गौ रक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा पर प्रधानमंत्री द्वारा कठोर कारवाई करने की बात कहा जाना गौ रक्षा पर फिर से एक नया पृष्ठ जोड़ता है। कभी गौ रक्षा की बात.... फिर बात से लोगों में उत्तेजना...... फिर गौ रक्षा के नाम पर हिंसा.......जब हिंसा कई दिनों तक चालू रही तब सरकार की ओर से कानून हाथ में न लेने, सौहार्दपूर्ण माहौल बनाने की अपील की बात सामने आई।
इधर कुछ दिनों से जब यह सिलसिला थोड़ा थमा तो फिर से अखबारों में गौ रक्षा पर खबर नजर आने लगी। कहीं ‘‘गौवंशीय हत्या प्रतिषेध अधिनियम’’ पर सरकार के तेज रूख नजर आए तो कहीं प्रतिबंधित मांस वाले बूचड़खाने पर प्रशासन की रेड।
अब प्रधानमंत्री का हिंसा करने वालों के खिलाफ कड़ी कारवाई करने का स्टेटमेंट। ऐसी खबरें फिर से खो रहे गौ रक्षा के मुद्दे को ताजा करते नजर आते हैं।
पिछले कुछ दिनों में गौ मांस के नाम पर, गाय की हत्या के नाम पर या बच्चा चोर के नाम पर होने वाली बहुत सी घटनाएं घटी। कभी झारखंड के बोकारो जिला के चंद्रपुरा में फरवरी 2017 में महुदा के नर्रा निवासी नईमुद्दीन को इसलिए पीट-पीट कर अधमरा कर दिया गया कि उसपर बच्चा चोर होने का शक था, जिसकी हॉस्पीटल में मौत हो गयी।
18 मई को सरायकेला खरसांवा जिले के राजनगर स्थित शोभापुर में बच्चा चोर कहकर चार लोगों को मार डाला गया, गिरिडीह के बेंगाबाद में 7 फरवरी को चार ट्रकों को इसलिए फूंक दिया गया क्योंकि उसमें गौ मांस के होने का शक था।
हरियाणा के बल्लभगढ़ में ट्रेन मे सफर कर रहे 16 साल के मासूम जुनैद का सीट विवाद से झड़प शुरू कर उसके पास बीफ होने का संदेह जताकर उसे पीटकर मार डाला गया।
रामगढ़ के अलीमुद्दीन अंसारी को 100 लोगों की भीड़ ने मिलकर इसलिए मार डाला क्योंकि उसकी गाड़ी
देवरी थाना के बेरिया हटियाटांड़ के उस्मान अंसारी जो अपनी गाय के मर जाने के बाद उसे बगल के नाला में फेंक आया था, को इसलिए अधमरा किया गया व उसके घर बार को जलाकर राख कर दिया गया, क्योंकि उसपर गाय को काटकर फेंकने का अंदेशा लगाया गया था।
इसके बावजूद सारी घटनाओं में जो लोग इस अनहोनी के षिकार हुए वे प्रायः मुस्लिम समुदाय के ही पाए गये, साथ ही इन घटनाओं को अंजाम देने वाली ताकत के रूप में लोगों की भीड़ को ही दिखाया गया। इससे ऐसा मालूम पड़ता है कि धार्मिक भावना से लैस होकर आम लोगों द्वारा इस घटनाओं को अंजाम दिया गया है। क्या यह मान लिया जाए कि इस उन्माद के पीछे वाकई में उन आम लोगों की ही भीड़ होती रही है जो कभी उनके पड़ोसी भाई कहलाते थे?
क्या वास्तव में उपद्रवी भीड़ है?-
वैसे तो सुनने और देखने से यही लगता है कि यह सारी घटनाओं को अंजाम देने वाली ताकत वाकई में लोगों की भीड़ ही है मगर गौर किया जाए तो मालूम पड़ेगा कि इसके पीछे कौन सी ताकत है?
