आज यहाँ जिस पौधे की बात हो रही है वह एक ऐसा पौधा है जिसके बारे में पहले से काफी जानकारी मौजूद है। इसकी सुन्दर मांसल पत्तियों और फूलों के कारण इसे बाग-बगीचों में खूब लगाया जाता है। इसका नाम है ब्रायोफिलम पिन्नाटम (पथरचटा) (वानस्पतिक नाम - Kalanchoe pinnata या Bryophyllum calycinum या Bryophyllum pinnatum)।
ग्रीक भाषा में ब्रायॉन का अर्थ (meaning of bryon in greek) होता है अंकुरण और फिलॉन का मतलब पत्ती अर्थात् पत्ती में अंकुरण वाला पौधा। यही इसकी विशेषता है जिसके चलते इसे कई नाम मिले हैं, जैसे पत्थरचट्टा, पाथर चूटी आदि। इसका एक नाम खटूमरा या खटुआ भी है जो इसकी एक और विशेषता, इसकी पत्तियों के खट्टेपन से जुड़ा है।
ब्रायोफिलम पौधा ट्रॉपिकल अफ्रीका का मूल निवासी है और अब अपने देश में भी खूब पाया जाता है। इसको एक और नाम से भी जाना जाता है - गोएथे प्लांट ( goethe plant in Hindi)।
प्रसिद्ध लेखक योहान वुल्फगांग फान गेटे (Johann Wolfgang von Goethe) शौकिया प्रकृतिशास्त्री भी थे। ब्रायोफिलम पिन्नेटम के वे इतने दीवाने थे कि मेहमानों को इसके शिशु पौधे उपहार में दिया करते थे। उन्होंने इस पौधे पर हिस्ट्री ऑफ माय बॉटनिकल स्टडीज़ (History of my Botanical Studies) नाम से एक विस्तृत लेख भी लिखा है।
ब्रायोफिलम जाति के पौधों में पत्तियों से शिशु पौधे बनते हैं। इसकी पत्तियाँ काफी बड़ी-बड़ी लगभग अण्डाकार होती हैं एवं कान जैसी लटकती रहती हैं। इन पत्तियों के किनारे खाँचेदार होते हैं। प्रत्येक खाँचे में धँसी हुई प्रविभाजी (लगातार विभाजन करने वाली) कोशिकाओं का एक समूह होता है।
यूँ तो ब्रायोफिलम की पत्तियाँ (bryophyllum leaves)
जैसे आलू बोने पर आँख जागकर नया पौधा बना लेती है, ऐसा ही यहाँ भी होता है। परन्तु यहाँ पत्ती को ज़मीन में नहीं बोना पड़ता, हवा में लटके-लटके ही ये आँखें जागकर नए पौधे बना लेती हैं। है ना अजूबा। कुछ लोग इसे जनन पत्ती भी कहते हैं। वैसे तो आप जानते ही हैं कि पत्तियों का प्रमुख काम तो भोजन निर्माण है परन्तु पथरचटा की ये पत्तियाँ तीन-तीन काम करती हैं - भोजन बनाना, पानी संग्रह रखना और ज़रूरत के वक्त पौधे जनना।
भोजन बनाने की बात चली है तो ये भी जान लें कि यह पौधा अपना भोजन आम पौधों यानी गेहूँ, सोयाबीन और जाम-आम की तरह नहीं बनाता। इसका भोजन बनाने का तरीका भी खास है। ब्रायोफिलम का पौधा क्रेसुलेसी कुल का है। इस कुल के पौधे की पत्तियाँ, तने, फूल - सब मांसल होते हैं। इनके स्टोमेटा आम पौधों की तरह नहीं होते - ये रात में खुलते हैं और दिन में बन्द रहते हैं। वस्तुत: भोजन निर्माण के लिए ज़रूरी कार्बन डाईऑक्साइड