वैश्विक महामारी कोरोना से बचाव के लिए सतर्क और सचेत रहें। संक्रमण से बचने के लिए शारीरिक दूरी भी जरूरी है। लेकिन सामाजिक सरोकार और सम्बन्ध, सम्वाद बनाये रखना भी जरूरी है।
कोरोना के नाम सामाजिक दूरी की अश्पृश्यता की वजह से बाहर से आने वाले सभी लोगों से अस्पृश्यता, वर्ग, जाति, धर्म, नस्ल,भाषा और राजनीतिक मतभेद की वजह से अपनों से घृणा और भेदभाव से बचना कोरोना से बचाव की तरह महत्वपूर्ण है।
यह मनुष्यता और सभ्यता का तकाजा है।
याद रखें कि सिर्फ कोरोना संक्रमण से कोई नहीं मरता।
गम्भीर बीमारियों के इलाज न होने, कुपोषण और प्रतिरोधक क्षमता के अभाव की स्थिति में ही कोरोना मारक होता है।
भारत में अब कोरोना संक्रमण से ठीक होने वाले 60 प्रतिशत से ज्यादा लोग हैं।
आस पास कोरोना संक्रमण होने से सावधानी और सतर्कता के साथ साथ वैज्ञानिक चिकित्सा पर भरोसा करने की जरूरत है। आतंकित होकर दरवाजा खिड़कियां बन्द करने से अर्थव्यवस्था ठप करने या आजीविका और रोज़गार खत्म करने जैसे आत्मघाती कदमों से बचें।
जो लोग कोरोना और धारा 188 का इस्तेमाल चुनावी ध्रुवीकरण और लोकतंत्र, नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकार, मेहनतकशों के हक हक़ूक़ खत्म करने के लिए कोरोना का इस्तेमाल आपदा को अवसर बनाकर जनसंहार के हथियार के रूप में कर रहे हैं, उनके झांसे में न आएं। सामाजिक ताना बाना को इस आपदा से निबटने के लिए और मजबूत करने की जरूरत है।
मेरे गांव बसंतीपुर के क्वारंटाइन सेंटर में 24 लोग और होम क्वारंटाइन में सारे के सारे लोग स्वस्थ और सकुशल हैं। पड़ोसी गांव अमरपुर के बीस लोग भी क्वारंटाइन से लौटकर स्वस्थ व सकुशल हैं।
कंटेन्मेंट जोन दिल्ली और गुजरात और महाराष्ट्र से लौटे कुछ लोग अस्वस्थ जरूर हैं, जो
इस संकट की घड़ी में किसी भी उकसावे में आकर आपस में लड़े नहीं। सब्र करें, कोरोना जरूर हारेगा।
नफरत से नहीं मुहब्बत से कोरोना हारेगा।
पीड़ितों के साथ मजबूती से खड़ा होना ही इंसानियत का तकाजा है।
चाहे आप किसी भी पार्टी के समर्थक हों, राजनीतिक मतभेद के चलते मुहब्बत की फ़िज़ा को ज़हरीला बनाने से बचें।
जनपप्रतिनिधियों से खास तौर पर हमारा करबद्ध निवेदन यही है। आखिर समाज का नेतृत्व जो करते हैं जिम्मेदारी उनकी ज्यादा है और उन्हें थोड़ा सा बड़ा दिल और खुला दिमाग रखना ही चाहिए।
बेमतलब के झगड़े फसाद से हम सभी लहूलुहान होते हैं। विवादों को आपस में मिल बैठकर सुलझाया जा सकता है। हिंसा को किसी भी सूरत में बढ़ने देना गलत है।
मेरे पिताजी जिंदगी भर गांव और समाज को एकजुट करए रहे चाहे उसकी कितनी ही, कैसी ही कीमत उन्होंने खुद अदा की।
मेरे दिवंगत पिता को किसी भी रूप में स्मरण करते हों तो अत्यंत दुख के साथ लिखे जा रहे मेरे इस निवेदन पर जरूर गौर करें
पलाश विश्वास
बसंतीपुर