नई दिल्ली 23 जुलाई. बतौर बाल कलाकार अपने सिने करियर की शुरूआत करने वाले महमूद, जिन्होंने अपने विशिष्ट अंदाज, हाव-भाव और आवाज से लगभग पांच दशक तक दर्शकों को भरपूर मनोरंजन किया, की आज पुण्यतिथि है। 23 जुलाई 2004 को ही महमूद का निधन हुआ था।
वर्ष 1933 में जन्मे महमूद के पिता मुमताज अली बॉम्बे टॉकीज स्टूडियो में काम किया करते थे। घर की आर्थिक जरूरत को पूरा करने के लिये महमूद, मलाड और विरार के बीच चलने वाली लोकल ट्रेन में टॉफिया बेचा करते थे। बचपन के दिनों से ही महमूद का रूझान अभिनय की ओर था और वह अभिनेता बनना चाहते थे। अपने पिता की सिफारिश की वजह से महमूद को बॉम्बे टाकीज की वर्ष 1943 में प्रदर्शित फिल्म ‘किस्मत’ (Bombay Talkies 'Kismet' released in the year 1943) में अभिनेता अशोक कुमार के बचपन की भूमिका निभाने का मौका मिल गया।
फोटो साभार विकिपीडिया
इस बीच महमूद ने कार ड्राइव करना सीखा और निर्माता ज्ञान मुखर्जी (Producer Gyan Mukherjee) के यहां बतौर ड्राइवर काम करने लगे, क्योंकि इसी बहाने उन्हें मालिक के साथ हर दिन स्टूडियो जाने का मौका मिल जाया करता था, जहां वह कलाकारों को करीब से देख
महमूद की किस्मत का सितारा तब चमका जब फिल्म ‘नादान’ की शूटिंग के दौरान अभिनेत्री मधुबाला (Actress madhubala) के सामने एक जूनियर कलाकार लगातार दस रीटेक के बाद भी अपना संवाद नहीं बोल पाया। फिल्म निर्देशक हीरा सिंह ने यह संवाद महमूद को बोलने के लिये दिया गया जिसे उन्होंने बिना रिटेक एक बार में ही ओके कर दिया। इस फिल्म में महमूद को बतौर 300 रुपये मिले जबकि बतौर ड्राइवर महमूद को महीने मे मात्र 75 रुपये ही मिला करते थे।
महमूद ने ड्राइवर का काम छोड़ दिया और अपना नाम जूनियर आर्टिस्ट एसोसिएशन (Junior Artist Association) में दर्ज करा कर फिल्मों में काम पाने के लिये संघर्ष करना शुरू कर दिया। इसके बाद बतौर जूनियर आर्टिस्ट महमूद ने दो बीघा जमीन, जागृति, सी.आई.डी, प्यासा जैसी फिल्मों में छोटे-मोटे रोल किये जिनसे उन्हें कुछ खास फायदा नहीं हुआ।
इसी दौरान महमूद को ए वी मयप्पन द्वारा स्थापित भारतीय फिल्म निर्माण स्टूडियो एवीएम प्रोडक्शंस (AVM Productions) के बैनर तले बनने वाली फिल्म मिस मैरी के लिये स्क्रीन टेस्ट दिया। लेकिन एवीएम प्रोडक्शंस बैनर ने महमूद को स्क्रीन टेस्ट में फेल कर दिया।
महमूद के बारे में एवीएम प्रोडक्शंस की राय कुछ इस तरह की थी कि वह ना कभी अभिनय कर सकते हैं ना ही अभिनेता बन सकते है। बाद के दिनों में एवीएम बैनर की महमूद के बारे में न सिर्फ राय बदली साथ ही उन्होंने महमूद को लेकर बतौर अभिनेता फिल्म ‘मैं सुदर हूं’ (Main Sunder Hoon) का निर्माण भी किया। इस फिल्म में महमूद के साथ बिस्वजीत, लीना चंदावरकर, शबनम, अरुणा ईरानी व सुलोचना लाटकर, ने भी अदाकारी की थी।
इसी दौरान महमूद रिश्तेदार कमाल अमरोही के पास फिल्म में काम मांगने के लिये गये तो उन्होंने महमूद को यहां तक कह दिया कि आप अभिनेता मुमताज अली के पुत्र हैं और जरूरी नहीं है कि एक अभिनेता का पुत्र भी अभिनेता बन सके। आपके पास फिल्मों में अभिनय करने की योग्यता (Ability to act in films) नहीं है। आप चाहे तो मुझसे कुछ पैसे लेकर कोई अलग व्यवसाय कर सकते हैं।
इस तरह की बात सुनकर कोई भी मायूस हो सकता है और फिल्म इंडस्ट्री को अलविदा कह सकता है, लेकिन महमूद ने इस बात को चैलेंज की तरह लिया और नये जोशो-खरोश के साथ काम करना जारी रखा।
