आपने अक्सर देखा होगा कि कभी पैरों या टाँगों में त्वचा के ऊपर मकड़ी के आकार की नीले रंग की उभरी हुई नसें दिखाई देती हैं। कभी यह पैरों या टाँगों की अपेक्षा जाँघों पर ज्यादा दिखाई देती हैं या फिर टखने के पास। कभी ये नीली नसें पैरों या टाँगों पर काफी बड़े आकार में हो जाती हैं।
कभी आपने गौर किया होगा आपके परिवार के सदस्यों की बाँह पर नीली नसें ज्यादा मात्रा में उभरी हुई होंगी और साथ ही साथ हाथ में सूजन भी आती होगी।
कभी आपने कुछ लोगों में विशेषत: छाती के ऊपरी हिस्से में और गर्दन के निचले हिस्से पर उभरी हुई नीली नसों का जमाव देखा होगा।
कुछ लोगों में उभरी हुई केंचुएनुमा बड़े आकार की नसें पेट के एक तरफ हिस्से पर या दोनों तरफ देखी होंगी।
ये गुच्छेनुमा उभरी हुई नीली नसों का जमाव चाहे छाती या गर्दन पर हो, चाहे बाँह या पेट पर हो, चाहे जाँघों या फिर पैरों या टाँगों पर हों, उसको सामान्य न समझकर गंभीरता से लें अन्यथा लापरवाही के कारण इसके परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
ये असामान्य तरीके से त्वचा पर दिखने वाली उभरी हुई नीली नसें शरीर के अन्दर पनप रहे विभिन्न रोगों की ओर इशारा करती हैं। अत: शरीर के किसी भी अंग पर उभरी हुई नीली नसों को गंभीरता से लें और तुरंत किसी वैस्क्युलर सर्जन से परामर्श लें।
ये उभरी हुई नीली नसें शरीर के ऊपरी सतह पर स्थित शिराओं यानि वेन्स का जाल है, जो सामान्य परिस्थितियों में त्वचा पर ज्यादा उभार नहीं लेती हैं और शरीर के अन्दर स्थित मोटी मोटी शिराओं वाले सिस्टम से जुड़ी रहती हैं।
ऊपरी सतह में स्थित शिराओं का जाल ऊपरी सतह से अशुद्ध खून को इकट्ठा कर शरीर की गहराई में स्थित बड़ी शिराओं के सिस्टम में पहुँचाता है, जहाँ से सारा अशुद्ध खून इकट्ठा होकर दिल से होते हुए फेफड़े में शुद्धीकरण के लिए पहुँचता है। अगर किसी वजह से शरीर के अन्दर गहराई में स्थित मोटी शिराओं के सिस्टम में रूकावट आ जाती है तो ये बाहरी सतह से आने वाले खून को स्वीकार नहीं कर पाता है जिससे अशुद्ध खून बजाय अन्दर जाने के खाल के अंदरूनी सतह में समाहित रहता है, जिससे खाल के नीचे स्थित शिराओं के सिस्टम में अशुद्ध खून की मात्रा ज्यादा होने से ये नीली नसें खाल के ऊपर उभर कर बड़ी मात्रा में दिखाई देने लगती हैं।
आपकी बाँह या हाथ में उभरी हुई नसों का कारण
अगर आपके शरीर में बाँह या हाथ पर उभरी हुई नीली नसें अचानक दिखने लगी हों और बराबर बनी हुई हों तो इसका कारण हाथों से अशुद्ध खून इकट्ठा करने वाली वेन यानि शिरा में या तो खून के कतरे स्थाई रूप से जमा हो गए हैं या फिर गर्दन या कंधे के पास स्थित कोई ट्यूमर सा कैंसर की गांठ उस पर बाहर से दबाव डाल रही है। कभी-कभी गर्दन या कंधे के पास स्थित कैंसर वाले ट्यूमर की सिंकाई के दौरान भी सूजन के साथ नीली नसों के उभरने की संभावना हो सकती है।
अगर आपकी जाँघ में मकड़ी के जाले की तरह जगह जगह नीली नसें उभरी हुई दिख रही हैं तो इसको सामान्य न समझें, इसको किसी वैस्क्युलर व कार्डियो वैस्क्युलर सर्जन को दिखाकर उनकी सलाह जरूर लें।
