Hastakshep.com-देश-Gender Justice with 'Muslim Sisters'-gender-justice-with-muslim-sisters-Triple Talaq-triple-talaq-तीन तलाक-tiin-tlaak-मुस्लिम पर्सनल लॉ-muslim-prsnl-lon

मुस्लिम बहनों’ के साथ लैंगिक न्याय (Gender Justice with 'Muslim Sisters') करने के लिए मोदी सरकार द्वारा संसद में हाल (जून 2019) में प्रस्तुत एक विधेयक, देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है. इस विधेयक में तीन तलाक को अपराध घोषित किया गया है. मोदी जी की पिछली सरकार ने भी संसद में ऐसा ही एक विधेयक प्रस्तुत किया था. उस विधेयक को लोकसभा ने पारित भी  कर दिया था परन्तु चूँकि राज्यसभा में भाजपा का बहुमत नहीं था इसलिए वह विधेयक कानून नहीं बन सका. पिछला विधेयक उच्चतम न्यायालय के उस फैसले के बाद लाया गया था, जिसमें तीन तलाक (Triple Talaq) को अवैध घोषित किया गया था. अब सरकार का तर्क यह है कि इस विधेयक को जल्द से जल्द इसलिए पारित करवाना ज़रूरी है क्योंकि पिछले विधेयक के प्रस्तुत किये जाने के बाद से देश भर में तीन तलाक के करीब 200 मामले सामने आये हैं.

क्या है तीन तलाक और तुरत-फुरत तीन तलाक में फर्क What is the difference between Triple Talaq and fast Triple Talaq

सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा कि तीन तलाक और तुरत-फुरत तीन तलाक में फर्क है. कुरान, पत्नी को तलाक देने के लिए तीन तलाक विधि को मान्यता देती है.

कुरान के अनुसार, पहली बार तलाक कहने के बाद कुछ समय दिया जाना चाहिए, जिसके दौरान दोनों पक्षों के मध्यस्थ पति-पत्नी में समझौता करवाने का प्रयास करें. अगर ये प्रयास असफल हो जाते हैं, तो दूसरी बार तलाक शब्द का उच्चारण किया जाता है. इसके बाद फिर कुछ वक़्त तक समझौते के प्रयास किये जाते हैं. अगर समझौता नहीं हो पाता केवल तब ही तीसरी और अंतिम बार तलाक शब्द का उच्चारण किया जाता है, जिसके बाद पति-पत्नी अलग

हो जाते हैं.

तीन तलाक पर क्या कहती है कुरान

कुरान के अनुसार,

“यदि तुम्हें पति-पत्नी के बीच बिगाड़ का भय हो, तो एक पंच पुरुष के लोगों में से और एक पंच स्त्री के लोगों में से नियुक्त करो. यदि वे दोनों सुधार करना चाहेंगे, तो अल्लाह उनके बीच अनुकूलता पैदा कर देगा” (4:35) और, “फिर जब वे अपनी नियत इद्दत को पहुँचें तो या तो उन्हें भली रीति से रोक लो या भली रीति से अलग कर दो। और अपने में से दो न्यायप्रिय आदमियों को गवाह बना लो और अल्लाह के लिए गवाही को दुरुस्त रखो” (65:2).

जिस बात की चर्चा कम ही होती है वह यह है कि कुरान औरतों को भी अपनी मर्ज़ी से ‘खुला’ शब्द का उच्चारण कर, वैवाहिक सम्बन्ध समाप्त करने की इज़ाज़त देती है.

भ्रष्ट मुल्ला-मौलवी, जिनके लिए इस्लाम में कोई जगह ही नहीं है, इस मामले में मुस्लिम समुदाय को उल्लू बनाते आ रहे हैं. मुल्ला-मौलवियों ने ही एक बार में तीन बार ‘तलाक’ शब्द का उच्चारण कर तुरत-फुरत तलाक देने की पद्धति को मान्यता दी है. इसका कुरान से कोई लेना-देना नहीं है. तुरत-फुरत तीन तलाक की प्रक्रिया, समुदाय में व्यापक तौर पर मान्य हो गयी है और इसके कारण मुस्लिम औरतों को बहुत दुःख भोगने पड़ते हैं.

कुरान में वर्णित तीन तलाक की प्रथा, जो कि मुस्लिम पर्सनल लॉ का भाग है, के बारे में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि,

“चूँकि यह प्रथा (तीन तलाक), मुस्लिम पर्सनल लॉ का हिस्सा है इसलिए इसे संविधान के अनुच्छेद 25 का संरक्षण प्राप्त है. धर्म का सम्बन्ध आस्था से है, तार्किकता से नहीं. कोई भी अदालत, ऐसे किसी प्रथा, जो किसी धर्म का अविभाज्य हिस्सा है, पर समानता के सिद्धांत को वरीयता नहीं दे सकती.”

