कामरेड एके राय (Comrade AK Roy) नहीं होते तो हम चाहे जो होते, पत्रकार नहीं होते। इलाहाबाद विश्वविद्यालय को खारिज करके जेएनयू तक दौड़ रहे थे अकादमिक महत्वाकांक्षा के खातिर।
कोयलांचल में जाकर एके राय के काम से जुड़ने की ख्वाहिश दैनिक आवाज धनबाद तक ले गयी। सौजन्य उर्मिलेश (Urmilesh)। मदन कश्यप (Madan Kashyap) पहले से आवाज में थे।
पत्रकार तो बन गए। कैसे पत्रकार बनें, यह एके राय से सीखा, जो पत्रकारिता से अपना खर्च चलाते थे। उनके जरिये महाश्वेता देवी से 1981 में मुलाकात हो गयी।
मेरे पिता मुझे सामाजिक कार्यकर्ता बनाना चाहते थे। गांव-गांव ले जाकर उन्होंने मुझे जनता के बीच रहना सिखाया। ढिमरी ब्लॉक के मुकदमे की सुनवाई में वे मुझे नैनीताल ले गए, तब मैं कक्षा दो में पढ़ता था। लेकिन मेरी अकादमिक महत्वाकांक्षा थr और मwx पिता की विरासत से दूर भागने के फिराक में था।
कामरेड एके राय ने सिखाया कि सही मायने में अकादमिक वही होता है जो जनता से सीखकर जनता के हक की लड़ाई में शामिल हो। महाश्वेता दी से सीखा, वर्तनी, व्याकरण, भाषा, शैली सब बेकार है, जब तक न आपके पाँव इस देश के कीचड़ पानी में घुटने तक धंसा न हो। कुम्हार की रचनात्मकता, जो खून पसीने से सनी हो, किसान मजदूर आदिवासी दलित स्त्री के हुनर से बनती पकती है रचनात्मकता, जो अकादमिक महत्वाकांक्षा, पद, पैसा, हैसियत, सम्मान, पुरस्कार जैसी तमाम चीजों से बड़ी कोई चीज है।
हमारे समय के सबसे सच्चे पत्रकार जननेता कामरेड एके राय को पहली पुण्य तिथि पर लाल सलाम। जोहार।
पलाश विश्वास