नोटबंदी या विमुद्रीकरण का फैसला कैबिनेट का था या किचेन कैबिनेट का यह न तब पता लग पाया और न ही कोई आज बताने जा रहा है। जब कभी कोई किताब लिखी जायेगी या इस मास्टरस्ट्रोक से जुड़ा कोई नौकरशाह मुखर होगा और अपने महंगे संस्मरण की किताब अंग्रेजी में लिखेगा तो, हो सकता है, सारी बातें सामने आएँ। पर इस विनाशकारी निर्णय की जिम्मेदारी कौन लेगा ? पूरी पार्टी ? या सरकार ? या सरकार के प्रमुख ?
चर्चा तो यहां तक है कि कुछ चहेते पूंजीपतियों को तो इस कदम की जानकारी थी, पर देश के तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली इस जानकारी से अनभिज्ञ ही थे। तत्कालीन गवर्नर, आरबीआई को भी 8 नवम्बर को अपराह्न इस मास्टरस्ट्रोक की जिम्मेदारी दी गयी जबकि संविधान के अनुसार आरबीआई की मौद्रिक नीति और प्रशासन में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
जब इस नोटबंदी की बात 8 नवम्बर 2016 को रात 8 बजे
● काले धन की समाप्ति - End of black money
यह नहीं हो पाया क्यों कि जितने राशि के बड़े नोट चलन में थे, उनमें से लगभग सभी नोट बैंकों में वापस आ चुके हैं।
● आतंकियों को धन की आपूर्ति बाधित करना - Interrupting money supply to terrorists
इस पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ा। आतंकी घटनाएं होती रही। आखिरी बड़ी घटना पुलवामा हमला है जिनमें 40 सीआरपीएफ के जवान शहीद हो गए।
● नकली नोटों की पहचान और उससे मुक्ति - Identification and elimination of fake notes
लेकिन जिस प्रकार से लगभग सभी नोट जमा हो गए, उनसे तो यही स्पष्ट है कि, नक़ली नोट या तो इसी भीड़ भड़क्के में जमा कर दिए गये या उनकी संख्या अनुमान से कम थी।
जब यह सब नहीं हो पाया तो कहा गया कि इससे कैशलेस भुगतान प्रणाली में तेजी आएगी, जिससे कालेधन के उत्पादन पर रोक लगेगा। पर जब यह भी दावं विफल हो गया तो, कहा गया कि लेस कैश भुगतान प्रणाली आएगी। कुल मिला कर जिन उम्मीदों से यह क़दम सरकार ने उठाया था, वे उम्मीदें तो पूरी न हो सकीं अलबत्ता इस एक निर्णय ने देश की विकासशील अर्थव्यवस्था को बेपटरी कर दिया। इस प्रकार जिन उद्देश्यों के लिए यह मास्टरस्ट्रोक और साहसिक कदम उठाया गया था, जिसकी विरूदावली तब गायी जा रही थी, वह अपने किसी भी लक्ष्य को पूरा नहीं कर सका। अब तो इसे मास्टरस्ट्रोक कहने वाले भी इसकी उपलब्धियों पर बात नहीं करते हैं। इस अजीबोगरीब मास्टरस्ट्रोक के निर्णय से, लाखों लोगों की रोज़ी रोटी छिन गयी, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर, रीयल स्टेट सेक्टर, अनौपचारिक व्यावसायिक क्षेत्र, तबाह हो गए। 2016 के बाद सभी आर्थिक सूचकांकों में जो गिरावट आना शुरू हुयी वह अब तक जारी है।
आज जीडीपी माइनस 23.9 % पर है। सरकार का राजस्व संग्रह कम हो गया है। गनीमत है कि इस महीने में कर संग्रह ने, एक लाख करोड़ का आंकड़ा पार किया है। निश्चित रूप से कोरोना आपदा इस बदहाली के लिये जिम्मेदार है। पर हमारी आर्थिकी में गिरावट नोटबंदी के मूर्खतापूर्ण निर्णय के बाद ही शुरू हो चुकी थी। कोरोना आपदा ने उसे और भयावह कर दिया है।