किसी की सिफारिश पर अभिनेता बनने से इंकार कर दिया था महमूद ने
इसी दौरान महमूद को बी.आर.चोपड़ा की कैंप से बुलावा आया और महमूद को फिल्म ‘एक ही रास्ता’ में काम करने का प्रस्ताव मिला।
महमूद ने महसूस किया कि अचानक इतने बड़े बैनर की फिल्म में काम मिलना महज एक संयोग नहीं है, इसमें जरूर कोई बात है। बाद में जब उन्हें मालूम हुआ कि यह फिल्म उन्हें अपनी पत्नी की बहन मीना कुमारी के प्रयास से हसिल हुयी है तो उन्होंने फिल्म एक ही रास्ता में काम करने से यह कहकर मना कर दिया कि वह फिल्म इंडस्ट्री में अपने बलबूते अभिनेता बनना चाहते हैं ना कि किसी की सिफारिश पर।
Mehmood got a good role in the film Parvarish released in 1958.
इस बीच महमूद ने संघर्ष करना जारी रखा। जल्द ही महमूद की मेहनत रंग लायी और वर्ष 1958 में प्रदर्शित फिल्म ‘परवरिश’ (The film 'Parvarish' released in 1958) में उन्हें एक अच्छी भूमिका मिल गयी। इस फिल्म में महमूद ने राजकपूर के भाई की भूमिका निभायी। इसके बाद उन्हें एल.वी. प्रसाद की फिल्म ‘छोटी बहन’ में काम करने का अवसर मिला जो उनके सिने करियर के लिये अहम फिल्म साबित हुयी। फिल्म छोटी बहन में बतौर पारिश्रमिक महमूद को छह हजार रुपये मिले। फिल्म की सफलता के बाद बतौर अभिनेता महमूद फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गये। फिल्म में उनके अभिनय को देख टाइम्स ऑफ इंडिया ने उनकी जमकर सराहना की।
वर्ष 1961 में महमूद को फिल्म ‘ससुराल’ में काम करने का अवसर मिला। इस फिल्म की सफलता के बाद बतौर हास्य अभिनेता महमूद फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गये। फिल्म ससुराल में उनकी जोड़ी अभिनेत्री शुभा खोटे के साथ काफी पसंद की गयी।
और अभिनेता से प्रोड्यूसर बन गए महमूद
इसी वर्ष महमूद ने अपनी पहली फिल्म ‘छोटे नवाब’ का निर्माण किया (Mehmood produced his first film 'Chhote Nawab')। इसके साथ ही इस फिल्म के जरिये महमूद ने आर.डी. बर्मन उर्फ पंचम दा (RD Burman alias Pancham da) को बतौर संगीतकार फिल्म इंडस्ट्री में पहली बार पेश किया।
अपने चरित्र में आई एकरूपता से बचने के लिये महमूद ने अपने आप को विभिन्न प्रकार की भूमिका में पेश किया। इसी क्रम में वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म ‘पड़ोसन’ का नाम सबसे पहले आता है। फिल्म पड़ोसन में महमूद ने नकारात्मक भूमिका निभाई और दर्शकों की वाहवाही लूटने मे सफल रहे। फिल्म मे महमूद पर फिल्माया एक गाना ‘एक चतुर नार करके श्रृंगार’ काफी लोकप्रिय हुआ।
वर्ष 1970 में प्रदर्शित फिल्म ‘हमजोली’ में महमूद के अभिनय के विविध रूप दर्शकों को देखने को मिले। इस फिल्म में महमूद ने तिहरी भूमिका निभायी और दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।
Mahmood was awarded the Filmfare Award three times in his cine career
महमूद ने कई फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया। महमूद ने कई फिल्मों में अपने पार्श्वगायन से भी श्रोताओं को अपना दीवाना बनाया। महमूद को अपने सिने कैरियर में तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पांच दशक से अधिक लंबे सिने कैरियर में करीब 300 फिल्मों में अपने अभिनय का जौहर दिखाने वाले महमूद 23 जुलाई 2004 को इस दुनिया से हमेशा के लिए रुखसत हो गये।
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