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प्रवीण के परिजनों ने आबिद के डीएनए टेस्ट की मांग की

Doubt still persists - is Abid convicted or Praveen, demand for DNA test

Praveen's family demands DNA test of Abid

लखनऊ 17 जुलाई 2016। मेरठ से आए हिंदू परिवार ने लखनऊ जेल में पाकिस्तानी आबिद से मुलाकात की। उनका संदेह अभी बरकरार है कि वो आबिद ही है या प्रवीण।

मेरठ निवासी महेश देवी और उनके बेटे पवन कुमार ने कहा कि उसका चेहरा, पैर और माथे का निशान, दांत की बनावट, लंबाई और बोलने का तरीका काफी मिलता जुलता है।

उन्होंने कहा कि बात करते समय उसकी आंखों में भी नमी थी, पर वह मुस्कुराता रहा और आबिद ने कहा कि वह उनका बेटा नहीं है।

आबिद को जब महेश देवी और पवन ने प्रवीण का पुराना फोटो दिखाया तो उसने भी कहा कि यह फोटो उससे काफी मिलती है।

परिजनों का यह भी कहना है कि चूंकि उसके सर के बाल काफी गिर चुके हैं और उसने लम्बी दाढ़ी भी रखी हुई है, इसलिए करीब दस साल बाद उससे मिल कर पहचान पाना बहुत आसान भी नहीं हो सकता है।

परिजनों का कहना है कि जेल में एसटीएफ, एटीएस, पुलिस और खुफिया के करीब दस लोगों की मौजूदगी थी, ऐसे में वह दबाव में भी हो सकता है इसलिए डीएनए टेस्ट कराया जाए।

उनका यह भी कहना है कि वैसे भी बिना डीएनए टेस्ट कराए सरकार भी उसे प्रवीण कुमार मान कर नहीं छोड़ती और ना ही हम भी उसे बिना डीएनए टेस्ट कराए प्रवीण कुमार मान लेते।

मेरठ के
हिंदू परिवार ने लखनऊ जेल में पाकिस्तानी आबिद से की मुलाकात, संदेह बरकरार

अपने खोए भाई प्रवीण को दस साल से खोज रहे पवन ने कहा कि अगर वह कह भी देता कि वो उनका भाई है तब भी उसे हम बिना डीएनए टेस्ट कराए अपना भाई नहीं मान लेते, क्योंकि उसे पाकिस्तानी आतंकी होने के आरोप में सजा हुई है।

महेश देवी और पवन ने यह भी कहा कि ऐसा असम्भव नहीं है कि दो लोगों की शक्लें एक दूसरे से हूबहू ना मिलतीं हों। ऐसे में हम किसी भी अनजान व्यक्ति को सिर्फ शक्ल सूरत मिलने के आधार पर अपने घर में अपना भाई मान कर कैसे रख सकते हैं।

उन्होंने कहा कि हमारी आशंका को दूर करने के लिए आबिद और हमारे परिवार के लोगों का डीएनए टेस्ट कराया जाए ताकि सच्चाई साफ हो सके।

लखनऊ जेल में हुई इस मुलाकात में मौजूद आबिद मामले के अधिवक्ता रहे रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि आबिद उर्फ फत्ते ने बातचीत के दौरान अपनी गिरफ्तारी नवंबर 2007 में गाजियाबाद से हुई बताई जिसे बाद में लखनऊ में गिरफ्तार दिखा दिया गया। जो पुलिस की पूरी कहानी को ही फर्जी साबित कर देता है कि उन्हें लखनऊ से मुठभेड़ के बाद तब पकड़ा गया था जब वो राहुल गांधी का अपहरण करने के लिए लखनऊ आए थे।

कंकर खेड़ा, मेरठ निवासी महेश देवी, पवन कुमार व उनके परिवार की सुरक्षा की गांरटी करे सरकार- रिहाई मंच