इस नोटबंदी से देश को अब तक क्या मिला है, यह सरकार आज भी बताने की स्थिति में नहीं है। न तो प्रधानमंत्री और न ही वित्तमंत्री यह बताते हैं कि, आखिर इस निर्णय से देश के किस सेक्टर को लाभ मिला। जब यह मास्टरस्ट्रोक कहा जा रहा था, तब भी दुनिया भर के अर्थविशेषज्ञों ने यह अनुमान लगाया था कि,
"नोटबंदी से होने वाले आर्थिक नुकसान का आंकड़ा, 1,28,000 करोड़ रुपये का होगा।"
"यह अनुमान आगे बढ़ भी सकता है। क्यों कि देश की 86 प्रतिशत मुद्रा मर चुकी है। जब तक नयी मुद्रा बाजार में नहीं आ जाती और उस अभाव से जो समस्या उतपन्न हो रही है या होगी, उसका आकलन अभी नहीं किया जा सका है। अर्थतंत्र के अध्येता उसका भी अध्ययन कर ही रहे होंगे।"
यह खबर पुरानी है पर उसके अनुमान आज सच होते दिख रहे हैं।
जब आर्थिक स्थितियां गड़बड़ होतीं हैं तो उसका परोक्ष प्रभाव अपराध और समाज पर भी पड़ता है। नोटबंदी जन्य आर्थिक गतिरोध से रोज़गार के अवसर कम हुए हैं, उद्योगों पर असर पड़ा है, उनमें मंदी आयी है, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में शून्य विकास दर आ चुकी है, बेरोजगारी तो बुरी तरह बढ़ गयी है और देश का आर्थिक ढांचा हिल गया है। इसका सीधा प्रभाव अपराध वृद्धि पर पड़ रहा है।
जब नोटबंदी का निर्णय लिया गया था तो क्या उसके परिणामों के बारे में कुछ सोचा गया था या यूं ही एक इलहाम आया और उसे बस घोषित कर दिया ? याद कीजिये, एटीएम और बैंकों की शाखाओं में लगी हुयी लाइनें, लाइनों में खड़े-खड़े डेढ़ सौ लोगो की अकाल मृत्यु के आंकड़े, नए 2000 ₹ के नोट सिर्फ इस कारण एटीएम से नहीं निकल पा रहे थे कि हड़बड़ी में वे एटीएम की साइज़ के अनुसार, छापे ही नहीं गए थे। तीन महीने में डेढ़ सौ के ऊपर जारी किए गए आदेश निर्देश जो आरबीआई और वित्त मंत्रालय द्वारा सुबह शाम और कभी-कभी तो एक दूसरे के परस्पर विरोधी भी होते थे, इस बात को प्रमाणित करते हैं कि नोटबंदी का वह निर्णय बिना सोचे समझे तो लिया ही गया था, और उसका क्रियान्वयन तो वित्तीय कुप्रबंधन का एक नमूना ही था। संभवतः यह 'साहसिक निर्णय' लेते समय, इतनी दूर तक नहीं सोचा गया। जब यह सब याद कर रहे हैं तो यह भी मत भूलियेगा, प्रधानमंत्री की ताली बजा कर बेहद असंवेदनशील मानसिकता में कहा गया यह वाक्य, "घर में शादी है और पैसे नहीं है।"
मैं जब यह वाक्य लिख रहा हूँ तो, मेरे सामने, उनकी देहभाषा अब भी नाच रही है। क्या इतना संवेदना से शून्य कोई लोकतांत्रिक शासक हो सकता है ?
तब सीएमआईई (CMIE) के एमडी और मुख्य अर्थशास्त्री डॉ महेश व्यास ने क्या कहा था, यह उन्हीं के शब्दों में पढ़ें,
"The exercise can only be considered worth if the government is able to unearth unaccounted cash worth at least the transaction cost. If the government succeed"
आगे इसी लेख में पढ़े
12% share of households, that stand in queues to exchange their old currency notes with new ones, in the total demonetisation transaction cost. They stand to lose Rs 15,000 crore. The government and the RBI are estimated to bear a cost of Rs 16,800 crore. This is largely because of printing of new currency and transportation of new currency to bank branches, ATMs and post offices.