इस तरह की उभरी हुई नीली नसों के दो कारण होते हैं, एक कारण क्रोनिक वीनस इन्सफीशियन्सी (chronic venous insufficiency) यानि सी.वी.आई. का रोग है, जिसमें वेन के अन्दर स्थित कपाट यानि दरवाजे कमज़ोर पड़ जाते हैं। सामान्यत: इन शिराओं में स्थित कपाट अशुद्ध खून को एक ही दिशा में ऊपर चढऩे की अनुमति देते हैं जिससे टाँगों में अशुद्ध खून की ज्यादा मात्रा इकट्ठा न हो पाए। ऊपर चढ़ा हुआ खून अगर वापिस आने की कोशिश करता है तो ये कपाट आपस में बंद हो जाते हैं जिससे खून नीचे वापिस नहीं आ पाता है। जब ये कपाट किन्हीं कारणों से बंद हो जाते हैं या इनकी संरचना में कोई गंभीर परिवर्तन हो जाता है तो ऊपर चढ़ने वाले खून का कुछ या ज्यादा हिस्सा इन कपाटों के कमज़ोर होने की वजह से ऊपर जाकर फिर नीचे की ओर आ जाता है। ये वापिस आने की क्रिया निरंतर दोहराये जाने पर अशुद्ध खून खाल के नीचे स्थित शिराओं में इकट्ठा होना शुरू हो जाता है जिससे खाल पर नीली नसों का उभार दिखने लगता है। ये शिराओं में स्थित कपाट लोगों में प्रतिदिन नियमित न चलना व व्यायाम का अभाव होने से कमज़ोर पड़ जाते हैं और अपना कार्य सुचारू रूप से नहीं कर पाते।
कपाटों की संरचना में परिवर्तन नसों में खून के कतरे कुछ समय के लिए इकट्ठा होने की वजह से आंशिक रूप से नष्ट हो जाते हैं जिससे वो आपस में ठीक से बंद नहीं हो पाते जिससे ऊपर चढ़ा हुआ अशुद्ध खून नाचे आना शुरू हो जाता है और खाल के नीचे स्थित उभरी हुई नसें दिखने लगती हैं।
एक ओैर महत्त्वपूर्ण कारण जाँघों पर नीली नसें उभरने का डीप वेन थ्रोम्बोसिस (deep vein thrombosis in Hindi) यानि डी.वी.टी होता है जिसमें टाँगों व पैरों में खून के कतरे अचानक जमा हो जाते हैं। अगर इनका समय रहते नियमित इलाज नहीं किया तो ये खून के कतरे स्थाई रूप से टाँगों की नसों में जमा हो जायेंगे, जिससे अशुद्ध खून का शिराओं के जरिये अन्दर चढऩे का मार्ग अवरूद्ध हो जाता है जिससे खाल के नीचे स्थित शिराओं में अशुद्ध खून इकट्ठा होना शुरू हो जाता है और टाँगों व जाँघों पर नीली नसों के उभार को जन्म देता है।
कभी कभी उभरी हुई नीली नसों में अशुद्ध खून अत्याधिक मात्रा में इकट्ठा होने लगता है तो नसों का आकार मकड़ी के जाले की तरह न रहकर बड़े आकार की हो जाती है जो मरीज की टाँगों व जाँघों की खाल पर कैंचुए के आकार की दिखती हैं। इन्हें मेडिकल भाषा में 'वेरिकोज वेन्स’ कहते हैं।
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अगर टाँगों व जाँघों पर उभरी हुई नीली नसों का समुचित इलाज नहीं किया गया तो पैरों पर काले निशान व एक्जिमा व बड़े-बड़े घाव बन जाते हैं जिससे मरीज को बड़े दुखदायी परिणाम भुगतने पड़ते है।
कभी कभी गर्भावस्था के दौरान महिलाओं की टाँगों व जाँघों पर मकड़ीनुमा नीली नसें अगर दिखाई पड़े तो महिलायें सावधान हो जायें ऐसी गर्भवती महिलाओं में डी.वी.टी. यानि पैरों में स्थित शिराओं यानि वेन्स में खून के कतरे जमा होने की बड़ी संभावना रहती है। ऐसे में किसी वैस्क्युलर सर्जन को दिखाकर उनसे पैर में होने वाली डी.वी.टी. की रोकथाम की सलाह ले लें। इन खून के कतरों के जमा होने को लापरवाही से न लें।
अगर अचानक पूरे पैर में सूजन आ जाए तो तुरंत इलाज शुरू कर दें अन्यथा ये कतरे टाँगों से खिसक कर ऊपर जाकर फेफड़े की मोटी नस को बंद कर देते हैं और मरीज की साँस फूलने लगती है और जान जाने की संभावना बढ़ जाती है।
अगर शरीर पर उभरी हुई नीली नसें हैं तो क्या करें?
