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भारत जोड़ो यात्रा के एक महीने पूरे होने पर एक भारत यात्री के विचार

राहुल गांधी के नेतृत्व में चल रही भारत जोड़ो यात्रा का आज एक महीना पूरा हो गया. 7 सितंबर को तमिलनाडु के कन्याकुमारी से चल कर केरल होते हुए कर्नाटक के मंड्या ज़िले तक क़रीब साढ़े 6 सौ किलोमीटर की दूरी पैदल तय हो चुकी है. इन तीस दिनों में कई लाख लोग हमारे सहयात्री बने. हज़ारों लोगों से हाथ मिले. कई सौ लोग गले लगे और पास और दूर छतों पर खड़े महिलाओं, पुरुषों और बच्चों से नज़रें मिलीं. हमने उनकी बातें सुनीं, कुछ अपनी सुनाई. उनकी भाषा में अभिवादन किया, देश और समाज को जोड़ने वाले नारे लगाए. हमारी भाषा, खान-पान सब अलग लेकिन एक साझी चिंता हमें जोड़े रही कि देश को किसी भी स्तर पर खंडित नहीं होने देना है. 

कर्नाटक से चुनौती का आभास

हालांकि, कर्नाटक से यह अंदाज़ा लगने लगा है कि विभाजनकारी शक्तियों ने निचले स्तर तक ताने-बाने को नुकसान पहुँचा दिया है और इसे ठीक कर पाना एक कठिन चुनौती होगी.

यह भी समझ में आया कि कर्नाटक केरल और तमिलनाडु के मुकाबले अलग मिजाज़ रखता है. केरल जहाँ अंदर से व्यवस्थित, अनुशासित और राजनीतिक तौर पर बहुत परिपक्व है जिसकी वजह उसका बाहर की दुनिया से हज़ारों साल पुराना आवाजाही का रिश्ता और ईसाई मिशनरियों द्वारा किया गया स्वास्थ्य और चेरिटी का काम रहा है. जिससे यह समाज प्रगतिशील और समावेशी बना. राजनीति वाम और मध्यमार्गी दलों के बीच रही. वामपंथी दलों और उसमें भी नंबूदरीपाद जैसे गांधीवादी नेता के गांव केंद्रित विकास का नज़रिया आपको राह चलते दिख जायेगा, जो छोटे कुटीर उद्दोगों पर आधारित था. यहाँ हमारे स्वागत में खड़े लोगों में दर्जनों जगह

गांधी का रूप धरे बच्चे, बूढ़े और जवान दिखे जो आश्चर्यचकित करने वाला था.  यहाँ पूर्व प्रधानमन्त्री चंद्रशेखर द्वारा 1984 में किये गए कन्याकुमारी से दिल्ली तक की पद यात्रा की सहयात्री रोजलिन जी से मिलना एक उपलब्धि रही.

roslin ji with shahnawaz al
चंद्रशेखर जी की गयी पदयात्रा में शामिल रहीं रोज़लिन जी भारत यात्री शाहनवाज़ आलम के साथ. रोज़लिन जी पूर्व प्रधान मंत्री श्री चंद्रशेखर जी द्वारा कन्याकुमारी से दिल्ली तक की 1983 में की गयी पदयात्रा में शामिल रही थीं।

आप कह सकते हैं कि केरल गांधी के विचारों से सबसे ज़्यादा प्रभावित राज्य रहा है. आप केरल से आश्वस्त हो सकते हैं.

वहीं तमिलनाडु अपनी सांस्कृतिक पहचान को लेकर ज़्यादा सजग और चौकन्ना दिखा. वैसे भी तमिल दक्षिण के भाषाओं में सबसे पुरानी और साहित्यिक तौर पर समृद्ध रही है. स्थानीय लोगों से बातचीत में उनमें यह भावना भी बढ़ती दिखी कि वो दिल्ली को सबसे ज़्यादा टैक्स देते हैं, लेकिन बदले में उन पर सबसे कम खर्च किया जाता है. भाजपा के केंद्र में आने और उसके मनुवादी वैचारिकी के कारण यह भावना बढ़ी है.

फिल्मों को जीने वाला यह प्रदेश इस बात को भी बार-बार बताता रहा कि अब वो बॉलीवुड से ज़्यादा मजबूत है. शायद यह कहीं न कहीं इसी सजगता का विस्तार हो. इसके साथ ही एक नई परिघटना भी दिखी कि लोग कांग्रेस को उत्तर भारतीय मानसिकता वाली हिंदुत्ववादी पार्टी भाजपा से लड़ने के लिए ज़रूरी मान रहे हैं. आज़ादी के बाद दो दशकों तक तमिलनाडु में कांग्रेस पर ऐसे ही आरोप लगा कर द्रविड राजनीति को खड़ा किया गया था. आज हिंदुत्व से लड़ सकने के सवाल पर द्रविड़ राजनीति से उनका मोहभंग और कांग्रेस की तरफ़ रुझान बहुत बड़े बदलाव को दिखाता है.

