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रेप के मौसम नहीं होते..

उम्र-वुम्र ठिकाने भी नहीं...

मंदिर-वंदिर, मस्जिद-वस्जिद, घर-रिश्तेदारी, इराने-वीराने

किसी भी कारण ..किसी बहाने ..

कहीं भी हो सकता है ...

चस्का है, लत है हिन्दुस्तान को रेप की ..

शर्त लडकी है किसी भी खेप की ..

सब चलती है ...

संविधान हर नये रेप पर नया क़ानून बनाता है ...

लागू हो गया लागू हो गया खूब चिल्लाता है ..

दरअसल अब रेप का हो जाना सामान्य व्यवहार जैसा है ...

और बाद उसके ..

सब कुछ त्यौहार जैसा है ....

माइक-शाइक, टीवी-शीवी, ऐसबुक-फेसबुक, टवी्टर-श्वीटर, गली-बाज़ार

मजमे लगते हैं..

इक भीड़ मोमबत्तीयां लेकर चौराहों के मुँह पर थोपती है..

ना जाने कौन सी उम्मीद रोपती है ..

जुट कर जम कर किसी को तो कोसा जाता

है ....

उसको.. सरकार को.. या अपने.. अपने संस्कार को …

वो जो ग़म में चूर होता है..

इन दिनों बड़ा मशहूर होता है..

क्योंकि अब हम..

रेप पर..

शर्माते नहीं...

बात करते है...

ताक-झाँक होती है...

टेबल टॉक होती है...

समाज के प्रति जागरूकता का अपना ही टशन होता है..

मारनिंग वॉक पर रेप का ही डिस्कशन होता है...

लोग बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं..

एक ही मुद्दे को रोते हैं...

इन दिनों सब लोग एक होते हैं...

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लानतें-वानतें फेरने में कोई पीछे नहीं रहता...

सोशल नेटवर्किंग साइटों पर ग़ुस्सा भर-भर कर शेयर होता है...

इक आँख रोती हुई..

लाल पीले मुँह वाली इमोजीस इन दिनों खूब चलती है...

बहुत सी प्रोफ़ाइलों पर इक मोमबत्ती भी जलती है...

मगर हैरत है फिर भी रेप नहीं मरता...

रेपिस्ट भी नहीं डरता...

और फिर बीच में आ जाता है..इक संडे..

सबके जोश वही ठंडे के ठंडे...

निगाहें चोर होती हैं..

रेप..पढ़-पढ़ कर बोर होती हैं...

शादी-ब्याह, सैर सपाटे, मूवी-शूवी, औरे धौरे.. विदेशी दौरे कुछ नहीं टलता ...

सब कुछ सामान्य सा चलता है...

मगर कुछ को सच में खलता है..नीयतों का खोट..

व्यवस्था के जाले...

सत्ता की आस्तीनों के साँप काले-काले...

वो जानते हैं जनता के हिस्से में रोना पीटना धक्के हैं..

देश में नेता कहाँ बचे हैं..

स्याले..सब छक्के हैं...

रेप का निपटारा नहीं बँटवारा होता है...हिन्दू..मुसलमान में..

इसी लिये हिन्दुस्तान में..रेपिस्ट को फाँसी नहीं होती..

उस पर केस चलता है..

सालों साल इक फ़ैसला टलता है...

दलील-ए-कमउम्री पर रिहाई होती है...

वकीलों की भी धड़ल्ले से कमाई होती है..

विक्टिम अबोध थी..

कौन सोचता है लुटे परिवार को फिर क़ानून नोचता है...

कईयों के पेट.. रेप से पलते हैं..

इसलिये ये मसालेदार क़िस्से खूब उछलते हैं...

एक बार फिर वही..निराशा...

वही टिप्पणियाँ...

वही भाषा..परिभाषा...

लोग कोस रहे हैं..

यह विकृत मानसिकता वालों का कृत्य है...

मगर मै पूछती हूँ क्या केवल यही सत्य है ??

डॉ. कविता अरोरा

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