पृथ्वी के भूपटल में उत्पन्न तनाव का, उसकी सतह पर अचानक मुक्त होने के कारण पृथ्वी की सतह का हिलना या कांपना, भूकंप कहलाता है। भूकंप प्राकृतिक आपदाओं में से सबसे विनाशकारी विपदा है जिससे मानवीय जीवन की हानि हो सकती है। आमतौर पर भूकंप का प्रभाव अत्यंत विस्तृत क्षेत्र में होता है। भूकंप, व्यक्तियों को घायल करने और उनकी मौत का कारण बनने के साथ ही व्यापक स्तर पर तबाही का कारण बनता है। इस तबाही के अचानक और तीव्र गति से होने के कारण जनमानस को इससे बचाव का समय नहीं मिल पाता है।
बीसवीं सदी के अंतिम दो दशकों के दौरान पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर 26 बड़े भूकंप आए, जिससे वैश्विक स्तर पर करीब डेढ़ लाख लोगों की असमय मौत हुई। यह दुर्भाग्य ही है कि भूकंप का परिणाम अत्यंत व्यापक होने के बावजूद अभी तक इसके बारे में सही-सही भविष्यवाणी करने में सफलता नहीं मिली है। इसी कारण से इस आपदा की संभावित प्रतिक्रिया के अनुसार ही कुछ कदम उठाए जाते हैं।
विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत भूकंप का अध्ययन किया जाता है, भूकंप विज्ञान (सिस्मोलॉजी) कहलाती है और भूकंप विज्ञान का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों को भूकंपविज्ञानी कहते हैं। अंग्रेजी शब्द ‘सिस्मोलॉजी’ में ‘सिस्मो’ उपसर्ग ग्रीक शब्द है जिसका अर्थ भूकंप है। भूकंपविज्ञानी भूकंप के परिमाण को आधार मानकर उसकी व्यापकता को मापते हैं। भूकंप के परिमाण को मापने की अनेक विधियां हैं।
हमारी धरती मुख्य तौर पर चार परतों से बनी हुई है, इनर कोर, आउटर कोर, मैनटल और क्रस्ट। क्रस्ट और ऊपरी मैन्टल को लिथोस्फेयर कहते हैं।
भूकंप को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि पृथ्वी के भूपटल में उत्पन्न तनाव के आकस्मिक मुक्त होने से धरती की सतह के हिलने की घटना भूकंप कहलाती है। इस तनाव के कारण हल्का सा कंपन उत्पन्न होने पर पृथ्वी में व्यापक स्तर पर उथल-पुथल विस्तृत क्षेत्र में तबाही का कारण बन सकती है।
जस बिंदु पर भूकंप उत्पन्न होता है उसे भूकंपी केंद्रबिंदु और उसके ठीक ऊपर पृथ्वी की सतह पर स्थित बिंदु को अधिकेंद्र अथवा अंत:केंद्र के नाम से जाना जाता है। अधिकेंद्र की स्थिति को उस स्थान के अक्षांशों और देशांतरों के द्वारा व्यक्त किया जाता है।
भूकंप के समय एक हल्का सा झटका महसूस होता है। फिर कुछ अंतराल के बाद एक लहरदार या झटकेदार कंपन महसूस होता है, जो पहले झटके से अधिक प्रबल होता है। छोटे भूकंपों के दौरान भूमि कुछ सेकंड तक कांपती है, लेकिन बड़े भूकंपों में यह अवधि एक मिनट से भी अधिक हो सकती है। सन् 1964 में अलास्का में आए भूकंप के दौरान धरती लगभग तीन मिनट तक कंपित होती रही थी। भूकंप के कारण धरती के कांपने की अवधि विभिन्न कारणों जैसे अधिकेंद्र से दूरी, मिट्टी की स्थिति, इमारतों की ऊंचाई और उनके निर्माण में प्रयुक्त सामग्री पर निर्भर करती है।
भूकंप की तीव्रता मापने के लिए रिक्टर स्केल का पैमाना इस्तेमाल किया जाता है। इसे रिक्टर मैग्नीट्यूड टेस्ट स्केल कहा जाता है। भूकंप की तरंगों को रिक्टर स्केल 1 से 9 तक के आधार पर मापता है। रिक्टर स्केल पैमाने को सन 1935 में कैलिफॉर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलाजी में कार्यरत वैज्ञानिक चार्ल्स रिक्टर ने बेनो गुटेनबर्ग के सहयोग से खोजा था।