अगर आप शरीर के किसी भी हिस्से में मकड़ीनुमा या कैंचुएनुमा नीली नसों का जमाव देख रहें हैं, तो हाथ पर हाथ धर कर न बैठें तुरंत जनरल सर्जन की बजाय किसी वैस्क्युलर सर्जन को दिखाकर उनसे परामर्श करें। ये उभरी हुई
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नीली नसें क्यों हुई इसके कारणों को जानना जरूरी है तभी सही इलाज संभव हो सकता है। इसके लिए डापलर स्टडी, मल्टी सी.टी. स्कैन, एम.आर. वीनोग्राम व डीजिटल सब्ट्रैक्शन वीनोग्राफी की जरूरत पड़ती है। कभी कभी रेडियोन्यूक्लिाइड वीनोग्राफी से भी मदद ली जाती है। फेफड़े का वेन्टीलेशन परफ्यूजन स्कैन व प्लमोनरी एंजियोग्राफी की भी जरूरत पड़ सकती है। अत: हमेशा किसी ऐसे अस्पताल में जायें जहाँ इन सब अत्याधुनिक जाँचों की सुविधा सुगम तरीके से उपलब्ध हो तथा अस्पताल में प्रवेश करने से पहले यह अवश्य सुनिश्चित कर लें कि वहाँ पर किसी वैस्क्युलर व कार्डियो वैस्क्युलर सर्जन की उपलब्धता है या नहीं तथा धमनी व शिराओं के आपरेशन होते हैं या नहीं, जैसे शिराओं की बाईपास सर्जरी, वाल्वलोप्लास्टी इत्यादि।
याद रखें कि ये मामूली सी उभरी हुई दिखने वाली नसों की अनदेखी शरीर, हाथ व पैर के लिए बड़ी महंगी पड़ सकती है। इसलिए खाल के ऊपर उभरी ऐसी नीली नसों को गंभीरता से लें।
अगर अन्दर स्थित शिराओं में स्थायी रूकावट होती है तो वेनस बाईपास सर्जरी का सहारा लेना पड़ता है। वेनस बाईपास सर्जरी में आइलिएक वेन बाईपास व आई.वी.सी. बाईपास विधि प्रमुख है। इन आपरेशन में शिराओं की रूकावट वाली जगह को बाईपास कर दिया जाता है जिससे अशुद्ध रक्त अबाध गति से ऊपर चढ़ता रहे।
अगर शिराओं के कपाट बुरी तरह नष्ट हो चुके हैं तो वाल्वुलोप्लास्टी व एक्जीलरी वेन ट्रान्सफर जैसी विशेष शल्य चिकित्सा की विधायें अपनायी जाती हैं।
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अगर वैरिकोस वेन ज्यादा विकसित हो गयी हैं और शिराओं में रूकावट नहीं है, तो 'फ्लेबेक्टमी’ नामक आपरेशन करना पड़ता है।
आजकल ऐसे मरीजों में लेसर तकनीक का भी सहारा लिया जाता है। लेसर तकनीक के अलावा एक और आर. एफ. ए. नामक आधुनिकतम तकनीक आजकल बड़ी लोकप्रिय हो रही हैं। इसमें कोई सर्जरी नही करनी होती हैं और न ही टाँगों की खाल में कोई काटा पीटी करनी पड़ती हैं।मात्र चौबीस घंटे में अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है।
इस आर.एफ..ए. उपचार के बाद मरीज अगले दिन से अपने आफिस या काम पर जाना शुरु कर देता हैं। कहीं कोई ड्रेसिंग कराने का झंझट नहीं और न ही उपचार के बाद घर पर आराम करने की जरुरत।
यह तकनीक लेसर की तुलना में , थोड़ा बेहतर साबित हो रही है, पर वैरिकोस वेन्स (वैरिकोस वेइन्स) का मर्ज अगर बहुत ज्यादा नहीं बढ़ा है तो विशेष किस्म की क्रमित दबाव वाली जुराबें, विशेष व्यायामों व दवाइयों से ही स्थिति को नियंत्रण में लाने की कोशिश की जाती है।
डॉ. के. के. पाण्डेय
(वरिष्ठ वैस्कुलर एवं कार्डियो थोरेसिक सर्जन, इन्द्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, नई दिल्ली)
( नोट - यह समाचार किसी भी हालत में चिकित्सकीय परामर्श नहीं है। यह समाचारों में उपलब्ध सामग्री के अध्ययन के आधार पर जागरूकता के उद्देश्य से तैयार की गई अव्यावसायिक रिपोर्ट मात्र है। आप इस समाचार के आधार पर कोई निर्णय कतई नहीं ले सकते। स्वयं डॉक्टर न बनें किसी योग्य चिकित्सक से सलाह लें।)