रामगढ़ के अलीमुद्दीन अंसारी की हत्या को अजांम देने वाली ताकत लोगों की भीड़ नजर आ रही थी, जिन्हें उसकी गाड़ी में गौ मांस होने का संदेह था, जिसके कारण भीड़ के द्वारा उसके गाड़ी को जला डाला गया और उसे जान से मार डाला गया। मगर इसका खुलासा होने पर पता चलता है कि इस हत्या की पहले से ही साजिश रची गई थी। और ऐसी साजिश रचने वाले कुछ बजरंग दल के लोग व भाजपा नेता थे। जो सही मौके की तलाश के लिए चार घंटे पहले से उसके पीछे लगे हुए थे।
जुनैद की हत्या के वक्त भी भीड़ का नाम सामने आया था मगर बाद में उसके कत्ल करने वाले आरोपियों के रूप में कुछ लोगों को पकड़ गया।
देवरी की घटना को भी देखें तो उस्मान अंसारी जो अपनी मरी हुई गाय को नाले में फेंक आता है जब उस्मान उसे नाला में फेंकता है तब वह साबूत रहती है मगर जब उसे लोग देखते हैं तब उसका सर-पैर गायब मिलता है। उस्मान ने तो उसे साबुत फेंका था फिर उसके सर और धड़ को अलग करने वाले कौन लोग थे? ये वही लोग थे जो गाय के नाम पर उन्माद फैलाना चाहते थे। एक तरफ जहां धर्म के नाम पर फंसे लोग इस साजिश की ओर ध्यान नहीं दे पाते तो वहीं दूसरी तरफ इस हत्याकांडों के खिलाफ लोगों द्वारा आंदोलन के रूप में आवाज भी उठाए गये। ये हत्याएं जिसने भी किया है वह न ही गाय का रक्षक हो सकता है और न ही गाय का दुश्मन बल्कि वह बस लोगों के बीच में धर्म के नाम पर उन्माद फैलाने वाला एक गैरसामाजिक तत्व है। वास्तव में धर्म के नाम पर, गौ रक्षा के नाम पर ऐसी घटनाओं को अंजाम देने वाले ऐसे ही उन्मादी तत्व होते है जो भीड़ का सहारा लेकर इस घटना को अंजाम देते हैं।
लोगों में पैदा की जा रहीं उन्मादी भावनाएं-
एक तरफ लोग सारे धर्म के प्रति अपना सम्मान भावना प्रकट करते हैं और दूसरी तरफ ऐसी भावनाओं में फंस भी जाते है। ऐसी भावना में फंसने से पहले लोगों को यह सोचना चाहिए कि क्या पीछले दो चार सालों से ही गौ उनकी माता हुई है और दो चार सालों से ही उनके प्रिय पड़ोसी ने गौ मांस खाना शुरू किया है। वैसे तो धर्म अफीम ही है इसे जड़ से हर जगह से उखाड़ फेंकने की जरूरत ही है। मगर जब जो लोग धर्म को अपनी पहचान मानते हैं उन लोगों को यह समझना चाहिए कि हमारे अपने धर्म के सम्मान के लिए किसी जानवर की पूजा करते व पूजा-पाठ में भैंसा और बकरा की बलि देना अपराध नहीं हैं तो दूसरे धर्म के लोगों द्वारा अपने धर्म के नियम के अनुसार किसी जानवर की बलि चढ़ाया क्यों गलत है? जैसे हमारे धर्म में हमारे अपने नियम है वैसे ही उनके धर्म के अपने नियम है। फिर हम अपने नियम को फोलो करने से पहले किसी से नहीं पूछते कि बकरा या भैंसा की बलि चढ़ाने से कोई धर्म आहत तो नहीं होता फिर हम किसी पर यह दबाव कैसे बना सकते हैं कि हमारे धर्म में जिस जानवर की बलि निषेध है तुम भी उसकी बलि न चढ़ाओ। तुम भी हमारे नियम से चलो।
आजकल जो धर्म रक्षा, गौ रक्षा को लोगों से जोड़ा जा रहा है ऐसा लगता है कि इंसान का जन्म ही इन नियमों के साथ हुआ है। अगर लोगों को यह बात याद दिलाई जाती हैं कि हम हिन्दू धर्म के लोग हैं इसलिए गाय हमारी माता है तो उससे पहले लोगों को यह भी जानना चाहिए कि यह हिन्दू धर्म ही है जिसमें उनके साधू-संतों के बीच वध की प्रथा प्रचलित थी। पशु बलि के कारण ही ऋषि मुनियों और रावण के बीच मतभेद पैदा हुए थे। इसके साथ ही दूसरी बात भी याद रखने वाली है कि हिन्दू होने से पहले वे एक आदि मानव की संतान है जो अपने समय में जानवरों का ही भोजन करते थे। मनुष्य की शुरूआती पीढ़ियां शिकार पर ही निर्भर करती थीं, ये देखे बिना कि जिस जानवर का शिकार किया जा रहा है वह गाय है या भैंस?