रात में इनके स्टोमेटा से अन्दर आती है और ये इसे अपनी रिक्तिकाओं में मेलिक एवं ऑक्ज़ेलिक अम्लों के रूप में जमा कर लेते हैं। और दिन के समय जब सूरज निकलता है तब रात में जमा अम्लों के विघटन से पुन: कार्बन डाईऑक्साइड निकलती है जो प्रकाश संश्लेषण की क्रिया (process of photosynthesis) द्वारा उपयोग कर ली जाती है। इस तरह भोजन निर्माण का कुछ हिस्सा जिसके लिए प्रकाश ज़रूरी नहीं रहता, ये रात में निपटा लेते हैं और दिन में सूर्य की ऊर्जा से बाकी काम कर लेते हैं। इस तरह पानी भी उड़ने से बच जाता है क्योंकि दिन में स्टोमेटा बन्द रहते हैं, और भोजन भी बन जाता है। भोजन बनाने के इस प्रक्रम को क्रसुलेसियन एसिड मेटाबॉलिज्म (crassulacean acid metabolism (cam) photosynthesis) कहते हैं। कैम के कमाल को जानना ही है तो अनानास को काटिए और खाइए। आपको इन पौधों की मांसलता एवं खट्टेपन का एहसास हो जाएगा।
तरह-तरह की पत्तियाँ
जब आप ब्रायोफिलम के एक भरे-पूरे पौधे को देखेंगे तो पाएँगे कि ऊपर से नीचे तक इसमें पत्तियाँ अलग-अलग रूप-रंग की हैं। ज़मीन से ऊपर की पत्तियाँ बड़ी-बड़ी सरल प्रकार की अण्डाकार। बीच की पत्तियाँ थोड़ी कटी-फटी यानी संयुक्त प्रकार की तीन या पाँच पर्णकी होती हैं। एवं फूल की डण्डी के नीचे की पत्तियाँ और भी ज़्यादा कटी-फटी, पाँच से सात पर्ण तक की।
ब्रायोफिलम के फूलों का सुन्दर गुच्छा (bryophyllum rosette)
वास्तव में मुझे जिसने सबसे ज़्यादा प्रभावित किया वह है इसका पुष्पक्रम। मैं कॉलेज के बगीचे में धूप सेंक रहा था। जनवरी का अन्तिम सप्ताह था। अचानक मेरी नजर ब्रायोफिलम के सुन्दर पुष्पक्रम पर पड़ी। लम्बी डण्डियों पर बड़े करीने से लगे फूलों को देखा तो लगा कि ये फूल नहीं अंगूर के गुच्छे हैं। कच्चे-पके अंगूर। मैंने फोटो निकाले, पास जाकर देखा तो पता चला कि ये फूल नहीं हैं, ये तो कलियाँ हैं जो उल्टी-लटकी हुई हैं। क्या सुन्दर झूमर है जो दिन में प्रकाशित हो रहा है। जरा इसकी सिमेट्री तो देखिए। एक 30 से.मी. लम्बी डण्डी। उससे दो डण्डियाँ निकलती हैं लगभग एक-दूसरे के समकोण। इसके ऊपर फिर दो डण्डियाँ, ये भी विपरीत दिशा में पुन: समकोण पर। एक पुष्पक्रम में ऐसी तीन से चार डण्डियाँ एक के ऊपर एक लगी हुई हैं। आमने-सामने का प्रत्येक पुष्पदण्ड फिर से दो में विभाजित होता है जो फिर तीन-तीन में। बीच में एक कली होती है। हैं। कलियों के इस संयोजन को देख मैं तो दंग रह गया।
