Enforcement Directorate (प्रवर्तन निदेशालय) के पूर्व निदेशक राजेश्वर सिंह ने गत 31 जनवरी को ही अपने पद से इस्तीफा दिया था। उनका इस्तीफा उसी दिन मंजूर कर लिया गया। राजेश्वर सिंह को भारतीय जनता पार्टी ने लखनऊ के सरोजनी नगर विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया है।
राजेश्वर सिंह ने कई मामलों की जांच की थी जिसमें दो प्रतिशत घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला (Commonwealth Games scam), एयरसेल मैक्सिस घोटाला, आईएनएक्स मीडिया घोटाला आदि कई मामले शामिल रहे हैं। इन मामलों में कांग्रेस के कई नेताओं को फंसाया गया और कई मामलों में अभी तक किसी को भी दोषी करार नहीं दिया गया। राजेश्वर सिंह की टीम लगातार ऐसे घोटालों की जांच करती रही, जिस पर यूपीए को कटघरे में खड़ा किया जा सके। 2-जी स्पेक्ट्रम आबंटन घोटाले में कोई तथ्य सामने नहीं आया। यही हाल कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले का है और कोयला खदान घोटाले का भी यही हाल है।
कांग्रेस के नेता पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम (Karti Chidambaram, son of Congress leader P Chidambaram) ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के लिए ईडी के अधिकारी के रूप में वीआरएस लेना वैसा ही है, जैसा कि किसी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी से इस्तीफा देकर मूल कंपनी में जिम्मेदारी संभाल लेना।
सीएजी के प्रमुख रहे विनोद राय को भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने बड़े पद तोहफे में दिए। राजेश्वर सिंह भी उन्हीं के कदमों पर चल रहे हैं।
पाँच राज्यों में होने वाले विधानसभा उपचुनावों में उत्तर प्रदेश के बाद अगर किसी प्रदेश की चर्चा प्रमुखता से हो रही है, तो वह है पंजाब। पंजाब के चुनावों में कांग्रेस, अकाली दल, आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी मुख्य रूप से मैदान में है। इनके अलावा एक और पार्टी चुनाव में सक्रिय हो गई है और वह है केन्द्र सरकार का प्रवर्तन निदेशालय, जो किसी राजनीतिक दल की तरह पंजाब के चुनाव में सक्रिय भागीदारी निभा रहा है।
चुनाव के ठीक पहले पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के भतीजे भूपिंदर सिंह को ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में गिरफ्तार कर लिया है। पंजाब में चुनाव के दो सप्ताह पहले हुई इस गिरफ्तारी को लेकर गंभीर सवाल उठाए जा रहे है। आखिर चुनाव के ठीक पहले ईडी इतना सक्रिय क्यों हुआ?
पंजाब में एक और मामला है, जो इस वक्त राजनैतिक गहमागहमी में उलझा है, वह मामला है नवजोत सिंह सिद्धू के विरूद्ध 33 साल पुराने एक मामले को वापस खोल देना। कांग्रेस का आरोप है कि एक दलित वर्ग के मुख्यमंत्री को परेशान करने के लिए पंजाब में ईडी सक्रिय हो गया है। गत 18 जनवरी को ईडी ने चन्नी के भतीजे भूपिन्दर सिंह उर्फ हनी के खिलाफ मामला दर्ज किया था।
बताया जाता है कि हनी के घर से 10 करोड़ रुपये बरामद हुए थे। जब 2018 में यह मामला सामने आया था, तब हनी का नाम सामने नहीं आया था। हनी की गिरफ्तारी चुनाव को प्रभावित करने के लिए की जा रही है। यह कांग्रेस का आरोप है, जबकि बीजेपी कह रही है कि मनी और हनी पकड़े जा चुके हैं। अब चन्नी की बारी है।
ईडी का कहना है कि हनी ने धन शोधन निवारण अधिनियम का उल्लंघन (Violation of Prevention of Money Laundering Act, 2002 (PMLA)) किया है, जब ईडी ने जालंधर में उनसे कई घंटे पूछताछ की, तब वे जवाब देने से बचते रहे। ईडी का कहना है कि हनी के विभिन्न परिसरों से करोड़ों नगद और आपत्तिजनक दस्तावेज बरामद किए गए थे। ऐसे में उनकी गिरफ्तारी पर सवाल उठाना वाजिब नहीं है। ईडी का यह छापा ऐसे वक्त में पड़ा है, जबकि राहुल गांधी यह घोषणा करने वाले थे कि अगर पंजाब में कांग्रेस जीती, तो मुख्यमंत्री पद का दावेदार कौन होगा?