टिप्पणीकार यह स्पष्ट नहीं कर रहे हैं कि उच्चतम न्यायालय ने तीन तलाक को नहीं बल्कि तुरत-फुरत तीन तलाक को अवैध ठहराया है, जो कि पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित मुस्लिम बहुसंख्या वाले कई देशों में प्रतिबंधित है. जब अदालत ने पहले ही इस प्रथा पर प्रतिबन्ध लगा दिया है तब फिर इस विधेयक की क्या ज़रुरत है? अगर अब भी तुरत-फुरत तलाक हो रहे हैं तो वे कानून का उल्लंघन हैं और उनसे वर्तमान कानूनों के तहत निपटा जा सकता है. फिर, यह विधेयक सरकार की इतनी उच्च प्राथमिकता पर क्यों है? बल्कि इस विधेयक की ज़रुरत ही क्या है?

दरअसल, मोदी सरकार की मुस्लिम महिलाओं के बारे में चिंता, मगरमच्छी आसूंओं के सिवा कुछ नहीं है. ‘मुस्लिम बहनों’ की मुख्य समस्याएं क्या हैं? उनकी मुख्य समस्या यह है कि बीफ खाने, उसका व्यापार करने या बीफ रखने के शक में उनके भाइयों की पीट-पीटकर हत्या की जा रही है. उनकी मुख्य समस्या यह है कि ट्रेन में एक मुस्लिम को सिर्फ इसलिए मार डाला गया क्योंकि भीड़ को शक था कि उसके टिफ़िन में बीफ है. उनकी मुख्य समस्या यह है कि उनके भाइयों को खम्बे से बांधकर पीटते हुए जय श्रीराम कहने पर मजबूर किया जाता है. और राम का जयकारा लगाने के बाद भी उनकी जान ले ली जाती है. उनकी मुख्य समस्या यह है कि शीर्ष भाजपा नेता, गौरक्षा या बीफ के नाम पर हत्या करने वालों का सम्मान करने के लिए आतुर रहते हैं.

सामूहिक सामाजिक सोच में इतना ज़हर घोल दिया गया है कि हिन्दू राष्ट्रवादी कुनबे के तथाकथित अतिवादी तत्त्व अब जय श्रीराम के नारे का उपयोग मुसलमानों को आतंकित करने के लिए कर रहे है.

पवित्र गाय के नाम पर जो कुछ हो रहा है, उससे अर्थव्यवस्था पर जो असर हुआ है, उसके चलते कई ‘मुस्लिम बहनों’ के घर चूल्हा नहीं जल पा रहा है. यह सोचना गलत है कि धार्मिक पहचान से जुड़ी हिंसा और अराजकता से केवल पुरुष प्रभावित होते हैं. उनके परिवारों की महिलाएं भी इससे प्रभावित होती हैं. सरकार उन ‘मुस्लिम बहनों’ की संख्या तो बता रही है जो तुरत-फुरत तीन तलाक से पीड़ित हैं. क्या वह उन ‘मुस्लिम बहनों’ की संख्या भी बताएगी, जो लवजिहाद, घरवापसी, राममंदिर और गौरक्षा के नाम पर की गयी हिंसा से पीड़ित हैं?

लैंगिक न्याय के मुद्दे पर सरकार बहुत गंभीर है. बहुत बढ़िया. क्या सरकार को यह मालूम नहीं है कि जनगणना 2011 के अनुसार, देश में ऐसी 24 लाख महिलाएं हैं जिन्हें उनके पतियों ने बिना तलाक दिए छोड़ा हुआ है. ये परित्यक्त महिलाएं, किसी भी प्रकार का भरण-पोषण नहीं पा रही हैं. क्या ऐसा कोई कानून है जिसके तहत इन महिलाओं के पतियों को उनकी नैतिक ज़िम्मेदारी का अहसास कराया जा सके?

सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष आयु-वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबन्ध को उच्चतम न्यायालय द्वारा रद्द कर दिए जाने के बाद भी वहां परंपरा के नाम पर, हिन्दू महिलाओं को प्रवेश नहीं दिया जा रहा है. क्या यह लैंगिक न्याय का मखौल नहीं है?

एक ओर जहाँ मुस्लिम महिलाओं की चिंता में भाजपा घुली जा रही है, वहीं वह मुस्लिम पुरुषों का दानवीकरण करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देने रही है. मुस्लिम महिलाओं के समानता के अधिकार को पूर्ण मान्यता और सम्मान देते हुए, हम यह निवेदन करना चाहते हैं कि पुरुष और महिला मिलकर परिवार बनाते है. मुस्लिम पुरुषों के दानवीकरण से ‘मुस्लिम बहनों’ को भी चोट पहुँचती है.

एनडीए में शामिल कई दल जैसे जेडीयू, तीन तलाक कानून के पक्ष में नहीं है. परन्तु भाजपा के भारी बहुमत के आगे उनकी कुछ चलने वाली नहीं है.

-राम पुनियानी

(अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया) (लेखक आईआईटी, मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)

Dr. Ram Puniayni's Article in Hindi