जो अभी नज़र आ रहा है वे हैं अंखुड़ियाँ। चार होती हैं, आपस में जुड़ी नलिकाकार। इसी से वे अंगूर जैसी नज़र आती हैं। कलियों के जिस हिस्से पर धूप गिरती है वो हिस्सा पीला है, और उस पर गुलाबी धारियाँ स्पष्ट नज़र आती हैं। पिछला हिस्सा हरा-पीला होता है। चारों अंखुड़ियाँ इस कदर जुड़ी होती हैं कि एक लम्बे अंगूर-सी रचना बन जाती है। चार-छह दिन में अंखुड़ियों की यह नली फटती है तब चार नारंगी-गुलाबी रंग की पंखुडियाँ बाहर झाँकती हैं। ये भी नलिकाकार हैं, बस चार सिरे बाहर निकले दिखाई देते हैं। फूल की रचना को देखने के लिए केलिक्स नली यानी इस अंगूर की चीर-फाड़ करनी होती है।
पत्थरचट्टा का पुष्पक्रम (inflorescence of bryophyllum) -4-4 अंखुड़ियों के मिलने से बनी रचना अंगूर के गुच्छों की तरह दिखाई देती है। केलिक्स नली लगभग 3 से.मी. लम्बी होती है जिसके सिरे ट्यूब के फटने पर लगभग आधा से.मी. के होते हैं। केलिक्स नली को जब चीरते हैं तो इसके अन्दर एक और नली दिखती है यह है करोला नली जो पंखुड़ियों से बनी होती है। इसे देखने के लिए केलिक्स नली को फाड़ना ही पड़ता है।
पंखुड़ियाँ हटाने पर कुछ और नज़ारा दिखता है। 3-4 से.मी. लम्बे पाँच नहीं आठ पुंकेसर। उनसे घिरी चार वर्तिकाएँ। वर्तिका के नीचे का फूला हुआ हिस्सा अण्डाशय, ये भी चार हैं, हरे हैं और स्वतंत्र हैं। और प्रत्येक के साथ एक-एक पीले रंग की चपटी हरी-पीली नेक्टरी भी है। इन्हीं नेक्टरी से निकलने वाले मीठे मकरन्द का स्वाद चखने इस पर शकर खोरे उड़ते चले आते हैं।
कुल मिलाकर फूल अन्दर-बाहर, दोनों तरफ से मजदार है। फूलों की रचना प्रक्रिया समझने में एक और उपयोगी फूल। फूलधारी पौधों में दो बीजपत्री समूह में फूल पंचतयी या चारतयी होते हैं। अधिकांश पंचतयी फूलों से ही हमारा पाला पड़ता है जैसे गुड़हल, बेशर्म, धतूरा, सदाबहार, आक आदि; पर ब्रायोफिल के ये फूल चारतयी फूलों का एक सुन्दर उदाहरण हैं। चार पंखुड़ी, चार अंखुड़ी, आठ पुंकेसर, चार अण्डप। सब चार या चार के गुणक में।
रेड पिरो और ब्रायोफिलम (Red Pierro and Bryophyllum)
पत्थरचट्टा की बातें तब तक पूरी नहीं हो सकतीं जब तक इस पर पलने वाली एक तितली 'रेड पिएरो’ का जिक्र न हो। जहाँ ब्रायोफिलम वहाँ रेड पिएरो। दोनों एक-दूजे के लिए बने हैं। यह तितली इस पौधे के आसपास ही मण्डराती रहती है। दरअसल यह इस सुन्दर नारंगी काली तितली का पोषक पौधा है। रेड पिएरो मादा अपने अण्डे इसकी पत्तियों पर देती है। अण्डे से निकलने वाला लार्वा इसकी मांसल पत्तियों में छेद कर अन्दर घुस जाता है। वहाँ यह पत्तियों के अन्दर की मीज़ोफिल कोशिकाओं को खाता रहता है। अत: इसे 'लीफमाइनर’ यानी पत्ती को खाकर खोदने वाला व खोखला करने वाला लार्वा भी कहते हैं।
किशोर पंवार
Bryophyllum, a hanging plant. Whose leaves are not only amazing but also flowers…