रायपुर, 01 फरवरी 2021। केंद्र सरकार द्वारा आज पेश बजट को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने अर्थव्यवस्था को निजीकरण की ओर धकेलने वाला जनविरोधी और कॉर्पोरेटपरस्त बजट करार दिया है, जिसमें कोरोना संकट और मंदी की दुहरी मार से जूझ रही आम जनता के लिए महंगाई, बेकारी और आय में गिरावट के सिवा और कुछ नहीं है।
पार्टी ने कहा है कि इस बजट के जरिये राष्ट्र की संपत्ति को मुट्ठी भर बड़े पूंजीपति घरानों की तिजोरियों में भरा गया है और सार्वजनिक खर्चों में बड़े पैमाने पर कटौती करके आम जनता के साथ विश्वासघात किया गया है।
आज यहां जारी प्रतिक्रिया में माकपा राज्य सचिवमंडल ने कहा है कि बजट में जिस प्रकार विनिवेशीकरण की लकीर को लंबा खींचकर सरकारी उद्योगों के पास पड़ी जमीनों को बेचने की घोषणा की गई है, उससे कोरबा, बस्तर, कोरिया व सूरजपुर जैसे जिलों में एसईसीएल, एनएमडीसी व एनटीपीसी जैसे सार्वजनिक उद्योगों द्वारा अधिग्रहित, लेकिन अप्रयुक्त जमीनों पर काबिज मजदूर-किसानों और आदिवासियों का बड़े पैमाने पर विस्थापन होगा।
माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा है कि कोरोना वैक्सीन पर 35000 करोड़ रुपये के बजट से मुश्किल से एक-तिहाई आबादी का ही टीकाकरण हो सकेगा। सैनिक स्कूलों के लिए निजी क्षेत्र के सहयोग की आड़ में सैन्य शिक्षा में संघी
उन्होंने कहा कि जब अर्थव्यवस्था मांग के अभाव और मंदी से जूझ रही हो, तब जरूरत बड़े पैमाने पर नौकरियों के सृजन, मुफ्त खाद्यान्न वितरण और नगद राशि से मदद करने की होती है, ताकि आम जनता बाजार से सामान खरीद सके, मांग बढ़े और अर्थव्यवस्था को गति मिले। लेकिन ऐसे किसी उपाय पर अमल करने के बजाय बजट में आम जनता की रोजमर्रा के उपयोग की चीजों के दाम ही बढ़ाये गए हैं।
माकपा नेता ने कहा कि आजादी के बाद का यह पहला आधा-अधूरा बजट है, जिसमें मनरेगा और रक्षा क्षेत्र के लिए बजट आबंटन का प्रस्ताव ही नहीं है। ग्रामीण विकास और कृषि के लिए सरकारी खर्च में कोई वृद्धि नहीं की गई है और रोजी-रोटी खोकर गांवों में पहुंचने वाले आप्रवासी मजदूरों के लिए राहत के छींटे तक नहीं हैं। एक ओर पिछले वर्ष की तुलना में कुल मिलाकर कॉर्पोरेट टैक्स व आयकर में 2 लाख करोड़ रुपयों की छूट दी गई है, वहीं दूसरी ओर महंगाई से परेशान मध्यवर्गीय जनता को आयकर में कोई छूट नहीं दी गई है। इसका नतीजा है कि राज्यों को हस्तांतरित की जाने वाली राशि में भी 40000 करोड़ रुपयों से भी ज्यादा की कमी आ रही है।
उन्होंने कहा है कि यह केवल एक चुनावी बजट है, जिसमें 1.8 लाख करोड़ रुपये चुनावी राज्यों में ही राजमार्ग निर्माण के नाम पर झोंके जा रहे हैं, लेकिन इससे कोई रोजगार पैदा नहीं होने वाला है।