नई दिल्ली, 22 फरवरी 2021 : पर्यावरण प्रदूषण (environmental pollution) एक बहुत बड़ी समस्या है। जब हम वायु प्रदूषण (air pollution) के संदर्भ में बात करते हैं, तो हमारा ध्यान ऊँची फैक्टरी, वाहनों, ईंधन आदि के जलने से निकलने वाले धुएँ की ओर जाता है। इस बाहरी प्रदूषण के कारण आज हम ऐसी खुली जगहों में जाने से बचते हैं। लेकिन, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार इनडोर हवा में उपस्थित प्रदूषणकारी तत्व बाहरी हवा की तुलना में हजार गुना ज्यादा आसानी से मनुष्य के फेफड़ों में पहुँच जाते हैं।
एक ताजा अध्ययन में पता चला है कि दिल्ली के स्कूल और कॉलेजों की बिल्डिंग सबसे अधिक प्रदूषित हैं।
इस अध्ययन में, रेस्टोरेंट, अस्पतालों व सिनेमा हॉल में भी प्रदूषण का स्तर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central pollution control board) द्वारा निर्धारित सीमा से दो से पाँच गुना तक अधिक पाया गया है। हालांकि, शैक्षिक संस्थान, जैसे स्कूल और कॉलेज, इनडोर प्रदूषण के मामले में शीर्ष पर हैं।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर रिसर्च ऑन क्लीन एयर (Center of Excellence for Research on Clean Air), सोसायटी फॉर इनडोर एन्वायरमेंट द्वारा राजधानी के 37 भवनों में 15 अक्तूबर 2020 से 30 जनवरी 2021 तक किए गए सर्वेक्षण में ये तथ्य उभरकर आए हैं।
अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि शहरों में हमारा ज्यादातर समय घर, ऑफिस या स्कूल
रेस्टोरेंट्स और अस्पतालों की आंतरिक वायु गुणवत्ता खराब होने का कारण खाना बनाने में प्रयुक्त तेल और सफाई के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले रासायनिक पदार्थों को बताया गया है। वहीं, इन भवनों में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा भी अधिक पायी गई है। इसका कारण हवा के निकास का संकुचित होना बताया जा रहा है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इन भवनों में, एक निश्चित समय में अधिक संख्या में लोग होते हैं, जिसके कारण कार्बन डाईऑक्साइड एकत्र हो जाती है। हालांकि, स्कूल आमतौर पर हवादार होते हैं। इसलिए, एक-दो स्कूलों को छोड़कर कार्बन डाईआक्साइड निर्धारित सीमा के भीतर ही पायी गई है।
जब आंतरिक और बाहरी वातावरण की वायु गुणवत्ता में पीएम 10 और पीएम 2.5 का तुलनात्मक परीक्षण किया गया, तो सर्वेक्षण में शामिल सभी छह स्कूलों की वायु गुणवत्ता बेहद खराब पायी गई।
सर्वेक्षण में पता चला है कि हीटर, फोटोकॉपी मशीन, प्रिंटर, गोंद पेंट जैसी चीजें भी आंतरिक वायु गुणवत्ता को खराब करने के लिए जिम्मेदार हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार आंतरिक वायु प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष विश्व स्तर पर मरने वालों की संख्या 35 लाख है, जो कि बाहरी प्रदूषण से मरने वालों की संख्या से बहुत ज्यादा है। भारत में आंतरिक प्रदूषण से मरने वालों की संख्या उच्च रक्तचाप से मरने वालों के बाद दूसरे स्थान पर है।
(इंडिया साइंस वायर)