इस स्केल के अंतर्गत प्रति स्केल भूकंप की तीव्रता 10 गुणा बढ़ जाती है और भूकंप के दौरान जो ऊर्जा निकलती है वह प्रति स्केल 32 गुणा बढ़ जाती है। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि 3 रिक्टर स्केल पर भूकंप की जो तीव्रता थी वह 4 स्केल पर 3 रिक्टर स्केल का 10 गुणा बढ़ जाएगी। रिक्टर स्केल पर भूकंप की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 8 रिक्टर पैमाने पर आया भूकंप 60 लाख टन विस्फोटक से निकलने वाली ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है।
भूकंप को मापने के लिए रिक्टर के अलावा मरकेली स्केल का भी इस्तेमाल किया जाता है। पर इसमें भूकंप को तीव्रता की बजाए ताकत के आधार पर मापते हैं। इसका प्रचलन कम है क्योंकि इसे रिक्टर के मुकाबले कम वैज्ञानिक माना जाता है। भूकंप के कारण होने वाले नुकसान के लिए कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं, जैसे घरों की खराब बनावट, खराब संरचना, भूमि का प्रकार, जनसंख्या की बसावट आदि।
कितनी जल्दी आते हैं भूकंप? | How soon do earthquakes come?
भूकंप एक सामान्य घटना है। एक अनुमान के अनुसार विश्व में लगभग प्रत्येक 87 सेकंड में कहीं न कहीं धरती हल्के से कांपती है। इन झटकों को महसूस तो किया जा सकता है लेकिन ये इतने शक्तिशाली नहीं होते कि इनसे किसी प्रकार की क्षति हो सके। प्रति वर्ष धरती पर औसतन 800 भूकंप ऐसे आते हैं जिनसे कोई नुकसान नहीं होता है। इनके अतिरिक्त धरती पर प्रति वर्ष 18 बड़े भूकंप आने के साथ एक अतितीव्र भूकंप भी आता है।
बिरले ही भूकंप की घटना थोड़े ही समय अंतराल के दौरान भूकंपों के विभिन्न समूह रूप में हो सकती है। उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यू मैड्रिड में सात सप्ताह (16 दिसंबर 1811, 7 फरवरी और 23 फरवरी 1812) के दौरान भूकंप की तीन तीव्र घटनाएँ घटित हुई थी। इसी प्रकार ऑस्ट्रेलिया के टेनेट क्रीक में 22 जनवरी, 1988 को 12 घंटे की अवधि के दौरान भूकंप की तीन तीव्र घटनाएँ घटित हुई थीं।
भूकंप के कितने प्रकार के होते हैं | what are the different types of earthquakes | Types of Earthquakes & Faults | major types of earthquakes
भूकंप के मुख्यत: दो प्रकारों हैं -
प्राकृतिक कारणों से आने वाले भूकंप
प्राकृतिक रूप से आने वाले भूकंप विवर्तनिक भूकंप भी कहलाते हैं क्योंकि ये पृथ्वी के विवर्तनिक गुण से संबंधित होते हैं। प्राकृतिक रूप से आने वाले अधिकतर भूकंप भ्रंश (फाल्ट) के साथ आते हैं। भ्रंश भूपटल में हलचल के कारण उत्पन्न होने वाली दरार या टूटन है। ये भ्रंश कुछ मिलीमीटर से कई हजार किलोमीटर तक लंबे हो सकते हैं। भूविज्ञान कालक्रम के दौरान अधिकतर भ्रंश दोहरे विस्थापनों का निर्माण करते हैं।
मानवीय गतिविधियों से प्रेरित भूकंप | Human activity can trigger earthquakes, but how many? | Can earthquakes be caused by human activity |Human induced earthquakes | Man made earthquake in india
मानवीय गतिविधियाँ भी भूकंप को प्रेरित कर सकती हैं। गहरे कुओं से तेल निकालना, गहरे कुओं में अपशिष्ट पदार्थ या कोई तरल भरना अथवा निकालना, जल की विशाल मात्रा को रखने वाले विशाल बांधों का निर्माण करना और नाभिकीय विस्फोट जैसी विनाशकारी घटना के समान गतिविधियाँ मानव प्रेरित भूकंप का कारण हो सकती हैं।
कृत्रिम जलाशय के कारण आने वाले बड़े भूकंपों में से एक भूकंप सन् 1967 में महाराष्ट्र के कोयना क्षेत्र में आया था। भूकंप का कारण बनी एक और कुख्यात मानवीय गतिविधि संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलरेडो स्थित राकी माउटेंन पर डेनवेर क्षेत्र में तरल पदार्थ को गहरे कुओं में प्रवेश कराए जाने से संबंधित रही है।
भूकंप कैसे पैदा होते हैं?
