नई दिल्ली, 22 जून 2020. केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह, जो कि एक प्रसिद्ध डायबेटोलॉजिस्ट भी हैं, ने बताया है कि कोविड मधुमेह रोगियों के लिए विकट स्थिति उत्पन्न कर रहा है।
"दिया-वी कॉन 2020" के नाम से वर्चुअल मंच पर पहली बार आयोजित हुए "वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ इंडियन एकेडमी ऑफ डायबिटीज" (World Congress of Indian Academy of Diabetes) में मुख्य अतिथि के रूप में उद्घाटन भाषण देते हुए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि कई अन्य क्षेत्रों की तरह, यहां तक कि शैक्षणिक क्षेत्र में भी, कोविड ने हमें विपरीत परिस्थितियों में नए मानदंडों की तलाश करने के लिए प्रेरित किया है, जो कि इतने बड़े परिमाण के साथ इस प्रकार के एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की सफलता में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है।
उन्होंने मुंबई के प्रसिद्ध एंडोक्रिनोलॉजिस्ट डॉ. शशांक जोशी (Famous endocrinologist, Dr. Shashank R Joshi from Mumbai), अहमदाबाद के डॉ. बंशी साबू और आयोजकों की पूरी टीम को दुनिया के चार महाद्वीपों के सर्वश्रेष्ठ फैकल्टी को एक साथ लाने के लिए बधाई दी, जिसमें डायबिटीज के विश्व प्रसिद्ध विद्वान डॉ. एंड्रयू बॉल्टन (Dr. Andrew J.M. Boulton, world renowned scholar of diabetes), राष्ट्रपति इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन, डॉ. फ़्रेसी ज़ेवियर, डॉ. इटारनर राज, डॉ. फ्लोरियन तोताई के साथ-साथ डॉ. वी मोहन, डॉ. अरविंद गुप्ता जैसे प्रमुख भारतीय मधुमेह विशेषज्ञ और अन्य लोग शामिल हैं।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि मधुमेह से पीड़ित लोगों की स्थिति इम्यूनो- समाविष्ट होती है, जो उनकी प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देती है और उन्हें कोरोना जैसे संक्रमणों के साथ-साथ उसके परिणामी जटिलताओं के प्रति ज्यादा असुरक्षित बनाती है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि इस प्रकार की स्थिति में डायबेटोलॉजिस्ट के लिए अपने रोगियों के प्रति एक विशेष जिम्मेदारी बन जाती है कि वह अपने रोगी के रक्त शर्करा के स्तर को कठोरता के साथ नियंत्रण में रखे, जिससे उन्हें संक्रमण से बचाया जा सके और ठीक उसी समय उन्हें सावधानियां अपनाने वाले अभ्यासों के बारे में शिक्षित करे।
उन्होंने कहा कि यद्यपि भारत में अन्य देशों की तुलना में कोविड से होने वाली मृत्यु दर कम है, लेकिन यहां पर कोरोना पॉजिटिव मरीजों की हुई मौतों में ज्यादातर मौतों में वे लोग शामिल थे जो सह-रुग्णता या मधुमेह जैसे पुराने रोगों से भी पीड़ित थे।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि कोरोना ने हमें नए मानदंडों के साथ जीना सिखाया है, लेकिन इसने चिकित्सकों को स्वच्छता सहित प्रबंधन के गैर-औषधीय तरीकों पर जोर देने के लिए भी इंगित किया है, जो हाल के वर्षों में किसी प्रकार से अपने वास्तविक महत्व को खो चुके थे।