आदि काल सबसे पुराना काल है जब मानव का जन्म हुआ था, जब मानव जीवित रहने के लिए प्रकृति पर निर्भर थे, जब मानव हर जानवर को एक शिकार के तौर पर ही देखते थे। इसलिए इस नजरिये से हम उस इंसान की संतान है जो हर तरह के जानवर का शिकार कर उसे खाता था।
जब हमारे पूर्वजों ने सब कुछ खाया है तो आज कैसी गौ माता और गौ रक्षा, कैसी अपनी संस्कृति, कैसी अपनी परंपरा? क्यों इस कदर गाय के नाम का जाप कर कोहराम मचा रहे हैं। धार्मिक लोगों के शब्दों में अगर गाय खाने से कोई भूचाल आता है या पाप लगता है तो क्या आज गाय की पूजा करने से वह पाप घुल जाएगा जो उस वक्त पूर्वजों के खाने से लगा होगा? इसके लिए क्या उपाय करेंगे?
इन उन्मादी तत्वों के खिलाफ हमारी आवाज
अगर हम पूरे तह पर जाएंगे तो कोई ऐसी चीज नजर नहीं आएगी जिससे हम अपने को बड़ा गौ रक्षक बताकर किसी अपराध का समर्थन कर सकें। अगर कोई ऐसी घटना घटती है तो हत्यारों की आलोचना के साथ बहुत लोगों के मन में यह सवाल भी उठता है कि क्या वास्तव में गौ मांस था? अगर वास्तव में गौ मांस था तो क्या यह फैसला सही है कि गौ मांस खाने वाले को जान से मार डाला जाए? तब तो इतिहास के लिहाज से खुद को हिन्दू कहने वालों का भी कत्लेआम होना चाहिए। पूरी धरती पर नरसंहार ही होना चाहिए क्योंकि हर जगह के लोगों के पूर्वज आदि काल में हर वो जानवर को खा जाते हांेगे जिसे उन्हांेने अपने आज धर्म में निषेध किया होगा।
जब शुरू से हमारे बगल में बसने वाला अपने नियमों के साथ हमारा साथी था तो आज अचानक से गौ रक्षा के नाम पर वह हमारा दुश्मन कैसे बन सकता है।
गौ रक्षा के नाम के पीछे का रहस्य
कानून में जानवरों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कुछ अधिनियम बनाए गये हैं जो जानवरों की तस्करी या उनके साथ दुर्व्यवहार पर रोक लगाते हैं मगर आज इसका इस्तेमाल गलत तरीके से किया जा रहा है। वैसे तो गौ रक्षा की बात की नींव हमारे कानून द्वारा ही बनाये नियमों से मजबूत होते हैं, जिसको बनाते वक्त शायद लक्ष्य किसी खास समुदाय को निशाना बनाना नहीं रहा होगा मगर आज उसका इस्तेमाल सिर्फ द्वेष फैलाने के लिए किया जा रहा है। गौवंशीय पशु हत्या प्रतिषेध अधिनियम का विस्तृत रूप आज इस नाम पर एक समुदाय को प्रताडि़त करना और धार्मिक अंधता से भर जाना हो गया है। यह नियम शायद दुधारू जानवर की रक्षा के लिए बनाया गया होगा ताकि दुग्ध व्यापार ज्यादा फले-फूले, मगर आज इसे गौ माता का नाम देकर पेश किया जा रहा है।
