आप जानते हैं कि पिछले 50 दिनों से अधिक समय से दिल्ली के शाहीन बाग़ इसी शहर के तमाम जगहों पर और देश के विभिन्न भागों में सीएए, एनआरसी, और एनपीआर के खिलाफ महिलाएं तथा पुरुष 24x7 बैठे हुए हैं. इन देशभक्तों और संविधान प्रेमियों के जज़बे और जोश को दरकिनार करते हुए मेनस्ट्रीम मीडिया और कुछेक राजनीतिक दल मुसलमानों की भीड़ बताकर उन्हें शेष भारत से अलग दिखाने का प्रयास करने में सफल होते दिख रहे हैं. और लगातार यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि सीएए, एनआरसी, और एनपीआर कतई राष्ट्र विरोधी नहीं बल्कि यह महज कुछ मुसलमानों द्वारा अकारण किये जाने वाला उकसाऊ प्रयास है.
वैसे भी पिछले कुछ सालों में देश में मुस्लिम विरोधी एक माहौल इस कदर बनाया गया है कि लोग मुसलमानों के हर काम को शक के नज़र से देखने लगे हैं, जबकि हमें याद करना चाहिए कि अपने देश के सामाजिक आंदोलन के पुरोधा महात्मा जोतिबा फुले और सावित्री बाई फुले के आंदोलन को सबसे अधिक सहयोग मुसलमानों के द्वारा ही मिला था.
फातिमा शेख जैसे मुस्लिम महिलाओं ने सावित्री बाई फुले के मिशन में सबसे अधिक सहयोग दिया था. फिर हम कैसे भूल सकते हैं कि महात्मा फुले के जनतांत्रिक समाजवादी राष्ट्र के सपनों को पूरा करने के लिए जब डॉ आम्बेडकर ने कमान संभाली तो भी उन्हें सबसे ज्यादा सहयोग मुसलमानों द्वारा ही मिला. राऊंड टेबल कान्फ्रेंस में डॉ आम्बेडकर ने देश के सबसे पीड़ित तबके के लिए पृथक निर्वाचन अलग निर्वाचन का अधिकार दिलवाया उसमें भी मुसलमान नेताओं की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रही थी.
इसके बाद आज भी चाहे भीमा कोरगांव का संघर्ष या कोई और संघर्ष हमेशा मुस्लिमों ने देश के लोकतंत्र को बचाने में अपने तन-मन से सहयोग दिया है. इनके इसी त्याग और समर्पण को देखते हुये मनुवादी शक्तियां मुसलमानों को देश
दरअसल इन मनुवादियों का असली निशाना देश का जनतंत्र रहा है और वे अब सीएए, एनआरसी, और एनपीआर के बहाने देश के संविधान को ध्वस्त करने में तुले हैं और यदि यह क़ानून लागू हो गया तो अपने इस मकसद में वे बड़ी आसानी से कामयाब हो भी जायेंगे क्योंकि इस अधिनियम के बाद जब देश के बहुजनों के पास वोटिंग का अधिकार ही नहीं बचेगा तो वे कैसे अपने संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार कायम रख पाएंगे!
देश के तमाम ओबीसी के पास जो अपनी मेहनत से कमाई ज़मीन है उन्हें एन आर सी के एक वार से कुर्क कर दिया जाएगा और साथ ही तमाम मेहनतवर्ग की जो थोड़ी-बहुत जमा पूंजी और नौकरी पेशा तबके का मकान और बैंक बेलैंस है उसे भी आपकी नागरिकता संदिग्ध घोषित करते हुए ही कुर्क कर दिया जाएगा.
सरकार की मंशा मनुस्मृति को एक रिफाइंड तरीके से दोबारा लागू करने की है. लेकिन यदि देश का बहुजन जिसमें सबसे बड़ी संख्या ओबीसी तबके की हैं वह अन्य वंचित तबके के साथ मिलकर संघर्ष में शामिल हो जाते हैं तो हमें कोई शक नहीं कि हम इस मनुवादी साज़िश को नाकाम कर देंगे.
साथियो, इसी सोच के तहत हम सभी लोकतांत्रिक और जनतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखने वाले साथियो से आह्वान करते हैं कि हम 4 मार्च 2020 को नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक साथ इकट्ठा होंगे ताकि हम सब मिलकर इस गरीब-विरोधी, मज़दूर-विरोधी, ओबीसी-विरोधी और महिला विरोधी तथा आमजन विरोधी सरकार को झुकाने पर मज़बूर कर सके और अपने देश तथा संविधान की रक्षा कर सके जिसे बड़ी जतन से डॉ बाबासाहब आम्बेडकर ने बनाया था.
साथियो, ये लड़ाई किसी एक जाति-धर्म को बचाने की नहीं हैं बल्कि देश में मानवता को बचाने के लिए है. इसलिए जो भी व्यक्ति चाहे जिसे जाति-समुदाय से हो लेकिन वह मानववादी और मानवतावादी हो तो उसे इस लड़ाई में शामिल होना ही होगा. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस सरकार ने देश के 10 से राज्यों में डिटेशन सेंटर बना रखे यहीं जहाँ वह उन तमाम वंचित-बहुजनों को डालना चाहती है ताकि वे अपने लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित होकर गुलामी का जीवन जिए. लेकिन हमें विश्वास है कि यदि हम सब 4 मार्च के दिल्ली चलो अभियान में शामिल होते हैं तो हम देश और संविधान को बचाने में ज़रूर कामयाब हो पाएंगे.
प्रकाश आम्बेडकर,* अध्यक्ष वंचित बहुजन अघाड़ी
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