मानसून के रफ्तार पकड़ने के साथ जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्यों में बादल फटने, चट्टानें खिसकने और अचानक बाढ़ आने की घटनाएं होने लगी हैं। सबसे ताजा घटना अमरनाथ की पवित्र गुफा के नजदीक बादल फटने (Cloudburst in Amarnath) की है, जिसमें अनेक लोग मारे गए और कई अन्य लापता हो गए।
आइए समझते हैं बादल क्यों और कैसे फटता है? इस समय पूरे देश पर मानसून छा रहा है। ऐसे में नमी से भरी पूर्वी हवाएं (moist easterly winds) निचले स्तरों से सफर करती हुई पश्चिमी हिमालय तक पहुंच रही हैं। ये हवाएं ऊपरी स्तरों पर बह रही पश्चिमी हवाओं से टकरा रही हैं। परस्पर विपरीत दिशाओं से बह रही इन हवाओं के संगम से कश्मीर क्षेत्र में भारी मात्रा में पानी से लदे बादलों का निर्माण हो रहा है।
पहाड़ी इलाकों में हवा (wind in hilly terrain) तेजी से गश्त नहीं करती और कभी-कभी किसी इलाके में फंस कर रह जाती हैं, जिसकी वजह से मूसलाधार बारिश होती है और यहां तक कि बादल फटने की घटना भी घटित हो जाती है। अमरनाथ गुफा के पास भी ऐसी ही स्थिति बनी। कुल्लू में भी ऐसी ही मौसमी परिस्थितियों के कारण पिछले हफ्ते बादल फटने की घटना हुई।
बादल फटने की घटना (Badal fatna
भारतीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के आकलन संबंधी एक अध्ययन के मुताबिक "भारत में बादल फटने की घटना (cloudburst in india) तब होती है जब कम दबाव के क्षेत्र से जुड़े मानसूनी बादल बंगाल की खाड़ी से गंगा के मैदानों में उत्तर की तरफ हिमालय क्षेत्र तक बढ़ते हैं और बहुत भारी बारिश के रूप में 'फट' जाते हैं।"
बादल फटने का पूर्वानुमान (cloudburst forecast)
कश्मीर क्षेत्र में और अधिक लगातार बारिश के लिए मौसम की स्थितियां अनुकूल बनी रहती हैं। मानसून का पश्चिमी छोर उत्तरी इलाकों में हिमालय की तलहटी की तरफ बढ़ रहा है। इसकी वजह से उत्तराखंड में भारी से बहुत भारी बारिश होने की संभावना है। ऐसे में बादल फटने, अचानक बाढ़ आने और भूस्खलन की घटनाओं की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
जलवायु परिवर्तन की वजह से बादल फटने की घटनाएं और भी तीव्र तथा बार-बार घटित होने की आशंका है। एक शोध के मुताबिक मानसूनी घटनाओं के विश्लेषण से जाहिर होता है कि भारतीय क्षेत्र में गरज-चमक के साथ बारिश होने के दिनों की संख्या (1950-1980 की अपेक्षा 1981-2010) में 34% की गिरावट आई है वहीं, 1969-2015 की अवधि के दौरान (हाई कॉन्फिडेंस) भारत के पश्चिमी तट तथा पश्चिमी हिमालय की तलहटी वाले इलाकों में कम समय में होने वाली अधिक तीव्र बारिश की घटनाओं (कम अवधि में बादल फटना और मिनी क्लाउडबर्स्ट) में बढ़ोत्तरी हुई है।
ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ऊंचाई पर स्थित ग्लेशियल झीलों से पानी के अधिक तीव्रता से वाष्पीकरण के कारण पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में बादल फटने की घटनाओं की आवृत्ति (Frequency of cloudburst events in Western Himalayan region) में लगातार इजाफा हो रहा है। इसके अलावा वैश्विक तापमान में वृद्धि के साथ हवाएं पहले के मुकाबले ज्यादा नमी पकड़ रही हैं, लिहाजा यह बढ़ी हुई नमी कम समय में बहुत तेज बारिश की मात्रा को बढ़ा रही है। वैज्ञानिक प्रमाण पहले ही इस बात की पुष्टि कर चुके हैं कि आने वाले समय में अत्यधिक बारिश और भी ज्यादा तीव्र होगी और उसकी आवृत्ति भी बढ़ जाएगी।
ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बादल फटने की और ज्यादा घटनाएं हो सकती हैं और उनकी तीव्रता भी पहले से ज्यादा होने के प्रबल आसार हैं।
Cloudburst in Amarnath is the result of climate change?