Hastakshep.com-आपकी नज़र-कृषि कानूनों का निरस्तीकरण-krssi-kaanuunon-kaa-nirstiikrnn-संसद का शीतकालीन सत्र-snsd-kaa-shiitkaaliin-str-संसद सत्र-snsd-str-संसद-snsd

Degradation of the dignity of Parliament And the question of the pride of Parliament

संसद का शीतकालीन सत्र (Parliament winter session live updates in Hindi) तय समय से पहले समाप्त हो गया। इस सत्र में कई विधेयक बिना चर्चा के पास करा लिए गए। संसद के शीतकालीन सत्र की महत्वपूर्ण उपलब्धि तीन कृषि कानूनों का निरस्तीकरण माना जा सकता है। पूरे संसद सत्र के दौरान सरकार मनमानी करती नजर आई। तार तार होती संसद की गरिमा व सरकार की हठधर्मिता की विवेचना करते हुए देशबन्धु में संपादकीय आज (Editorial in Deshbandhu today) प्रकाशित हुआ है। उक्त संपादकीय का किंचित् संपादित रूप साभार

संसद का शीतकालीन सत्र समय से पहले ही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया। 29 नवंबर से शुरु हुए सत्र को 23 दिसंबर तक चलना था, लेकिन दोनों सदनों में बुधवार सुबह ही कार्यवाही को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। इस सत्र के दौरान कृषि विधि निरसन विधेयक 2021, राष्ट्रीय औषध शिक्षा अनुसंधान संस्थान संशोधन विधेयक 2021, केंद्रीय सतर्कता आयोग संशोधन विधेयक 2021, दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन संशोधन विधेयक 2021 और निर्वाचन विधि संशोधन विधेयक 2021 जैसे महत्वपूर्ण विधेयक पेश किये गए। 20 दिसंबर को वर्ष 2021-22 के लिए अनुदान की अनुपूरक मांगों के दूसरे बैच पर चर्चा हुई।

क्या संसद का पूरा सत्र बेकार गया?

यानी ये सोच कर खुद को बहलाया जा सकता है कि संसद का पूरा सत्र बेकार नहीं गया (The entire session of Parliament was not in vain), थोड़ा बहुत काम भी हुआ है। हालांकि ये काम किस तरह से हुआ, इस पर गंभीरता से सोचा जाए, तो समझ आएगा कि संसद में

लोकतंत्र का वजन (weight of democracy in parliament) कितना हल्का कर दिया गया है।

संसद के इस शीतकालीन सत्र 2021 की महत्वपूर्ण उपलब्धि क्या है?

इस सत्र की महत्वपूर्ण उपलब्धि कृषि निरसन विधेयक को मान सकते हैं। क्योंकि जिन कृषि कानूनों को इस विधेयक के जरिए निरस्त किया गया, उन्हें खारिज करने की मांग के कारण ही साल भर से लंबा किसान आंदोलन (peasant movement) चला। कम से कम 7 सौ किसानों की मौत इस दौरान हुई। सरकार ने इन कानूनों को लेकर पर्याप्त अड़ियल रवैया दिखाया और जब लगा कि चुनावों में इन कानूनों के कारण मुश्किल आ सकती है, तो उन्हें रद्द करने का विधेयक भी पारित हो गया। हालांकि ये विधेयक भी बिना किसी चर्चा के चंद मिनटों में पारित हुआ।

अब आधार कार्ड से जोड़ना होगा मतदाता पहचान पत्र

सरकार ने अपने बहुमत से निर्वाचन विधि (संशोधन) विधेयक, 2021 को भी पारित करा लिया है, जिसके बाद मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़ना अनिवार्य हो जाएगा।

निर्वाचन विधि (संशोधन) विधेयक, 2021 का विपक्षी दल विरोध क्यों कर रहे हैं?

