अगले पांच साल में बुनियादी ढांचे के विकास (Infrastructure development) के लिए 103 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की सरकार की योजना है। रोज़गार और नौकरियां बढ़ाने के लिए निवेश और विनिवेश का रास्ता चुना गया है, खेती और उत्पादन का नहीं। इस बहाने पीपीपी मॉडल (Ppp model) के विकास और रोज़गार सृजन (Employment generation) की आड़ में कारपोरेट टैक्स (Corporate tax) 35 प्रतिशत से घटते-घटते अब 15 प्रतिशत तक आ गया है। डिविडेंट टैक्स खत्म कर दिया गया है। सावरेन फंड में निवेश पर शत प्रतिशत टैक्स माफ। आडिट नहीं होगी 5 करोड़ के टर्न ओवर तक। बाकी बजट से पहले सात बार प्राइवेट सेक्टर और विदेशी पूंजी के लिए प्रोत्साहन, टैक्स माफी, पंकज की पहले ही घोषणा की जाती रही मंदी के बहाने।
यह बुनियादी ढांचा क्या है। What is this infrastructure.
बीसवीं सदी की शुरुआत में भी चुनिदा औदयोगिक घरानों को छोड़कर भारत में प्राइवेट सेक्टर का कोई वजूद नहीं था। आजादी से ऐन पहले तक यही स्थिति थी।
1945 में प्लान फ़ॉर इंडियाज इकोनॉमिक डेवलपमेंट बना, जिसे टाटा बिड़ला प्लान कहा जाता है। उनकी सिफारिश थी कि बुनियादी ढांचे पर भारी सरकारी निवेश किया जाय। दो साल बाद मिली आजादी के बाद पूंजीपतियों को बिना पूंजी लगाए बिल्कुल मुफ्त बुनियादी ढांचा देने के लिए इस सिफारिश को तेज औद्योगिक विकास और शहरीकरण के लिए लागू किया गया।
देश के सारे संसाधन लगाकर, जनता की खून पसीने की कमाई से यह बुनियादी ढांचा तैयार किया जाता रहा है। जिसे 1991 से बिना प्रतिरोध मुक्तबाजार के आर्थिक सुधारों के तहत निजीकरण, उदारीकरण और ग्लोबीकरण के जरिये
फिर वही खेल चालू है।
नागरिकता कानून (Citizenship Act), श्रम कानून में संशोधन और आधार परियोजना बुनियादी आर्थिक सुधार है। जिसके शिकार होंगे सबसे ज्यादा मेहनत आम लोग, शरणार्थी सीमाओं के आर-पार, देश के अंदर, आदिवासी, पिछड़े, मुसलमान, दलित, स्त्रियां और युवजन।
आपको सिर्फ मुसलमान दिख रहा है। आप पीड़ितों में सिर्फ मुसलमानों को दिखाकर उन्हें आदिवासियों की तरह अलगाव में डालते हुए किसानों मजदूरों दलितों पिछड़ों आदिवासियों छात्रों युवाओं और स्त्रियों को संघ परिवार की छतरी में धकेल दे रहे हैं, क्योंकि वे आम लोग इस नरसंहारी मुक्तबाजार के हिंदुत्व को आपके ही नजरिये से सिर्फ मुसलमानों की समस्या मानते हैं और कतई नहीं समझते कि निशाने पर वे खुद हैं और मुसलमान से पहले वे ही मारे जाएंगे।
हिंदुओं के मुसलमानों के खिलाफ़ ध्रुवीकरण की राजनीति को आप कामयाब कर रहे हैं और देशी विदेशी पूंजी और कारपोरेट राज के आर्थिक सुधारों के 2991 से लेकर कारपोरेट राजनीतिक दलों की तरह आपने भी कभी कोई विरोध नहीं किया है।
इस नरसंहारी बजट 2020 (Budget 2020) के खिलाफ भी आप खामोश हैं।
पलाश विश्वास