प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी की बाहरी पर्त या भूपटल की बनावट बड़ी और छोटी कठोर प्लेटों से बनी चौखटी आरी (जिग्सॉ) जैसी होती है। इन प्लेटों की मोटाई सैकड़ों किलोमीटर तक हो सकती है। संभवत: प्रावार के नीचे संवहन धाराओं के प्रभाव से ये प्लेटें एक-दूसरे के सापेक्ष गति करती हैं। पृथ्वी को अनेक भूकंपी प्लेटों में बांटा गया है। इन प्लेटों के अंतर पर, जहां प्लेटें टकराती या एक-दूसरे से दूर जाती हैं वहां बड़े भूमिखंड पाए जाते हैं। इन प्लेटों की गति काफी धीमी होती है। अधिकतर तीव्र भूकंप वहीं आते हैं, जहां ये प्लेटें आपस में मिलती हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि प्लेटों के किनारे आपस में एक दूसरे में फंस जाती हैं जिससे यह गति नहीं कर पाती और इनके मध्य दबाव उत्पन्न होता है। नतीजतन प्लेटें एक-दूसरे को प्रचंड झटका देकर खिसकती है और धरती प्रचंड रूप से कंपित होती है। इस प्रक्रिया में विशाल भ्रंशों के कारण पृथ्वी की भूपटल पर्त फट जाती है।
किसी क्षेत्र में एक बार भ्रंशों के उत्पन्न हो जाने पर वह क्षेत्र कमजोर हो जाता है। भूकंप वस्तुत: पृथ्वी के अंदर संचित तनाव के बाहर निकलने का माध्यम है, जो सामान्यतया इन भ्रंशों के दायरे में ही सीमित होते हैं। जब पृथ्वी के अंदर का तनाव मौजूद भ्रंशों से दूर स्थित किसी अन्य स्थान पर निस्तारित होता है, तब नए भ्रंश उत्पन्न होते हैं।
भूकंप की शक्ति का कैसे पता लगाएं?
परिमाण और तीव्रता किसी भूकंप की प्रबलता मापने के दो तरीके हैं। भूकंप के परिमाण का मापन भूकंप-लेखी में दर्ज भू-तरंगों के आधार पर किया जाता है। भूकंप-लेखी भूकंप का पता लगाने वाला उपकरण है। किसी भूकंप की प्रबलता भूकंप-लेखी में दर्ज हुए संकेतों के अधिकतम आयाम एवं भूकंप स्थल से उपकरण की दूरी के आधार पर निर्धारित की जाती है।
रिक्टर पैमाने पर तीव्रता प्रभाव
0 से 1.9 सिर्फ सीज्मोग्राफ से ही पता चलता है।
2 से 2.9 हल्का कंपन।
3 से 3.9 कोई ट्रक आपके नजदीक से गुजर जाए, ऐसा अहसास
4 से 4.9 खिड़कियां टूट सकती हैं। दीवारों पर टंगी फ्रेम गिर सकती हैं।
5 से 5.9 फर्नीचर हिल सकता है।
6 से 6.9 इमारतों की नींव दरक सकती है। ऊपरी मंजिलों को नुकसान हो सकता है।
7 से 7.9 इमारतें गिर जाती हैं। जमीन के अंदर पाइप फट जाते हैं।
8 से 8.9 इमारतों सहित बड़े पुल भी गिर जाते हैं।
9 और उससे ज्यादा से पूरी तबाही। कोई मैदान में खड़ा हो तो उसे धरती लहराते हुए दिखाई देगी। यदि समुद्र नजदीक हो तो सुनामी आने की पूर्ण आशंका।
रिक्टर पैमाना आरंभ तो एक इकाई से होता है लेकिन इसका कोई अंतिम छोर तय नहीं किया गया है, वैसे अब तक ज्ञात सर्वाधिक प्रबल भूकंप की तीव्रता 8.8 से 8.9 के मध्य मापी गई है।
अभी तक भारत में आए सर्वाधिक प्रबलता के भूकंप का परिमाण रिक्टर पैमाने पर 8.7 मापा गया है, यह भूकंप 12 जून, 1897 को शिलांग प्लेट में आया था।