कांग्रेस, वामदल, टीएमसी जैसे तमाम विपक्षी दलों ने सरकार के इस फैसले (Election Laws Amendment Bill 2021 pass) का विरोध किया है। इसे निजता के लिए खतरा बताया है। मगर सरकार ने विपक्ष की मांगों पर ध्यान नहीं दिया।

गौरतलब है कि मतदान कराना निर्वाचन आयोग का काम है, जो स्वायत्त संस्था है, जबकि आधार कार्ड का जिम्मा यूआईडीएआई के अधीन है, जो सरकार के तहत काम करती है। ऐसे में अगर वोटर आईडी कार्ड और आधार आपस में जुड़ जाएंगे, तो सरकार के लिए सारे वोटर्स की जानकारी लेना आसान हो जाएगा। और चुनाव की निष्पक्षता संदिग्ध हो जाएगी।

इतनी बड़ी आबादी में आधार कार्ड और वोटर आईडी कार्ड में नाम या पते को लेकर भी कई बार गड़बड़ियां हो जाती हैं, और ऐसे में अगर दोनों पहचान पत्र आपस में जुड़ जाएंगे तो मतदाता सूची में गड़बड़ी का डर रहेगा और बहुत से लोग मतदान से वंचित हो सकते हैं। फरवरी 2015 में आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में यह काम प्रयोग के तौर पर हो चुका है, जिसमें काफी गड़बड़ी पाई गई थी। लेकिन सरकार ने इन बातों को नजरंदाज करके विधेयक पारित करा लिया।

पूरे संसद सत्र में सरकार की यही मनमानी नजर आती रही।

सत्र के पहले ही दिन, मानसून सत्र में हुए हंगामे के नाम पर राज्यसभा से 12 सांसदों को निलंबित कर दिया गया। इन सांसदों के निलंबन को वापस लेने के लिए विपक्ष रोजाना संसद के बाहर धरना देता रहा।

मंगलवार को भी राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन को राज्यसभा में रूल बुक फेंकने के आरोप में शीतकालीन सत्र के बाकी दिनों के लिए निलंबित कर दिया गया था। हालांकि ब्रायन ने इस आरोप से इंकार किया और कहा कि वह निर्वाचन विधि संशोधन विधेयक के खतरे के बारे में छह मिनट तक समझाते रहे, लेकिन यह सरकार किसी की नसीहत सुनना नहीं चाहती।

इधर लोकसभा में भी लगभग हर रोज लखीमपुर खीरी मामले और अजय मिश्र टेनी की बर्खास्तगी को लेकर हंगामा हुआ।

विपक्षी सांसदों ने संसद के बाहर भी मार्च निकाला। विपक्ष इस मुद्दे पर सरकार से चर्चा की मांग करता रहा, लेकिन सरकार ने मामले के अदालत में विचाराधीन होने के कारण इस पर बात नहीं की।

ऐसा लगता है कि सरकार को जब सुविधा होती है, तो वह चर्चा के लिए आगे आती है और जहां सवालों से घिरने का खतरा दिखता है, सत्ता के लिए असुविधा होने लगती है, वहां सरकार किसी न किसी बहाने से हट जाती है।

संसद में भारत-चीन विवाद पर भी राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर चर्चा से बचा गया है। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने एक ट्वीट में बताया है कि सितंबर 2020 से लेकर अब तक लोकसभा सचिवालय ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए भारत-चीन सीमा विवाद को लेकर पूछे गए 17 सवालों का जवाब देने से इनकार कर दिया।

सरकार की यह बहानेबाजी विपक्ष बार-बार उजागर कर रहा है। इसलिए सत्र को समय से पूर्व खत्म करने का कदम ही सरकार के लिए ठीक रहा।

वैसे भी देश के प्रधानमंत्री इन दिनों चुनावी राज्यों में व्यस्त हैं। मोदीजी ने भाजपा सांसदों को तो सदन में उपस्थित रहने की नसीहत दे दी, लेकिन खुद पहले दिन और आखिरी दिन ही सदन में नजर आए।

कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर और विजय वसंत ने इस बारे में एक पोस्टर भी ट्वीट किया, जिसमें पहले दिन से लेकर 20 दिसम्बर तक लगातार मोदीजी की अनुपस्थिति लगाई गई। जबकि इस दौरान वे उप्र में बार-बार नजर आए।

निजीकरण, महंगाई, बेरोजगारी, किसानों, मजदूरों से जुड़े सवाल, कोरोना ऐसे कई मुद्दे थे, जिन पर सरकार को विपक्ष के साथ खुली चर्चा सदन में करना चाहिए थी। मगर जो हश्र मानसून सत्र का हुआ, वही शीतकालीन सत्र का हो गया।

हम आलीशान सेंट्रल विस्टा बनते देख रहे हैं, मगर संसद की शान कैसे बने रहे, इस बारे में भी सोचना होगा।

आज का देशबन्धु का संपादकीय (Today’s Deshbandhu editorial) का संपादित रूप साभार.

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