कोविड महामारी को दो साल से ऊपर हो गए हैं, अब हमें यह पता है कि संक्रमण को फैलने से कैसे रोकना है, और टीकाकरण और स्वास्थ्य सेवा के ज़रिये कैसे कोविड रोग के गम्भीर परिणाम से बचना है। मृत्यु का ख़तरा भी टीकाकरण से कम होता है। तो फिर यह कैसे मुमकिन है कि विश्व में अब तक के सबसे अधिक साप्ताहिक नए संक्रमण जनवरी 2022 के दूसरे सप्ताह में हुए? संक्रमण को रोकने में हमारी असफलता (Our failure to prevent infection) और पर्याप्त टीकाकरण और स्वास्थ्य सेवा का सशक्तिकरण (health care empowerment) न कर पाने का नतीजा है कि जनवरी के दूसरे सप्ताह में 1.5 करोड़ से अधिक नए संक्रमण हुए। यदि पिछले दो सालों में संक्रमण नियंत्रण बेहतर हुआ होता और एक साल में टीकाकरण समझदारी और बराबरी के सिद्धांत पर हुआ होता, तो तस्वीर कुछ भिन्न हो सकती थी - गम्भीर रोग की पीड़ा से लोग बचते और असामयिक मृत्यु से भी।
ग़नीमत सिर्फ़ यह है कि अब तक के सबसे अधिक साप्ताहिक नए केस होने पर भी मृत्यु दर नहीं बढ़ा है। अक्टूबर 2021 से हर सप्ताह लगभग औसतन 48000 लोग कोविड से मृत हो रहे हैं। चूँकि हर जीवन अमूल्य है इसलिए इन असामयिक मृत्यु को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
संक्रमण नियंत्रण यदि संतोषजनक होगा तो लोग संक्रमित ही नहीं होंगे। दुनिया में पूरा टीकाकरण सबका समय से हुआ होता तो कोविड होने पर गम्भीर परिणाम भी अत्यंत कम हुए होते।
सम्भावित यही है कि यह नए केस ओमाइक्रॉन (omicron) कोरोना वायरस के कारण हैं
कोविड टीकाकरण के कारण संक्रमित होने पर गम्भीर रोग होने का ख़तरा अत्यंत कम होता है (और मृत्यु का भी) पर शून्य नहीं होता है। इसीलिए पूरा टीकाकरण करवाए लोग भी मास्क पहने और कोविड से बचें।
वैज्ञानिक रूप से यह प्रमाणित है कि टीकाकरण करवाने से संक्रमित होने पर गम्भीर रोग होने का ख़तरा अत्यंत कम होता है इसीलिए अस्पताल में भर्ती, ऑक्सीजन की ज़रूरत या वेंटिलेटर की आवश्यकता बहुत कम हो जाती है और मृत्यु का ख़तरा भी कम होता है। पर संक्रमण से बचना सबसे प्राथमिक ज़िम्मेदारी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की विशेषज्ञ डॉ ब्रूस एल्वर्ड ने सीएनएस (सिटिजन न्यूज़ सर्विस) को बताया कि विश्व में कोविड के कारण जो लोग इस समय अस्पताल में भर्ती हैं, उनमें से 90% लोगों का टीकाकरण नहीं हुआ है।
सेंटर फ़ॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेन्शन (सीडीसी) के पूर्व निदेशक डॉ टॉम फ्रीडन ने कहा कि 12-18 वर्षीय युवा जो संक्रमित हुए हैं उनमें से 99% ऐसे हैं जिनका टीकाकरण नहीं हुआ है।
साफ़ ज़ाहिर है कि पूरा टीकाकरण करवाए लोगों को कोविड होने पर गम्भीर रोग होने का ख़तरा अत्यंत कम होता है पर जिनका टीकाकरण नहीं हुआ है उनकी अस्पताल में भर्ती, ऑक्सिजन, वेंटिलेटर और मृत होने की आशंका अत्याधिक होती है।
एक ओर हम संक्रमण नियंत्रण के लिए प्रमाणित तरीक़ों से संक्रमण के फैलाव पर रोक लगा सकते हैं और दूसरी ओर समयबद्ध तरीक़े से सबका टीकाकरण कर के कोविड के गम्भीर परिणाम होने के ख़तरे को अत्याधिक कम कर सकते हैं। यानि कि कोविड महामारी के तीव्र स्वरूप का अंत मुमकिन है।
एक ओर अमीर और साधन-सम्पन्न देश हैं जिन्होंने अपनी ज़रूरत से कहीं अधिक मात्रा में वैक्सीन, जाँच, दवाएँ आदि की होड़ कर रखी है तो दूसरी ओर ऐसे देश हैं जो अपनी आबादी की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने तक के लिए मजबूरन संघर्षरत हैं।
संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ ईश्वर गिलाडा ने कहा कि दुनिया की कुल आबादी 7.8 अरब है पर 9 अरब से अधिक कोविड टीका लग चुके हैं। यदि हम लोगों ने समझदारी से इन 9 अरब टीकों को लगाया होता तो सभी को बराबरी से लाभ मिलता और जिन लोगों को ख़तरा अधिक है वह सुरक्षित रहते, नए कोरोना वायरस के प्रकार भी कम उभरते। पर इसके ठीक विपरीत हो रहा है क्योंकि 2 अरब से अधिक टीके तो अमीर देशों ने ही होड़ किए हुए हैं। अमरीका और इंगलैंड जैसे देशों में टीके रखे-रखे इक्स्पाइअर हो गए पर इन देशों ने टीकों को जरूरतमंद देशों को देना उचित नहीं समझा।
एक ओर ऐसे अमीर देश हैं जिनकी आबादी के 80% से अधिक का पूरा टीकाकरण हुए महीनों बीत चुके तो दूसरी ओर ऐसे अफ्रीकी देश हैं जहां 85% आबादी को टीके की एक खुराक तक नसीब नहीं हुई है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के बारम्बार मना करने के बावजूद कि दिसम्बर २०२१ तक कोई देश बूस्टर न लगाए, अमीर देश अपनी जनता को बूस्टर टीका लगाए जा रहे हैं। इसराइल और जर्मनी ने अपनी जनता को चौथी डोस (दूसरी बूस्टर) लगानी शुरू कर दी है। आज हाल यह है कि जितनी बूस्टर खुराक अमीर देशों में रोज़ लगती हैं, अफ़्रीका में उतने लोगों को पहली खुराक तक नसीब नहीं हो रही।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की डॉ मारिया वैन केरखोवे ने सही कहा है कि ऐसा मुमकिन ही नहीं है कि कुछ देशों में कोविड महामारी समाप्त हो जाए और बाक़ी देश इसका प्रकोप झेलते रहें। यदि कोविड महामारी पर रोक लगेगी तो वैश्विक स्तर पर साझेदारी से कोविड नियंत्रण करने से लगेगी।
दुनिया के 193 देशों का लक्ष्य है कि जून 2022 तक उनकी आबादी के कम-से-कम 70% का पूरा टीकाकरण हो। परंतु 109 ऐसे देश हैं जो जून 2022 तक यह लक्ष्य पूरा नहीं कर पाएँगे। 36 देश तो ऐसे हैं जहां 10% आबादी तक का टीकाकरण नहीं हुआ है। वहीं पर चंद अमीर देश हैं जिन्होंने महीनों पहले पिछले साल ही यह लक्ष्य पूरा कर किया, अब अपनी आबादी को तीसरी या चौथी खुराक (बूस्टर) लगा रहे हैं।
सर्वप्रथम तो अधिकांश देशों को टीके समय से मिले ही नहीं। अमीर देशों ने होड़ की। पिछले साल के अंत की ओर टीके देशों को दिए भी गए तो पहले से सूचित और नियोजित नहीं था कि कितनी खुराक किस टीके की दी जा रही है, उसकी एक्सपाइरी तिथि क्या है, उतनी खुराक लगाने के लिए पर्याप्त सुई आदि है कि नहीं, आपूर्ति शृंखला प्रबंधन है कि नहीं, ठंडी साँकल, आर्थिक सहयोग, प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी आदि हैं कि नहीं। जब तक टीके देशों से पूर्व-नियोजित समयबद्ध ढंग से साझा नहीं किए जाएँगे और पूरी तैयारी के साथ नहीं लगेंगे तब तक न केवल कोविड एक चुनौती बना रहेगा बल्कि नए प्रकार के कोरोना वायरस 'वेरीयंट' भी उभरते रहेंगे।
इन देशों को दोष दे ही नहीं सकते क्योंकि खसरा और पोलियो जैसे रोग को नियंत्रित करने का, एवं टीकाकरण और उन्मूलन तक इन्होंने ही कर के दिखाया है। रोग और संक्रमण नियंत्रण की क्षमता तो है इन देशों में पर अमीर देशों के साथ वैश्विक स्तर पर कुशल प्रबंधन की कमी रही है।
चूँकि कोविड के कारण अनेक देशों में पर्याप्त टीकाकरण नहीं हुआ है, ओमिक्रॉन से संक्रमित लोगों की संख्या (Number of people infected with Omicron) चिंताजनक है। संक्रमित लोग जिनको टीका नहीं मिला है, अस्पताल में भर्ती होने वालों में उन्हीं की संख्या अधिकांश है। अस्पताल जब कोविड के रोगी से भर रहे हैं तो ज़ाहिर है कि अन्य रोगों के उपचार और देखभाल कुप्रभावित होते हैं। इनमें से अनेक ऐसे रोग हैं जैसे कि उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह, कैन्सर आदि जिनके कारण कोविड के गम्भीर परिणाम का ख़तरा भी बढ़ता है। स्वास्थ्य व्यवस्था सशक्त होनी चाहिए कि सभी जरूरतमंद लोगों की सभी स्वास्थ्य सेवा सम्बंधित ज़रूरतें मानवीय ढंग से पूरी हो सकें।
शोभा शुक्ला और बॉबी रमाकांत
(शोभा शुक्ला और बॉबी रमाकांत, सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) और आशा परिवार से जुड़े हैं।