Hastakshep.com-आपकी नज़र-Dr. Kavita Arora-dr-kavita-arora-डॉ. कविता अरोरा-ddon-kvitaa-aroraa

रोज दिखती हैं मुझे अखबार सी शक्लें....

गली मुहल्ले चौराहों पर इश्तेहार सी शक्लें...

शिकन दर शिकन क़िस्सा ग़ज़ब लिखा है..

हिन्दू है कि मुस्लिम माथे पे ही मज़हब लिखा है....

पल भर में फूँक दो हस्ती ये मुश्त-ए-ग़ुबार है..

इंसानियत को चढ़ गया ये कैसा बुखार है..

खेल नफ़रतों का उसने ऐसा शुरू किया ..

अमन पसंद चमन का रंग ही बदल दिया..

उसने खेला जुआ..

फिर जो होना था सो हुआ...

नाकामियां अपनी कौमों की पीठ पे मल दीं..

मासूम अपढ़ जनता फ़कत भाषणों पे चल दी...

संविधान को छेड़ा प्रजातंत्र बदल दिया..

देश में ग़रीबी का ढंग ही बदल दिया...

मुफलिस चमकते कार्ड से चकाचौंध है..

उसकी एक आँख में पहले ही रतौंध है...

बेड़ागर्क है..

सस्ता नेटवर्क है..

कानी आँखो से वो टिकटाका रहे हैं..

फेरी वाले सब्ज़ी वाले सब जियो के सिम चला रहे हैं...

इकोनॉमी पस्त है..

देश सोशल मीडिया पे ही व्यस्त है....

घर-मढ़ैय्या बिके सिके ..

धंधे पानी चौपट..दिहाडी मज़दूर..लुटे पिटे..

मगर..ई..पब्लिक पोपट ..

ख़ाली खातों पर ए.टी.एम की लाइन में लगी इतरा रही है..

और सबको चायवाले की चाय से ईलायची की खुशबू आ रही है...

डॉ. कविता अरोरा