इस अर्थ हानि में वे आंकड़े भी छुपे हुए हैं जो, बाज़ार में मंदी आने पर स्वतः होने लगते हैं -
According to estimates, companies will witness a direct impact on business in terms of the drop in discretionary spending by households. This alone adds up to more than half of trillion rupees during the 50-day period till the end of December. Enterprise stands to lose Rs 61,500 crore or 48% of the total transaction cost of this exercise of demonetisation.
नोटबंदी पर तब दुनिया भर के अखबारों में आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ स्तंभकारों ने अपनी - अपनी राय प्रस्तुत की थी। लगभग सभी की राय इस संबंध में नकारात्मक थी। सबने इस कदम से होने वाले लाभ के संबंध में अपनी आशंकाएं ज़ाहिर की थी।
भारत एक अत्यंत तेज़ी से विकसित होने वाली अर्थव्यवस्था थी। अब स्थिति दूसरी है। कुछ तो कोरोना आपदा और लॉक डाउन कुप्रबंधन के कारण, तो कुछ, नोटबंदी के फैसले और जीएसटी के त्रुटिपूर्ण क्रियान्वयन के कारण। वैश्विक मंदी के दौर में भी देश के आर्थिक प्रगति के सूचकांक निराशाजनक नहीं रहे। कुछ अखबारों के लिंक यहां प्रस्तुत है। खबरें पुरानी है। पर तब जो कहा गया था, वह आज सच होता दिख रहा है।
● The New York Times :
Chaos as Millions in India Crowd Banks to Exchange Currency
http://www.nytimes.com/aponline/2016/11/12/world/asia/ap-as-india-currency-chaos.html?_r=0
● BBC:
How India's currency ban is hurting the poor
http://www.bbc.com/news/world-asia-india-37947029
India rupees: Chaos at banks after 'black money' ban
http://www.bbc.com/news/world-asia-india-37933233
India rupee ban: Currency move is 'bad economics'
http://www.bbc.com/news/world-asia-india-37970965
● The Guardian:
Why the corrupt rich will welcome Modi’s ‘surgical strike on corruption’
https://www.theguardian.com/commentisfree/2016/nov/15/corrupt-rich-india-modi-500-1000-rupee-note
4. Huffington Post:
Demonetisation Death Toll Rises To 25 And It's Only Been 6 Days
10 Reasons Why BJP's Demonetization Move Is An Unmitigated — And Politically Motivated — Disaster
● Al-Jazeera:
Anger intensifies over India's demonetisation move
India demonetisation: Chaos as ATMs run dry
http://www.aljazeera.com/news/2016/11/india-demonetisation-chaos-atms-run-dry-161109061403011.html
● Washington Post:
Panic, anger and a scramble to stash cash amid India’s ‘black money’ squeeze
India struggles as millions throng banks to swap currency
● The Independent:
Indians scramble to deposit cash as government voids high-value bank notes in ‘black money’ crackdown
http://www.independent.co.uk/news/world/asia/india-cash-money-black-money-bank-notes-a7409811.html
● Dailymail:
'Modi boasts of his 56-inch chest, but what kind of son lets his mother go through that?' PM's 96-year-old mother queues up to change notes
● Financial Times:
India cash crunch update: Still chaotic
https://ftalphaville.ft.com/2016/11/15/2179657/india-cash-crunch-update-still-chaotic/
● International Business Times:
India's economic growth to take a hit over demonetisation drive: India Ratings
