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Challenges of Lockdown 2 : Modi was seen covering his old mistakes in his new speech

जैसी कि अपेक्षा थी प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 14 अप्रैल की प्रातः एक टीवी भाषण के जरिये 19 दिनों के लॉकडाउन-2 की घोषणा (19-day lockdown-2 announcement) कर दी। 3 मई 2020 तक के लिये घोषित इस नये लॉकडाउन का यह दौर मजदूरों, प्रवासी मजदूरों, गरीबों, किसानों, छोटे व्यापारियों, लघु उद्यमियों, वरिष्ठ नागरिकों और बीमारों के लिये और अधिक कठिनाइयों भरा रहने वाला है।

Half the incomplete preparations of the central and state governments and arbitrary decisions like the war are causing many difficulties.

केन्द्र और राज्य सरकारों की आधी अधूरी तैयारियों और युद्धकाल सरीखे मनमाने फैसलों से अनेक कठिनाइयाँ पैदा हो रही हैं जिसका सारा खामियाजा आम जनता और कोरोना से जूझ रहे सेवकों को भुगतना पड़ रहा है (Whose brunt, the general public and the servants who are battling the corona, are suffering)। लेकिन अब लॉकडाउन-2 से यह सब असहनीय स्थिति में पहुँच चुका है। इन कठिनाइयों से जनता को उबारने के लिये तत्काल आवश्यक कदम उठाने की जरूरत है।

The Prime Minister was seen covering his old mistakes in his new speech.

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री अपने नये भाषण में अपनी पुरानी गलतियों पर पर्दा डालते नजर आये। यह सर्वविदित है कि लॉकडाउन की पिछली घोषणा से पहले यदि प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने की व्यवस्था (Provision for home delivery to migrant laborers) कर दी गयी होती तो न तो उन प्रवासी मजदूरों की कठिनाइयाँ बढ़तीं न उस राज्य की जहां वे लगभग एक माह से कोरोंटाइन जैसी स्थिति में कैद हैं। उनको लॉकडाउन से पहले उनके घरों तक पहुंचा कर 14 दिन तक कोरेंटाइन में रखना (Keep in quarantine for 14 days) मौजूदा व्यवस्था से सस्ता और सुविधाजनक होता। पर तब सरकार चूक गयी और नतीजा सभी के सामने है।

Now once
again the government has made another big mistake

अब एक बार फिर सरकार ने एक और बड़ी चूक की हैसरकार ने रेलवे का आरक्षण खोल दिये। लगातार इस आशय की खबरें मीडिया में आती रहीं कि 15 अप्रैल से रेल, बस और हवाई सेवाओं के चालू होने की पूरी तैयारी है। अतएव तमाम प्रवासी मजदूरों ने घर पहुँचने के लिये टिकिटें आरक्षित करा लीं। मुंबई में तो वे स्टेशनों पर पहुँच गये और शारीरिक दूरी का उल्लंघन हुआ (Physical distance violated)। रेलवे ने टिकिटें क्यों बुक कीं इसकी जबावदेही सरकार की है। लॉकडाउन खुलने के आभास से मुंबई में तमाम मजदूरों ने घर आने को सामूहिक रूप से बसें तक तय कर ली थीं।

Migrant laborers stranded in other states are facing double problems

दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूर दोहरी समस्याएँ झेल रहे हैं। उनमें से अनेक फुटकर मजदूर हैं जो लॉकड़ाऊन से पहले ही काम से हाथ धो बैठे थे। छोटे बड़े उद्योगों में कार्यरत मजदूरों को काम पर से हटा दिया गया है (Workers working in small and large industries have been removed from work) और उन्हें भुगतान तक नहीं किया। मोदीजी बड़े भोलेपन से बार बार अपील कर रहे हैं कि मजदूरों को काम पर से हटाया न जाये और उन्हें उनके वेतन का भुगतान किया जाये। पर जो उद्योगपति सामान्यकाल में मजदूरों को काम का पूरा मेहनताना नहीं देते वे भला बिना काम के मजदूरों का भुगतान (Labor payment) करेंगे यह एक कोरी कल्पना मात्र है। छोटे व्यापारी और उद्यमी तो उन्हें भुगतान करने की स्थिति में भी नहीं हैं। मजदूरों पर जो धनराशि थी वो अब पूरी तरह खर्च हो चुकी है।