ईडी का कहना है कि न केवल हनी बल्कि उनके सहयोगी संदीप कुमार के यहां से भी करीब दो करोड़ रुपये बरामद हुए। इसके अलावा छापेमारी में कई संस्थानों के दस्तावेज जब्त किए गए है। ईडी के यह छापे मोहाली, लुधियाना, रूपनगर, फतेहगढ़ साहब, पठानकोट में मारे गए। ये छापेमारी कुछ-कुछ वैसी ही है, जैसी पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के रिश्तेदारों के यहां की गई थी।
ईडी, सीबीआई और आयकर विभाग पर अक्सर यह आरोप लगते हैं कि चुनाव आते ही ये संस्थाएं सत्तारूढ़ दल के लिए काम करना शुरू कर देती हैं। इसमें प्रवर्तन निदेशालय प्रमुख भूमिका निभाता है।
लोकसभा चुनाव के पहले पी. चिदंबरम, शरद पवार, रॉबर्ट वाड्रा और डी.के. शिवकुमार के खिलाफ भी इन्फोर्समेंट डायरेक्टोरेट ने मामले दर्ज किए थे। आमतौर पर ईडी जितने मामले दर्ज करता है, उसमें बहुत ही कम लोग दोषी पाए जाते हैं। 2017 से 2018 के बीच ईडी ने करीब 570 नोटिस जारी किए थे, लेकिन सजा मिली केवल 4 लोगों को।
महाराष्ट्र में चुनाव के ठीक पहले ईडी ने एनसीपी के प्रमुख शरद पवार और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेता राज ठाकरे को नोटिस दिया था। यह नोटिस तब दिए गए, जब गृहमंत्री अमित शाह दो दिनों के लिए मुंबई यात्रा पर गए थे।
हरियाणा विधानसभा चुनाव के समय भी ऐसा ही हुआ। चुनाव के ठीक पहले ईडी ने प्रियंका गांधी वाड्रा के पति रॉबर्ट वाड्रा को हिरासत में लेकर पूछताछ करने की अनुमति मांगी थी। रॉबर्ट वाड्रा उस समय अदालत की अनुमति से विदेश गए हुए थे, जब वे विदेश से लौटे, तब उन्हें कभी भी गिरफ्तार नहीं किया गया।
ईडी ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री पी. चिदंबरम को गिरफ्तार किया था और उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया था। पी. चिदंबरम खुद देश के जाने-माने वकील हैं और गृहमंत्री तथा वित्त मंत्री जैसे पद संभाल चुके हैं, लेकिन ईडी ने कहा कि पी. चिदंबरम को अगर जमानत दी गई, तो वह देश छोड़कर भाग सकते हैं। बाद में कोर्ट ने चिदंबरम को जमानत दे दी।
वैसे कानूनी रूप से देखें, तो ईडी वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आता है और वित्त मंत्रालय निर्मला सीतारमण संभालती हैं, लेकिन जिस तरह से ईडी का दुरुपयोग हो रहा है, उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि ईडी वित्त मंत्रालय के तहत नहीं बल्कि गृह मंत्रालय के तहत काम कर रहा है।
ऐसे भी आरोप लगते रहे हैं कि जब अमित शाह भाजपा अध्यक्ष थे, तब भी वे सीबीआई के वरिष्ठ अधिकारियों को फोन करके विरोधी पार्टियों के नेताओं को हिरासत में लेने की मांग किया करते थे। जिस दिन चिदंबरम को जेल भेजा गया था, उसी दिन सोशल मीडिया पर भाजपा के हैंडल से यह बात कही गई थी कि अमित शाह को जेल भेजने वाले चिदंबरम को भी जेल भेज दिया गया।
चिदंबरम को फॉरेन इन्वेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड के एक फैसले में पक्षपात करने के मामले में गिरफ्तार किया गया था, जबकि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक बयान जारी करके साफ कहा था कि इस तरह का फैसला मंत्रिमंडल का था और उसके लिए किसी एक मंत्री को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
ऐसा कहा जाता है कि भारत की इन जांच एजेंसियों का काम भारतीय जनता पार्टी की चुनाव में मदद करना रहा है। तृणमूल कांग्रेस के ही मुकुल रॉय और कांग्रेस के हिमंता बिस्वा शर्मा के खिलाफ ईडी ने कई मामले दर्ज किए थे, जब ये नेता भारतीय जनता पार्टी में आ गए, तब वे मामले फाइलों में दफन हो गए। जांच एजेंसियों की इस तरह की गतिविधियां उनकी प्रतिष्ठा में तो दाग है ही लोकतंत्र के लिए भी एक तरह से खतरा है। जिन संवैधानिक संस्थाओं को निष्पक्ष होकर कार्य करना चाहिए, वे किसी एक पार्टी के प्रभाव में आकर इस तरह के फैसले लेने लगती है, मानो वे सत्तारूढ़ दल की ही ईकाई हो।
डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)