविलम्ब विशेषज्ञ से सलाह लें। जीवन में मधुरता लौट आयेगी।
बीनू भटनागर
(देशबन्धु से साभार)