ऐसी पेशकश हमारे वर्तमान सरकार द्वारा ही किये जा रहे हैं भले ही वह प्यार और एकता का कोई भी ढोंग क्यों न रच लें। एक तरफ यह गौ रक्षा की बात दूसरी तरफ देश में सौहार्दपूर्ण माहौल बनाए रखने की बात एक छवाला के सिवाय कुछ नहीं है। गौ रक्षा की बात करना ही धार्मिक टकराव पैदा करना है। लोगों को धर्म के प्रति कट्टर बनाना है। जैसा कि शुरू से कहा गया है कि भारत अनेकता में एकता का देश है। अलग-अलग धर्म के लोगों का यहां बसना और सभी के बीच मैत्रीपूर्ण व्यवहार का होना। जब ऐसे माहौल में गौ की रक्षा की बात की जाये तो उसका अर्थ क्या होगा? गाय की स्थिति कुत्ते-बिल्लियों की स्थिति जैसी तो है नहीं, कुत्ते-बिल्लियों की तरह सड़क चलते कोई गाड़ी कुचल दे या कोई पत्थर मार अपाहिज कर दें, जान से मार डालें या आपस में लड़कर मर जाए, न कोई घर न कोई ठिकाना। गायें तो जिविका चलाने का साधन है इसलिए अक्सर गायों का कोई न कोई मालिक जरूर होता है। क्योंकि कुत्ते-बिल्लियों की तरह वे अनुपयोगी नही है, उससे दूध का व्यापार होता है, इसलिए इंसान अपनी स्वार्थ के लिए गायों को पालते हैं। गाय भैंस-बकरियों की तरह हैं, कहीं धार्मिक लोगों द्वारा पूजा किया जाता है तो दूसरे धार्मिक लोगों द्वारा बलि चढ़ाई जाती है। ऐसे में गौ रक्षा करने की बात का अर्थ क्या हो सकता है? जब गाय असुरक्षित है ही नहीं तो किससे रक्षा की बात की जाती है?
आजकल अखबारों में प्रतिबंधित मांस के रूप में गौ मांस का व्यापार करने वालों पर नकेल कसा जा रहा है। गौ मांस एक प्रतिबंधित मांस का सूचक है मगर जब पशु रक्षा के लिए ये कदम सरकारी तौर पर उठाए जाते हैं तो इस श्रेणी में गाय ही क्यों? सारे जानवर क्यों नही। क्या जानवरों के प्रति यह भेदभाव नहीं है। जब हमारे देश में अलग- अलग धर्म के लोग हैं जिसकी धर्म के नियम से जिस जानवर की बलि दी जाती है आप उसपर प्रतिबंध लगाते हो, उसकी रक्षा की बात करते हो और उसे राष्ट्रभक्ति के नाम से जोड़ देते हैं, तो साफ अर्थ है, पूरे देश को एक धर्म के सूत्र में बांधना। एक धार्मिक आधार वाले राष्ट्र का निर्माण करना। संघीय मानसिकता का विस्तार करना। अपने विचार अपनी सोच लोगों पर थोपना। मतलब साफ समझा जा सकता है। पूरे देश का भगवाकरण। हिन्दुत्व के ठीकेदारों का काम ही धर्म के नाम पर लोगों को बांटना लोगों के बीच द्वेष फैलाना है। कभी घर वापसी, कभी धर्म परिवर्तन पर रोक, कभी लव जिहाद, कभी प्रतिबंधित मांस, कभी गौ रक्षा की बातकर। यह एक हथकंडा है लोगों को अपंग बनाने का समाजिक चेतना के प्रति। क्योंकि खतरा है जनचेतना से।
कभी वे गौ रक्षा का हव्वा खड़ा करते हैं तो कभी देशभक्ति का गुब्बारा और ऐसे नामों के पीछे बड़े-बडे अपराधों को अंजाम देते हैं। इस हिटलरबाजी नीति के साथ देश में अव्यवस्था की स्थिति बनाते है। मगर लोगों को चाहिए इन बातों को समझने की, सोचने की, क्या उन्हें इन धर्मांधता भरी बातों में बहकर उन्मादी बनना चाहिए या फिर इनसे बाहर निकलकर सही सवालों बेरोजगारी गरीबी, भुखमरी, देश की अर्थव्यवस्था देश की राजनीति जैसे सवालों पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
Ilika priy
Story writer & painter
Bokaro steel city (jharkhand)