अधिकांश प्रवासी मजदूरों को खाने योग्य और भरपूर खाना नहीं मिल पा रहा। अधिकतर जगह यह एक पहर ही मिल पा रहा है। हर राज्य वहां प्रचलित खाने के पैकेट सप्लाई कर रहे हैं जिसे वे लगातार खाने से ऊब गये हैं। वे दाल, आटा, आलू, चावल की मांग कर रहे हैं ताकि अपना भोजन खुद पका सकें। उनके रहने, नहाने- धोने की भी उचित व्यवस्था नहीं है।

इसके अलावा दूर दराज गांव, शहर, कस्बों में रह रहे उनके परिवार भी संकट में आ गए हैं। परदेश में बेरोजगार बने ये मजदूर अपने घरों को वह धन नहीं भेज पा रहे। उन्हें उम्मीद थी कि 14 अप्रैल को लॉकडाउन खुल जायेगा और वे घर जाकर फसल की कटाई करके कुछ कमाई कर लेंगे। लेकिन उनकी यह चाहत भी पूरी नहीं हो सकी।

स्थानीय मजदूर और किसान भी संकट में हैं (Local laborers and farmers are also in crisis)। हर तरह के रोजगार समाप्त हो गए हैं। मनरेगा का काम भी ठप पड़ा है। अलबत्ता फसल की कटाई चालू है जिससे ग्रामीण मजदूर और किसानों को कुछ राहत मिली है। परंतु सरकार के तमाम दाबों के बावजूद औसत गरीब परिवारों तक खाद्य पदार्थ पहुँच नहीं सके हैं। खाद्य पदार्थों के अभाव में आत्महत्याओं की खबरें (News of suicides due to lack of food) कोरोना से हो रही मौतों की खबरों के तले दब कर रह गयी हैं। गोदामों में पर्याप्त अनाज भरे होने के दाबे अभावग्रस्तों को और भी मुंह चिढ़ा रहे हैं।

कोरोना से निपटने में जांच और चिकित्सा संबंधी उपकरणों की कमी की खबरें सुनने के हम अब आदी हो चले हैं। लेकिन दूसरे मरीजों की दुर्दशा की खबरें दिल दहलाने वाली हैं। गंभीर रूप से बीमारों को अस्पताल तक लाने को एंबुलेंस नहीं मिल पारही हैं। हताश परिजन गंभीर मरीजों यहाँ तक कि प्रसव पीड़िताओं को ठेले, साइकिल अथवा कंधे पर लाद कर ला रहे हैं। टीबी, हृदय, किडनी आदि के गंभीर मरीज दवा और इलाज के अभाव में जीवन से हाथ धो रहे हैं। घर तक दवा पहुंचाने और टेलीफोन पर दवा पूछने के दावे भी हवा हवाई साबित हो रहे हैं। निजी अस्पताल और नर्सिंग होम जो आम दिनों में मरीजों की खाल तक खींच लेते हैं, शटर गिरा कर भूमिगत हो गये। सरकार ने निजी चिकित्सकों और उनके अस्पतालों से इस आपातकाल में सेवायेँ लेने का कोई प्रयास नहीं किया।

मौजूदा सामाजिक व्यवस्था में अधिकांश सीनियर सिटीजन्स अकेले रहने को अभिशप्त हैं। उन्हें तमाम नसीहतें दी जा रही हैं, लेकिन उनकी जरूरतों को पूरा करने को कोई सिस्टम तैयार नहीं किया गया। वे दवा, फल सब्जी और दूसरी जरूरत की चीजों को हासिल नहीं कर पा रहे। उनमें से कई तो धनाभाव की पीड़ा झेल रहे हैं।