भारत का भूकंपी क्षेत्र
भारत को पांच विभिन्न भूकंपी क्षेत्रों में बांटा गया है।
क्षेत्र I जहां कोई खतरा नहीं है।
क्षेत्र II जहां कम खतरा है।
क्षेत्र III जहां औसत खतरा है।
क्षेत्र Iv जहां अधिक खतरा है।
क्षेत्र v जहां बहुत अधिक खतरा है।
उत्तर-पूर्व के सभी राज्य, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्से जोन-5 में ही आते हैं। उत्तराखंड के कम ऊंचाई वाले हिस्सों से लेकर उत्तर प्रदेश के ज्यादातर हिस्से तथा दिल्ली जोन-4 में आते हैं। मध्य भारत अपेक्षाकृत कम खतरे वाले हिस्से जोन-3 में आता है, जबकि दक्षिण के ज्यादातर हिस्से सीमित खतरे वाले जोन-2 में आते हैं।
हालांकि राजधानी दिल्ली में ऐसे कई इलाके हैं जो जोन-5 की तरह खतरे वाले हो सकते हैं।
एक भूकंप के दौरान होने वाली हानि मुख्यत: निम्न कारकों पर निर्भर करती हैं।
कंपन की शक्ति : भूकंप के कंपन की शक्ति दूरी के साथ घटती जाती है। किसी भूकंप के दौरान भ्रंश खंड के साथ तीव्र कंपन की प्रबलता इसके विसर्पण या फिसलन के दौरान 13 किलोमीटर दूरी में आधी, 27 किलोमीटर में एक चौथाई, 48 किलोमीटर दूरी में आठवां भाग और 80 किलोमीटर में सोलवां भाग रह जाती है।
कंपन की लंबाई : कंपन की लंबाई भूकंप के दौरान भ्रंश की टूटन पर निर्भर करती है। इमारतों के लंबे समय तक हिलने से अधिक और स्थायी नुकसान होता है।
मिट्टी का प्रकार : भुरभुरी, बारीक़ और गीली मिट्टी में कंपन अधिक होता है।
भवन का प्रकार : कुछ इमारतें भूकंप के दौरान कंपन से पर्याप्त सुरक्षित नहीं होते हैं।
किसी भूकंप के दौरान मानव निर्मित संचनाओं के गिरने और वस्तुओं एवं कांच के हवा में उछलने से जान-माल की हानि अधिक होती है। शिथिल या ढीली मिट्टी में बनने वाली दृढ़ संरचनाओं की अपेक्षा आधारशैल पर बनने वाली लचीली संरचनाओं में भूकंप से क्षति कम होती है। कुछ क्षेत्रों में भूकंप से पहाड़ी ढाल से मृदा की परतों के फिसलने से अनेक लोग दब सकते हैं।
बड़े भूकंपों के कारण धरती की सतह पर प्रचंड हलचल होती है। कभी-कभी इनके कारण समुद्र में विशाल लहरें उत्पन्न होती हैं जो किनारों पर स्थित वस्तुओं को बहा ले जाती हैं। ये लहरें भूकंप के कारण सामान्य तौर पर होने वाले विनाश को और बढ़ा देती हैं। अक्सर प्रशांत महासागर में इस प्रकार की लहरें उत्पन्न होती है। इन विनाशकारी लहरों को सुनामी कहा जाता है।
भूकंप बचाव की तैयारी | भूकंप आने पर क्या करें? |
यदि आप भूकंप के खतरे वाले क्षेत्र रहते हो तब पहले से बनाई गई आपात योजना आपकी सहायता कर सकती है। परिवार के सभी सदस्य को यह जानकारी होनी चाहिए कि किस प्रकार से गैस, पानी और विद्युत के मुख्य तंत्रों को बंद किया जाता है। परिवार में आपातकालीन स्थिति की रिहर्सल करना चाहिए।
आशीष श्रीवास्तव
(यह लेख मूलतः देशबन्धु पर प्रकाशित हुआ था, उसका संपादित अंश साभार)