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EEG to minimize human error | कार्यस्थल पर सुरक्षा के उपाय

नई दिल्ली, 31 अगस्त (इंडिया साइंस वायर): किसी दुर्घटना की स्थिति में तत्परता से काम करने की आवश्यकता होती है। अधिकांश औद्योगिक दुर्घटनाओं के जाँच-निष्कर्ष में “मानव-भूल” दुर्घटना के प्रमुख कारण के रूप में चिह्नित है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास- Indian Institute of Technology Madras (IIT Madras के एक ताजा अध्ययन में दिखाया गया है कि इलेक्ट्रोएन्सेफ्लोग्राम (ईईजी)- Electroencephalogram (EEG)  से कर्मचारियों के मस्तिष्क की विद्युतीय तरंगों को मापकर आपात स्थिति में उनकी मानसिक सक्रियता का पता लगाया जा सकता है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि इस अध्ययन से यह पता लगाया जा सकता है कि आपात स्थिति से निपटने में किसी औद्योगिक इकाई के कर्मचारी मानसिक तौर पर कितने तैयार हैं।

इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राफी क्या है (विद्युतमस्तिष्कलेखन) | What is electroencephalography |

इलेक्ट्रोएन्सेफ्लोग्राफी (ईईजी EEG ka Full Form in Hindi) मस्तिष्क की विद्युत गतिविधि रिकॉर्ड करने के लिए एक इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिकल मॉनिटरिंग विधि है। इस पद्धति में सेंसर को सिर पर लगाकर मस्तिष्क की तरंगों की गतिविधियों का आकलन किया जाता है। जबकि, इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी फिजियोलॉजी की शाखा है, जिसमें जैविक कोशिकाओं और ऊतकों के विद्युतीय गुणों का अध्ययन किया जाता है। शोधकर्ता मानते हैं कि मानव मस्तिष्क तरंगों के विश्लेषण की यह पद्धति औद्योगिक दुर्घटनाएं रोकने में प्रभावी भूमिका निभा सकती है।

औद्योगिक दुर्घटनाओं पर अंकुश कैसे लगे

आईआईटी मद्रास के शोधकर्ताओं ने ईईजी तकनीक का उपयोग एक रासायनिक संयंत्र के कर्मचारियों पर उनके कॉग्निटिव वर्कलोड (cognitive workload) का आकलन करने के लिए किया है। कॉग्निटिव वर्कलोड, किसी स्थिति की समीक्षा में व्यक्ति के मस्तिष्क पर पड़ने वाले भार का द्योतक होता है। एक कर्मी में उच्च कॉग्निटिव वर्कलोड की स्थिति, उसके द्वारा गलती करने की अधिक संभावना की सूचक है, जो अंततः दुर्घटनाओं का कारण बन सकती है।

Human errors are the cause of nearly 70 percent of industrial accidents, the world over

अध्ययन का नेतृत्व कर रहे

आईआईटी मद्रास के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर राजगोपालन श्रीनिवासन ने बताया कि

“दुनियाभर में होने वाली औद्योगिक दुर्घटनाओं के 70 प्रतिशत मामलों के पीछे मानवीय गलतियां जिम्मेदार होती हैं। नियोजन और कार्यान्वयन के स्तर पर होने वाली गलतियां सिर्फ कर्मचारियों की कुशलता पर निर्भर नहीं होतीं, बल्कि इसके लिए वास्तविक समय में उनके मस्तिष्क की प्रतिक्रिया भी जिम्मेदार होती है। किसी कार्य में कर्मचारियों की अपेक्षित क्षमता, अगर उनकी मानसिक प्रतिक्रिया से मेल नहीं खाती, तो उस व्यक्ति के कामकाज में गलती होने की संभावना होती है।”

प्रोफेसर श्रीनिवासन के अनुसार

“हमारे सभी विचार और गतिविधियां, मस्तिष्क की कोशिकाओं के बीच विद्युत संकेतों, जिन्हें मस्तिष्क तरंगें कहा जाता है, से संचालित होते हैं। ये तरंगें विभिन्न आवृत्तियों पर होती हैं, जिन्हें अल्फा, बीटा, गामा, थीटा एवं डेल्टा कहा जाता है। इन तरंगों के सापेक्ष परिमाण के साथ-साथ इनकी भिन्नता हमारी विचार प्रक्रिया और वर्तमान मानसिक स्थिति का संकेत होती है।”

इस अध्ययन में शामिल छह प्रतिभागियों के सिर पर सेंसर लगाए थे और उन्हें आठ विभिन्न कार्यों को करने के लिए कहा गया था। कार्य की प्रकृति कुछ ऐसी थी, जिसके तहत औद्योगिक प्रक्रिया के एक खंड की निगरानी की जानी थी, जिसे एक निश्चित समय में नियंत्रित न करने पर दुर्घटना हो सकती है। इस प्रकार, उन्हें नौकरी की प्रकृति एवं संयंत्र (औद्योगिक अनुभाग) व्यवहार को समझने और किसी गड़बड़ी के होने पर उचित निर्णय लेने एवं तत्काल प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है। किसी तरह की गड़बड़ी कर्मचारियों के कॉग्निटिव वर्कलोड को बढ़ा देती है, और इसका स्तर तभी कम होता है, जब सही निर्णय लिया गया हो।

असामान्य स्थिति में, किसी औद्योगिक कार्य से संबंधित कर्मचारियों के मेंटल मॉडल और वास्तविक संयंत्र के व्यवहार में अंतर की पहचान थीटा तरंगों की मात्रा से की जा सकती है।

प्रोफेसर श्रीनिवासन की योजना ईईजी तरंगों से संबंधित अध्ययन को अधिक जोखिम वाले उद्योगों में मानवीय क्षमता में सुधार से जोड़ने की है। इस प्रकार कर्मचारियों की मानसिक स्थिति के सटीक आकलन से औद्योगिक सुरक्षा को एक नया आयाम मिल सकता है।

अध्ययन के निष्कर्ष शोध पत्रिका ‘कम्प्यूटर्स ऐंड कम्प्यूटर इंजीनियरिंग’ में प्रकाशित किए गए हैं। शोधकर्ताओं में प्रोफेसर राजगोपालन के अलावा मोहम्मद उमैर इकबाल और प्रोफेसर बाबजी श्रीनिवासन शामिल थे।

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