सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या बेहद दुखद है। कोरोना काल में बेरोज़गारी और भूख से, क्वारंटाइन सेंटर में हो रही आत्महत्याएं भी कम दुःखद नहीं हैं।
माननीय प्रधानमंत्री ने सुशांत की आत्महत्या पर ट्विटर पर शोक जताया है (Prime Minister has mourned the suicide of Sushant Singh Rajput on Twitter)। यह सही भी है, लेकिन प्रधानमंत्री को उनके तुगलकी रवैय्ये से अर्थव्यवस्था ठप हो जाने की वजह से भूख और बेरोज़गारी, मंदी से हो रही मौतों और आत्महत्याओं पर भी राष्ट्र को सम्बोधित करके शोक जताना चाहिए।
मीडिया कोरोना काल की मौतों, दुर्घटनाओं, बीमारियों, कोरोना के अलावा प्राकृतिक आपदाओं और दूसरी बुनियादी मुद्दों को हाशिये पर डालकर सुशांत राजपूत की खबर का सरकार के बचाव में सनसनीखेज इस्तेमाल कर रहा है।
कंगना की नए लोगों की घेराबंदी वाली बात सौ टके सही है। लेकिन आरोप लगाने के उसके पुराने रिकार्ड की वजह से हत्या का आरोप बेहद सनसनीखेज हो गया है। घेराबंदी के मुद्दे पर सम्वाद हो नहीं सका।
देश में अस्पृश्यता, असमानता, नस्ली भेदभाव और वंचितों की नरसंहार संस्कृति के खिलाफ खामोश लोग किसी एक मामले को सनसनीखेज तरीके से उठाकर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की तानाशाही और फासिज्म के राजकाज और घृणा और हिंसा की राजनीति का बेशर्म समर्थन करें और अस्पृश्यता, असमानता, जाति वर्ग वर्चस्व के खिलाफ कोई बात न करें तो इस मुद्दे पर चर्चा देश के सामाजिक राजनीतिक आर्थिक ऐतिहासिक भौगोलिक यथार्थ सर काटकर करना पाखण्ड और मौत को, कोरोना को अवसर बनाने के
सम्वाद तो असमानता और अन्याय के पूरे तन्त्र के खिलाफ होना चाहिए।
पलाश विश्वास