एक और बात जो कई लोगों ने कही, वो थी सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच दक्षिण भारत में बनाये जाने की माँग. इस पर सरकार को विचार करना चाहिए.

हिंदी और तमिल को जोड़ने वाली कड़ी हैं एआर रहमान

यह कहना बेहद ज़रूरी है कि एआर रहमान हिंदी और तमिल लोगों को जोड़ने वाली कड़ी हैं.

shahnawaz with rahul gandhi
shahnawaz with rahul gandhi

कई जगहों पर संगीत के कार्यक्रम आयोजित किये गए थे और वहाँ हमें दिल से, रोज़ा, बॉम्बे या इलैराजा का अंजली-अंजली धुन हमें एहसास कराता रहा कि बोल चाहे अलग हों हमारी धुन एक है. 

यूपी बिहार के साथियों को कर्नाटक से कुछ-कुछ अपनापन दिखने लगा. लोगों की भीड़, सुरती, गुटका का मास कल्चर दिखने लगा. लेकिन जो उत्तर भारत को इससे अलग करता है वो है कन्नड़ फिल्मों का समाज पर गहरा असर है. हर बस पर किसी न किसी फिल्म का प्रचार. पुनीत राजकुमार, जिनकी मृत्यु कुछ महीनों पहले ही हुई थी, उनकी जगह-जगह सड़कों और दुकानों में तस्वीरें दिख जाती हैं. लेकिन पोस्टर देखकर कहा जा सकता है कि तमिल और कन्नड से ज़्यादा गंभीर मलयाली फिल्म युद्योग है. 

इस महान देश की इस पदयात्रा का केंद्रीय धुरी महात्मा गांधी बने हुए हैं. आपको बार-बार यह एहसास होगा कि भाषा, जाति, नस्ल, खान-पान की विविधता से भरपूर इन हज़ारों उपदेशों और उप राष्ट्रयिताओ वाले लोगों को गांधी और उनके साथियों ने जोड़ने के लिए कितनी यात्राएँ की होंगी. आपको इसके बरअक्स आडवाणी की यात्रा भी याद आयेगी और यह सवाल भी मन में उठता रहेगा कि अगर ऐसी ही कोई यात्रा 1991 में हुई होती तो हमारा वर्तमान कैसा होता?

यह "भारत जोड़ो यात्रा" भारत को भारत से मिलाने, जोड़ने और इस जुड़ाव के केंद्रीय तत्वों को फिर से पुनर्जीवित करने की यात्रा है. यह तत्व गांधी के मूल्य हैं. जो आदमी को साहसी और निडर बनाते हैं.

दुनिया का सबसे साहसी व्यक्ति वही है जो समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व में यकीन रखता हो, जो सबकी समानता में यकीन रखेगा वो किसी भी व्यक्ति के खिलाफ़ हिंसा नहीं करेगा. क्योंकि दूसरों के खिलाफ़ की गयी हिंसा खुद उसके खिलाफ़ होगी. और चूंकि वो जय जगत का नारा लगाता है इसलिए उसकी ताक़त का स्रोत हर मनुष्य होगा. इसलिए वो दुनिया का सबसे ताक़तवर आदमी होगा.

यह समझने की ज़रूरत है कि गांधी की लड़ाई अंग्रेज़ों को हराने की नहीं थी. वो उन्हें भी इन मूल्यों को मानने के लिए तैयार करने के लिए थी. इसीलिए उनमें कभी भी अंग्रेज़ों के प्रति द्वेष नहीं दिखता. ईसा, मोहमद, शंकर, बुद्ध, नानक इसीलिए दुनिया के सबसे साहसी और ताक़तवर लोग थे.

राहुल गांधी मंचों से और व्यक्तिगत बातचीत में यही संदेश दे रहे हैं कि लोगों को निडर बनना होगा, उन्हें गांधी के रास्ते पर लौटना होगा. आप देखियेगा, भविष्य में हमारे पड़ोस और दूसरे देशों में निरंकुश सरकारों के खिलाफ़ लोग इस यात्रा से प्रेरित होकर ऐसे ही पदयात्राओं पर निकलेंगे. 

शाहनवाज़ आलम

(लेखक उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक कांग्रेस के चेयरमैन हैं. वह भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हैं. यह उनके निजी विचार हैं)

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