मुहम्मद शुऐब ने यह भी कहा कि आबिद का यह कहना कि उसे गाजियाबाद में पकड़ा गया था, पवन के संदेह को और मजबूत करता है क्योंकि 5 मई 2006 को दिल्ली के खजूरी खास में हुए मुठभेड़ में पहले एसटीएफ ने यही दावा किया था कि मारे गए लोगों में से एक प्रवीण हो सकता है। लेकिन जब उनका परिवार वहां शव की शिनाख्त करने पहुंचा तो मारे गए लोगों में प्रवीण का शव नहीं था। जिसके बाद एसटीएफ अधिकारियों ने अखबारों में बयान दिया था कि प्रवीण मुठभेड़ के दौरान फरार होने में कामयाब हो गया था।

रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि मुठभेड़ के बाद प्रवीण को जिस तरह से एसटीएफ ने पहले मृतक और फिर फरार बताया वह यह संदेह पैदा करता है कि प्रवीण को एसटीएफ ने अपने अवैध कस्टडी में रख लिया हो और बाद में गुडवर्क दिखाने के नाम पर उसे पाकिस्तानी आतंकी बताकर लखनऊ में मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार दिया हो। यह आशंका इससे भी पुख्ता हो जाती है कि यह मुठभेड़ भी मेरठ एसटीएफ ने की थी, जिसका इनपुट उसे ही मिला था कि दिल्ली से चलकर के कुछ पाकिस्तानी आतंकी लखनऊ में किसी बड़े नेता का अपहरण करने की फिराक में हैं।

मुहम्मद शुऐब ने कहा कि आखिर क्या वजह हो सकती है कि मेरठ से ही पीछा कर रही एसटीएफ ने राजधानी लखनऊ जा रहे आतंकियों की सूचना लखनऊ पुलिस या एसटीएफ को क्यों नहीं दी। क्या इसकी वजह यह तो नहीं थी कि यह पूरा मामला ही फर्जी था और कथित आतंकी उनकी कस्टडी में ही थे जिन्हें उन्होंने षड़यंत्र के तहत लखनऊ में गिरफ्तार दिखा दिया।

पुलिस के दावे फर्जी और हास्यास्पद

यह संदेह इस तथ्य से और भी पुख्ता हो जाता है कि 25 से 30 मिनट तक चले इस कथित मुठभेड़ में चार्जशीट के अनुसार एसटीएफ की तरफ से 39 राऊंड और तीनों आतंकियों की तरफ से 26 राऊंड गोलियां चलाई गईं। लेकिन न तो एसटीएफ का कोई अधिकारी घायल हुआ और ना ही आतंकियों में से ही कोई घायल हुआ। वहीं यह तथ्य भी पुलिस के दावे को फर्जी और हास्यास्पद साबित कर देता है कि उन्होंने दो आतंकियों को हैंड ग्रेनेड की पिन निकालने की कोशिश करते वक्त पकड़ लिया। जो किसी भी सूरत में सम्भव नहीं है क्योंकि अगर उनके पास हैंडग्रेनेड थे तो वे जवाबी हमले के दौरान ही उसका इस्तेमाल कर सकते थे।

मोहम्मद शुऐब ने कहा कि आबिद के इस दावे ने कि उसे गाजियाबाद से पकड़कर लखनऊ से दिखा दिया गया था, वह पूरी पुलिसिया कहानी को ही संदिग्ध साबित कर देता है। जिसकी उच्चस्तरीय जांच कराई जानी चाहिए।

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने प्रवीण-आबिद प्रकरण पर यूपी मुख्यमंत्री, राज्य गृह मंत्रालय और केन्द्रीय गृह मंत्रालय से हस्तक्षेप मांग की।

उन्होंने कंकर खेड़ा, मेरठ निवासी महेश देवी, पवन कुमार व उनके परिवार की सुरक्षा की गांरटी की मांग की।

यह जानकारी रिहाई मंच की एक प्रेस विज्ञप्ति में दी गई है।

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