झारखंड के गढ़वा जिला मुख्यालय से करीब 55 कि0 मी0 दूर और भण्डरिया प्रखण्ड मुख्यालय से करीब 30 कि0 मी0 उत्तर पूर्व घने जंगलों के बीच बसा है 700 की अबादी वाला एक आदिवासी बहुल कुरून नामक एक गाँव। इसी गाँव की 70 वर्षीय सोमारिया देवी की भूख से मौत (Somaria Devi dies of hunger) पिछले 02 अप्रैल 2020 की शाम हो गई।
सोमरिया देवी अपने 75 वर्षीय पति लच्छू लोहरा के साथ रहती थी। उसकी कोई संतान नहीं थी। मृत्यु के पूर्व यह दम्पति करीब 4 दिनों से अनाज के अभाव में कुछ खाया नहीं था। इसके पहले भी ये दोनों बुजुर्ग किसी प्रकार आधा पेट खाकर गुजारा करते थे।
इसी गांव से करीब आधा कि0 मी0 दूर अलग-थलग 7 लोहरा परिवार रहता है। इसी लोहरा परिवार की मृतका सोमरिया देवी अपने पति लच्छू लोहरा के साथ रहती थी। बिनोद लोहरा इनका भतीजा था। इन परिवारों में से किन्हीं के पास नियमित आय का कोई निश्चित श्रोत नहीं है और न ही इनके पास जमीन है, जिससे वे मौसमी फसलें पैदा कर पाते। जबकि इस गांव के लोगों के आय का एकमात्र साधन खेतीबाड़ी ही है।
हमारी व्यवस्था पर सबसे बड़ा प्रश्न यह खड़ा होता है कि मृतका सोमरिया और उसके पति दोनों ही 10—15 वर्ष पहले ही वृद्धावस्था पेंशन पाने की अर्हता पूरा कर चुके थे, बावजूद उन्हें आज तक पेंशन नहीं दी गई। गाँव के 167 परिवारों को पी0 एच0 कार्ड और 5 परिवारों को अन्त्योदय कार्ड की सूची में शामिल किया गया है। लेकिन दुःखद पहलू यह है कि इन बुजुर्गों का राशन कार्ड भी नहीं बना है। गांव में 12 असुर/कोरवा आदिम जनजाति परिवार रहते हैं। मगर सर्वोच्च न्यायालय के 2 मई 2003 के आदेश को ताक पर रखकर आजतक इन्हें अन्त्योदय कार्ड निर्गत नहीं किया गया है।
बताते चलें कि लच्छू
गांव के पारा शिक्षक दिनेश, पंचायत सेवक से लगातार अनाज मुहैया कराने की आग्रह करते रहे लेकिन पंचायतकर्मी इस मामले में बिल्कुल भी गंभीर नहीं रहे। तुर्रा यह कि पंचायत सेवक यह बताते रहे कि खाद्यान्न वितरण हेतु पैसे की निकासी हो चुकी है और मुखिया के हाथ में राशि दे दी गई है। मगर मुखिया द्वारा लापरवाही बरती जाती रही।
इधर मृतका सोमरिया का भतीजा विनोद भी अनाज के अभाव में काफी परेशान था, अत: वह घटना के 4 दिन पूर्व अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ अपने ससुराल उलमान (चैनपर, पलामू) इस उम्मीद में पैदल ही चला गया कि शायद वहां से कुछ खाद्यान्न का इन्तजाम हो जाए। वह और 2 बच्चों को अपने बड़े भाई के पास छोड़ दिया था, जो बुजुर्ग दम्पति के घर से करीब आधा कि0 मी0 दूर रहते हैं। बुजुर्ग दम्पति गांव और आस-पास के परिवारों से मांगकर लाते और किसी तरह बनाकर खाते थे। लेकिन इन्हें 3—4 दिन से कहीं से कुछ नहीं मिला। अंतत: 02 अप्रैल 2020 को सोमरिया बेसुध हो गई, जिसकी सूचना गांव के ही किसी ने बिनोद को दी कि उसकी चाची की हालत बेहद गंभीर है, जल्दी से घर आ जाओ। बिनोद शाम तक पैदल ही किसी तरह सपरिवार अपने घर पहुंचा। उसके घर पहुंचते ही उसकी चाची सोमरिया ने दम तोड़ दिया।
