नई दिल्ली, 26 मार्च 2020 : 2019 में भारत में विभिन्न क्षेणियों में मौजूद 47.4 गीगावॉट की कोयले से चलने वाली बिजली परियोजनाओं को रद्द कर दिया गया है जिससे भारत में विकास के अंतर्गत क्षमता कम होकर अब 66 GW हो गई है।
ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर, ग्रीनपीस इंटरनेशनल, सिएरा क्लब और सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) द्वारा आज जारी एक नई रिपोर्ट के अनुसार पूर्व निर्माण की क्षेणी में क्षमता 2018 में 60.2 GW से घटकर 2019 में 29.3 GW हो गई तथा आज के समय निर्माणाधीन क्षमता 37 GW है।
रिपोर्ट, बूम एंड बस्ट 2020
इसके निष्कर्षों में वैश्विक स्तर पर निर्माण के तहत और पूर्व-निर्माण विकास की क्षमता में 16% वर्ष-दर-वर्ष की गिरावट और 2015 के बाद से 66% की गिरावट ददेखी गई। 2019 की तुलना में शुरू-निर्माण की क्षमता 2018 से 5% और 2015 से 66% नीचे थे।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में 2019 में 8.1 गीगावॉट कोयला आधारित तापीय क्षमता चालू की गई थी और इसके साथ निर्माणाधीन क्षेणी में 8.8 गीगावॉट नई कोयला आधारित क्षमता शामिल की गई थी। नए निर्माण की संपूर्ण 8.8 GW की क्षमता को पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन (PFC) या रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉरपोरेशन (REC) से पर्याप्त वित्तपोषण प्राप्त हुआ, जो दोनों विद्युत मंत्रालय के नियंत्रण में आते हैं और इस वर्ष विलय करने के लिए तैयार हैं।
17 मार्च 2020 को संसद में ऊर्जा मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत एक जानकारी भी इन निष्कर्षों को मान्य करती है। अपने प्रस्तुति-करण में उर्जा मंत्रालय ने पहले के आंकड़ों की तुलना में निजी क्षेत्र से संबंधित कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की 23 GW से अधिक क्षमता वाले बिजली संयंत्रों को अपने डेटाबेस से हटा दिया है। इनमें से अधिकांश संयंत्रों ने 2011 से पहले विकास शुरू कर दिया था। चूंकि निजी क्षेत्र भारत में कोयला संयंत्र के विकास से बाहर निकल रहा है, इसलिए सार्वजनिक क्षेत्र यहाँ पर अपनी भूमिका बढ़ा रहा है।
बीते समय में भारत में कोयला आधारित बिजली के कम होने की प्रक्रिया शुरू होने के बावजूद भी 2019 में ग्रिड में जोड़े गए नए कोयला बिजली क्षमता की मात्रा सेवानिवृत्ति की गई क्षमता की मात्रा से अधिक थी जिसके कारण कोयला संयंत्रों के पॉवर लोड फैक्टर (PLF) में कमी आई और यह उभर रही ख़राब नकारात्मक अधिक्षमता/ओवर-कैपेसिटी के संकेत दे रहे हैं।
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) के विश्लेषक सुनील दहिया ने कहा कि
“भारत में सिकुड़ती कोयले की पाइप-लाइन को भारी अधिक्षमता/ओवर-कैपेसिटी, बिजली की कम मांग, गिरते हुए PLF, नवीकरणीय ऊर्जा की गिरती कीमतों, निवेश में कमी और प्रदूषण के कारण बढ़ते सार्वजनिक प्रतिरोध को देखकर हमें एक उम्मीद नजर आती है और यह संकेत दीखते हैं कि हम भारत में कम जीवाश्म ईंधन आधारित भविष्य की उम्मीद कर सकते हैं। लेकिन इसी समय ग्रिड में नई क्षमता को जोड़ा जा रहा है, नई परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है और सरकार द्वारा नई परियोजनाओं में सार्वजनिक सम्पति का निवेश किया जा रहा है जो कि चिंताजनक है”,
सुनील दहिया आगे कहते हैं कि,
"जलवायु, पर्यावरण और आर्थिक संकट को देखते हुए आज हमें और अधिक काम करने की आवश्यकता है और पुरानी इकाइयों को तेजी से सेवानिवृत्ति करने के साथ-साथ हमें जरुरत है कि किसी भी नए कोयला आधारित संयंत्र का नया निर्माण न किया जाए और इनके लिए नई अनुमति भी न प्रदान की जाए, आज हमे इन बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए एक साफ़ और सख्त नीति की तत्काल आवश्यकता है।"
विकास में गिरावट के बावजूद वैश्विक स्तर पर 2019 में कोयला क्षमता में 34.1 गिगावाट की वृद्धि हुई, जो 2015 के बाद से शुद्ध क्षमता परिवर्धन में पहली वृद्धि है। 2019 में नव-चालित क्षमता के 68.3 गीगावॉट में से लगभग 64% (43.8 गीगावॉट) चीन और 12% (8.1 GW) भारत में ही था।
ग्लोबल एनर्जी मॉनीटर के कोयला प्रोग्राम के प्रमुख लेखक और निदेशक क्रिस्टीन शीयर कहते हैं कि, "कोयले से वैश्विक बिजली उत्पादन में 2019 में रिकॉर्ड रूप से कमी देखी गई, क्योंकि अक्षय ऊर्जा की क्षमता बढ़ी है और बिजली की मांग धीमी हो गई है। बावजूद इसके ग्रिड में जोड़े गए नए संयंत्रों की संख्या में तेजी आई है, जिसका अर्थ है कि दुनिया के कोयला संयंत्रों को बहुत कम संचालित किया गया और इस स्थिति में हमारे पास कम बिजली पैदा करने वाले अधिक संयंत्र हो गए हैं। बैंकों और निवेशकों के लिए यह स्थिति कम होते हुए लाभ और बढ़ते हुए जोखिम को दर्शाती है”।