http://www.ibtimes.co.in/indias-economic-growth-take-hit-due-de-monetisation-india-ratings-703576
● NDTV:
PM Modi 'Masterstroke' On Notes Backfires, says foreign media
http://www.ndtv.com/opinion/pm-modi-masterstroke-on-notes-backfires-says-foreign-media-1626092
● The Economic Times:
India's new strike against black money backfires
उपरोक्त अखबारों की राय के बाद कुछ महत्वपूर्ण अर्थशास्त्रियों की भी राय जानना आवश्यक हैं।
● अर्जुन जयदेव जो अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में एसोशिएट प्रोफेसर हैं, ने इसे वित्तीय अतिनाटकीय निर्णय की संज्ञा दी थी। उन्होंने financial melodrama शब्द का प्रयोग किया था।
उन्होंने कहा इस से जनता का विश्वास, काले धन की अर्थ व्यवस्था पर से उतना नहीं डिगा है जितना कि जनता का भरोसा मौद्रिक तंत्र की निष्ठा से उठ गया है। अरुण इसे झोलझाप निदान कहते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इसे सर्जिकल स्ट्राइक के बजाय कारपेट बॉम्बिंग कहा था जो पूरे इलाके को तहस नहस करने के उद्देश्य से की जाती है। उसने यह भी कहा था कि इतने अधिक क्षमता की शॉक थेरेपी, हो सकता है हमारा बैंकिंग तंत्र सहन न कर सके। और ऐसा हुआ भी। सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे फैसले को सुनवायी के लिए संविधान पीठ को सौंप दिया है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एमेरिटस डॉ प्रभात पटनायक ने सिटिज़न न्यूज़ पोर्टल में तीन भागों की एक लेख श्रृंखला लिखी थी। उन्होंने कहा है कि 86 % मुद्रा का रातों रात विमुद्रीकरण कर देना और वह भी बिना उचित तैयारी के, आत्मघाती ही होगा।
"India may go down in recent history as the biggest example of firing cannon balls to kill mosquitoes..... with huge collateral damage. "
और अंत में देश के पूर्व प्रधानमंत्री और प्रख्यात अर्थशास्त्री डॉ मनमोहन सिंह ने जो कहा, उसे पढ़े,
"नोटबंदी ने संगठित और असंगठित क्षेत्रों पर कड़ा प्रहार किया और छोटे, मंझोले और लघु उद्योग और कारोबार नोटबंदी और जीएसटी की दोहरी मार से बंद होने की कगार पर आ गए हैं।
सरकार नोटबंदी को सही साबित करने के लिए ‘हर रोज एक झूठी कहानी’ गढ़ने में व्यस्त है। लेकिन सचाई यह है कि नोटबंदी मोदी सरकार द्वारा लागू एक भयावह और ऐतिहासिक भूल साबित हुई है।
उन्होंने कहा कि नोटबंदी का कोई भी मकसद पूरा नहीं हुआ। न तो 3 लाख करोड रु. का काला धन पकड़ा गया, जिसका दावा मोदी सरकार ने 10 नवंबर, 2016 को सुप्रीम कोर्ट के सामने किया था और न ही ‘जाली नोटों’ पर लगाम लगी। आतंकवाद और नक्सलवाद को रोकने के दावे भी खोखले साबित हुए।
श्रम ब्यूरो के आंकड़ों से खुलासा हुआ है कि हर तिमाही केवह कुछ हजार रोजगार ही उत्पन्न हुए और ये आंकड़े दो करोड़ नौकरियां देने के अच्छे दिन के झूठे वादों की पोल खोलते हैं। यही वजह रही कि सरकार ने अक्तूबर-दिसंबर 2017 में श्रम ब्यूरो के आंकड़े जारी ही नहीं किए।"
डॉ. सिंह ने यह भी संसद में कहा था कि, "नोटबंदी से जीडीपी 2 % गिरेगी", जो सच हुयी। लगभग सभी प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों की राय यही है कि, जिन उद्देश्यों के लिए यह मास्टरस्ट्रोक लगाया गया था, वह बहुत कुछ हद तक विफल हो गया है। और हां, ज़ीन्यूज़ के सुधीर चौधरी और आजतक की श्वेता सिंह के एक्सक्लुसिव खुलासे कि, ₹ 2000 के नोटों में चिप लगी है, झूठ और मक्कारी भरे थे।
विजय शंकर सिंह
लेखक अवकाशप्राप्त वरिष्ठ आईपीएस अफसर हैं।