नई दिल्ली, 01 नवंबर 2019: चाय भारत की एक प्रमुख नकदी फसल है। भारतीय शोधकर्ताओं के एक नए अध्ययन में चाय की पत्तियों में फफूंद रोगजनकों की पहचान (Identification of fungal pathogens in tea leaves) के लिए कागज जैसी सामान्य सामग्री से बने फोल्डस्कोप नामक एक बेहद सस्ते माइक्रोस्कोप को कारगर पाया गया है।
सिक्किम के चाय बागानों में मुख्य रूप से 14 प्रकार के पादप रोगजनक पाए जाते हैं।
फफूंद रोगजनकों के कारण पत्तियों में धब्बे पड़ जाते हैं, जिससे चाय की गुणवत्ता प्रभावित होती है और उत्पादकों को नुकसान उठाना पड़ता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि सस्ता होने और सरल उपयोग के कारण फोल्डस्कोप का उपयोग फसलों में रोगों की पहचान करने के लिए आसानी से कर सकते हैं।
इस अध्ययन में क्लेडोस्पोरियम क्लेडोस्पोरोइड्स, जाइलेरिया हाइपोक्सिलीन , कलेक्टोरिकम कॉफिएनम, अल्टरनेरिआ अल्टेनाटा समेत कई फफूंद प्रजातियों की पहचान और पृथक्करण किया गया है। इन फफूंद नमूनों को चाय में लीफ स्पॉट और लीफ ब्लाइट रोगों के लिए जिम्मेदार पाया गया है।
नर बहादुर भंडारी डिग्री कॉलेज, सिक्किम विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने फोल्डस्कोप का उपयोग चाय की पत्तियों में कवक रोगजनकों के सर्वेक्षण और उनकी पहचान करने में किया है। शोधकर्ताओं को कहना है कि सस्ती और पोर्टेबल तकनीकें दूरदराज के इलाकों में आसानी से पहुंचाई जा सकती हैं, जिसका लाभ स्थानीय लोगों को मिल सकता। फोल्डस्कोप ऐसी ही एक सामान्य-सी तकनीक है, जो फसलों में रोगों पहचान करने में उपयोगी हो सकता है।
फोल्डस्कोप एक पोर्टेबल फील्ड माइक्रोस्कोप है। शोध कार्यों में उपयोग होने वाले पारंपरिक अनुसंधान सूक्ष्मदर्शी की तरह इसे ऑप्टिकल गुणवत्ता देने के लिए विशेष रूप से डिजाइन किया गया है। इसे कागज की पट्टी पर लेंस लगाकर बनाया जा सकता है और कैमरा फोन
शोधकर्ताओं में शामिल लांजे पी. वांगडी ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि
“अच्छी गुणवत्ता की चाय का उत्पादन बागान मालिकों के लिए एक चुनौती है। उत्पादन की मात्रा और गुणवत्ता कई कारकों पर निर्भर करती है। कवक रोगों के कारण होने वाला फसल नुकसान उनमें से एक है। बीमारियों की रोकथाम के लिए रोगों एवं रोगजनकों की पहचान के साथ-साथ रोगजनकों को पृथक करना महत्वपूर्ण होता है। इसमें फोल्डस्कोप को उपयोगी पाया गया है।”
लांजे पी. वांगडी ने बताया कि
“सिक्किम के चाय बागानों में एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम) और रोगजनकों का जैविक पद्धति से प्रबंधन विशेष रूप से प्रभावी साबित हो सकता है। हम इन रोगों के कृत्रिम रूप से नियंत्रण के लिए अध्ययन कर रहे हैं।”
यह अध्ययन शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं में लांजे पी. वांगडी के अलावा अर्पण प्रधान और श्रीजना मंगर शामिल थे।
उमाशंकर मिश्र
(इंडिया साइंस वायर)