भौंकते सिर्फ कुत्ते ही नहीं हैं। दिमाग से पैदल, सोच-समझ शून्य, अंधभक्तों में शुमार चीत्कार करने वाले चिरांद भी इसी श्रेणी में आते हैं। एक विशेष किस्म का चीर धारण कर खूब भौंका-भांकी चल रही है इन दिनों। लोगों को ट्रोल किया जा रहा है।
खैर, सबका अपना-अपना सोचना है। सबको आजादी है। अपनी बात करो और दूसरों को भी मौका दो। विचारों का टकराव ही स्वस्थ लोकतंत्र का सूत्रपात है।
रेनू से बातचीत करते हुए हम खटोला कैप्टन खड़क सिंह कार्की जी के घर पहुँच गए थे। अंकल जी बड़ी सी कुर्सी पर बैठे थे। नगर के युवा पत्रकार दिपांकर भी मौजूद थे। गेट पर ब्रजेश भाई ने गर्मजोशी से स्वागत किया। बिना हाथ और गले मिलाए, अपने चिर-परिचय अंदाज में।
अंकल जी मुझसे बहुत स्नेह रखते हैं। देखते ही खड़े हो गये और फिर दुनिया भर की किस्से-कहानी चल निकली।
ब्रजेश भाई बोले, "लाकडाउन में रोज पीने वालों की हत्या हो रखी है।"
खटोला रिटायर फौजियों का गाँव है, सो यहाँ कैन्टीन की शराब भी आसानी से मिल जाती है। एक माह लॉकडाउन में पीने वाले (Drinkers in lockdown) अंग्रेजी से कच्ची पर आ गये हैं। शराब की दुकान (Liquor store in lockdown) खुलने की पैरवी करने वालों में शहरी और सम्पन्न तबका शामिल है। खैर, जरूरत तो होने वाली ही ठहरी। चाय पी, किताब दी। अंकल जी ने पत्रिका के लिए कुछ धनराशि दी और गाँव और किसान पुस्तक का मूल्य सौ रुपये भी दिया।
वापसी में सुभाष चौक से गुजरा तो पता चला कि रिटायर फौजियों को तैनात किया गया है। 500₹ प्रति दिन के
"आम आदमी छोड़ो पुलिस के जवान भी अनुशासन मानने को तैयार नहीं हैं।"
वार्ड नम्बर दो मैं अपने पूर्व स्टूडेंट नितिन और सरिता के घर पहुँचा। सरिता अंग्रेजी में एमए कर चुकी है और एक स्कूल में पढ़ा रही है। नितिन भी एमए अंग्रेजी से करके सिडकुल की एक कम्पनी में एकाउंट का काम देख रहा है। कविता, ग़ज़ल लिखने का शौकीन है। रचना में वजन कैसे पैदा किया जाए, चर्चा हुई। सोचो उतना ही नहीं जितना हमें दिख रहा है, झांकों बाहर भी जो अनन्त है। व्यापक सोचने से ही रचना निखर सकती है।
सरिता बीएड करना चाह रही है। साहित्य पढ़ना शुरू करेगी, ऐसा उसने मुझसे वादा किया है। घर कुछ साल पहले नया बना है। लेकिन नितिन ने पुस्तक दीर्घा नहीं बनायी है। इस कमी को पूरा करेगा। माँ ने लिकर चाय बनायी। बिस्कुट और नमकीन खाकर हम शिवानी चौधरी के घर चले गये। राजमा की सब्जी खाई और कोरोना पर विस्तार से बातचीत हुई। व्हाट्स एप बहुत कुछ भ्रम भी फैला रहा है, जिसपर रोक लगनी चाहिए। देश-विदेश में कोरोना से निपटने की तैयारी पर भी विमर्श हुआ। वास्तव में हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाएं बहुत पिछड़ी हुईं हैं। खैर, सरकार अब मन्दिर-मस्जिद और दूसरे मसलों को छोड़कर अपने देश की शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करेगी, इसी उम्मीद के साथ मैं घर आ गया।
रूपेश कुमार सिंह
Rupesh Kumar Singh
समाजोत्थान संस्थान
दिनेशपुर, ऊधम सिंह नगर