जैसा कि हर बार होता है, अगले दिन भण्डरिया के प्रखण्ड विकास पदाधिकारी (Block Development Officer of Bhandariya) मृतका के घर पहुंचे। शोकाकुल लच्छू लोहरा को 10 किलो खाद्यान्न और 6000 रूपये दिए गए। लच्छू लोहरा सरकारी बाबूओं को साफ कहते हैं कि उनकी पत्नी की मृत्यु भूख से हो गई है। बीडीओ साहब ने मृतका के घर के अन्दर गहराई से मुआयना कियर, जहां उन्हें साफ दिखा कि न चूल्हे में कई दिनों से न खाना बना था और न ही घर में मुट्ठीभर कोई अन्न का दाना था, सिर्फ 3-4 पुराने बर्त्तन ही इधर-उधर बिखरे पड़े थे।
खबर पर जिला मुख्यालय भी सक्रिय हुआ, उपायुक्त हर्ष मंगला के आदेश पर अपर समाहर्ता प्रवीण गगराई और रंका के अनुमण्डल अधिकारी संजय पाण्डेय 6 अप्रैल को घटना की विस्तृत जांच हेतु गांव पहुंचे। इन अधिकारियों के समक्ष भी लच्छू लोहरा दृढ़ता से दोहराता कि उसकी पत्नी की मौत भूख से हो गई है।
सोमरिया की जान जाने के बाद ग्राम पंचायत मुखिया 6 अप्रैल से जरूरतमंदो को राशन देना चालू किया है। बावजूद अभी तक पंचायत स्तर पर मुख्यमंत्री दीदी किचन जैसी व्यवस्था शुरू नहीं की गई है, जहां ऐसे जरूरतमदों को खाना मिल सके।
प्रशासन अपना गाल बजा रहा है। इनके बजते गाल से संवेदनहीनता साफ झलकती है। गढ़वा जिला के जिला अधिकारी हर्ष मंगला कहते हैं कि ''महिला की मौत भूख से नहीं हुई है, उसकी जांच कराई गई है।''
सबसे हास्यास्पद बयान रंका के अनुमण्डल अधिकारी संजय पाण्डेय का है, वे कहते हैं कि
''भूख से मरने का सवाल ही नहीं है, क्योंकि बगल के घर में खाना बना था, अत: उसे खाना मिला ही होगा।''
अपर समाहर्ता प्रवीण गगराई भी संजय पाण्डेय की राग में राग मिलाते हुए एक कदम आगे बढ़ते हुए कहते हैं कि
''मृतका का पोस्टमार्टम नहीं हुआ है। पोस्टमार्टम हुआ होता तो सब पता चल जाता। फिर भी की गई जांच में मामला साफ हो गया।''
''मृतका महिला काफी बुजुर्ग थी। उसका शरीर काम नहीं कर था। उसकी उम्र में गांव के लोग जीवित नहीं रह पाते हैं। गांव में अक्सर लोग थोड़ा बहुत महुआ के शराब का सेवन भी करते हैं।''
बता दें कि पिछले 6 मार्च 2020 को झारखंड के ही बोकारो जिला मुख्यालय से लगभग 50 कि.मी. दूर कसमार प्रखंड अंतर्गत सिंहपुर पंचायत का करमा शंकरडीह टोला निवासी भूखल घासी की भी भूख से मौत हो गई थी। उसकी मौत के पहले उसके घर में लगातार चार दिनों तक चुल्हा नहीं जला था, मतलब बीमार भूखल घासी को लगातार चार दिनों से खाना नहीं मिला था। इसकी खबर जब एक स्थानीय अखबार में आई, तब मानो बोकारो जिले के ही नहीं बल्कि राज्य के सरकारी अमलों में उनके कर्तव्य बोध का मानो उफान उमड़ पड़ा था। उसके पांच बच्चे है, जिसमें तीन बेटी व दो बेटों में सबसे बड़े बेटे की उम्र 14 वर्ष है।
दूसरी तरफ भूखल घासी का नरेगा रोजगार कार्ड भी था, जिसकी संख्या - JH-20-007-013-003/211 है। बावजूद उसे फरवरी 2010 के बाद से कार्य उपलब्ध नहीं कराया गया था।
बता दें कि जो आंकड़े उपलब्ध हैं उसके अनुसार दिसम्बर 2016 से अबतक झारखंड में भूख से लगभग 25 लोगों की मौत भोजन की अनुपलब्धता के कारण हुई है। और हर मौत को सरकारें व प्रशासन बीमारी बताने का हर संभव प्रयास करता रहा है।