मोदी सरकार ने विभिन्न श्रेणियों के गरीबों के लिये रु॰ 500 उनके खातों में डाल दिया। अनेक लोग खाता अथवा रजिस्ट्रेशन न होने के कारण इस लाभ से वंचित रह गये। लेकिन जिनके खातों में पैसा आया वे अपनी जरूरतों को पूरा करने को पैसा निकालने को बैंकों और जनसेवा केन्द्रों लाइनों में खड़े हो गए। शारीरिक दूरी बनाए रखने की धज्जियां तो बिखर ही गईं, अनेक जगह उन्हें पुलिस की लाठियां तक खानी पड़ीं। अनेक जगह संघ के कार्यकर्ताओं की लाठियाँ भी गरीबों पर बरसीं। इस धन को डाक विभाग के माध्यम से घर-घर भिजवाने का विकल्प सरकार को सूझा ही नहीं।

कोरोना के संक्रमितों की संख्या (Number of corona infected) बढ़ने से लाक डाउन बढ़ाना आवश्यक था यह सभी समझ रहे थे। लेकिन इस फैसले को दो दिन पहले भी तो सुनाया जा सकता था। इससे अचानक घोषणा से फैली अफरा- तफरी से बचा जा सकता था। घोषणा से दिन दो दिन पहले राज्य सरकारों को भी बता दिया जाना चाहिए था। लेकिन सभी को दुविधा में रखा गया। इससे मुंबई और सूरत जैसी घटनाएँ सामने आयीं।

श्री मोदी जी खुद ही हर चीज की घोषणा करते हैं। अपने मंत्रिमंडल में भी शायद ही विचार करते हों। अचानक टीवी पर प्रकट होते हैं और एक लच्छेदार भाषण हमारे कानों में उड़ेल दिया जाता है। पहले दो बार हमें तंत्र थमाये गये तो इस बार सात मंत्र। पर तंत्र- मंत्र से न पेट भरता है न इलाज होता है। कोरोना से लड़ाई देश के लोग मुस्तैदी से लड़ रहे हैं। पर उन्हें पर्याप्त भोजन, इलाज दवाएं जरूरी सामान और रहने की उचित व्यवस्था भी तो चाहिये। ये सब भाषण से नहीं मिलते। अच्छा होता आप एक समग्र राहत पैकेज के साथ सामने आते।

अतएव समय की मांग है कि आप एक व्यापक और समग्र पैकेज की तत्काल घोषणा करें। सभी की मुफ्त जांच और इलाज की घोषणा कीजिये (Announce a free test and treatment for all)। मनरेगा सहित सभी कामकाजी लोगों को अग्रिम वेतन भुगतान कराइए और करिए। सभी को बीमा संरक्षण की व्यवस्था करिए। संगठित और असंगठित सभी क्षेत्रों के मजदूरों की नौकरियों और वेतनों की सुरक्षा करिए। सभी के लिये सभी जरूरी चीजें सार्वजनिक प्रणाली से मुफ्त उपलब्ध करने की व्यवस्था कीजिये। वरिष्ठ नागरिकों के लिये विशेष रक्षा दल गठित कीजिये। किसानों की फसलों की कटाई और फसल की सही कीमत दिलाने की गारंटी कीजिये।

छोटे व्यापारियों, उद्यमियों और फुटकर व्यापार करने वालों को राहत की घोषणा कीजिये। नियंत्रित हालातों में उद्योग खुलवाने और प्रवासियों को घर पहुंचाने की व्यवस्था कीजिये।

The public accountability of the government is tested only in emergency

उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जहां के सर्वाधिक मजदूर दूसरे राज्यों में फंसे हैं, की राज्य सरकारों को उनके और उनके परिवार के भोजन वस्त्र रहन सहन की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर तत्काल उठानी चाहिये।

सामान्य समय में कुछ भी चल जाता है और चल रहा भी था। पर शासन की जन जबावदेही की परीक्षा तो आपातकाल में ही होती है। इस परीक्षा में अब तक सफल नहीं हैं आप। आगे सफल रहने का प्रयास अवश्य कीजिये।

डॉ. गिरीश

(लेखक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई के सचिव हैं।)

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