बैरिस्टर जिन्ना और बैरिस्टर सावरकर के द्विराष्ट्र के सिद्धांतों का फेल होना यही बांग्लादेश का निर्माण होना है। आज इस ऐतिहासिक घटना की पचासवी वर्षगांठ का दिन है।
1917 को अंडमान की जेल से ही सावरकर ने अपनी हिंदुत्व नाम की किताब के हस्तलिखित कापी को बाहर भेजकर धर्म के आधार पर भारत में दो देश हिंदू और मुसलमानों के हैं, यह तर्क करने की वकालत सावरकर ने की।
हिंदू-मुस्लिम दो अलग राष्ट्र हैं, इसी तर्ज के साथ बैरिस्टर जिन्ना ने मुल्क का बंटवारा सिर्फ़ धर्म के आधार पर किया, वह भी सावरकर के द्विराष्ट्र के सिद्धांत के चालीस साल के बाद। और बैरिस्टर सावरकर जीवित थे।
सबसे चौंकानी वाली बात 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के कारण ही कांग्रेस ने देश भर के विभिन्न राज्यों में सरकार बनाने से इन्कार किया था तो 1940 के मुस्लिम लीग के लाहौर प्रस्ताव पारित किया गया, उसके बाद सिंध से लेकर बंगाल तक हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग की संयुक्त सरकार बेखटके कायम थी और जिस श्यामा प्रसाद मुखर्जी का महिमामंडन करने से बीजेपी थकती नहीं है, वह फजलुर्रहमान चौधरी के मंत्रियों में शामिल थे और तत्कालीन ब्रिटिश सरकार को खत लिखकर भारत छोड़ो आंदोलनकारियों से कैसे-कैसे निपटा जा सकता है, यह विस्तार से सुझाव दिया है। यानी किसी आंदोलन से निपटने की निपुणता इतनी पुरानी है।
उसके बाद वह और सोलह साल जीवित थे। 1963
और बंटवारे के दूसरे गुनाहगार बैरिस्टर जिन्ना सिर्फ तेरह महीने जीवित रहे। 1949 के सितम्बर में मरे हैं। और विडंबना देखिए जिस आदमी ने अपनी जी जान से बंटवारे का विरोध किया उसकी हिंदुत्ववादी विचारधारा के लोगों द्वारा हत्या की जाती है। लेकिन इस जमात को महात्मा गाँधी के हत्या करने के लिए साजिश करने के लिए फुरसत मिलती है। लेकिन बंटवारे के खिलाफ कोई एक भी कृति या कार्यक्रम करने की बात क्यों नहीं सूझी ?
तब हिंदू महासभा की उम्र पैतीस सालों से ज्यादा थी, और संघ की उम्र तेईस साल से ज्यादा। और इनके बौद्धिक प्रमुख बैरिस्टर सावरकर जीवित थे। तो महात्मा गाँधी के हत्यारे प्रत्यक्ष रूप से हाथों में हथियार लेकर क्यों बंटवारे के खिलाफ मैदान में नहीं उतरे ? यह सवाल मेरे सामने होश आया तबसे बार-बार आते रहता है। हालाँकि संघ शाखाओं में वीरता का विशेष रूप से ट्रेनिंग दिया जाता है। वह सिर्फ मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ दंगों में ही अपनी बहादुरी दिखाने के लिए या छप्पन इंची छाती जैसे बेसिर-पैर की बातें करने के लिए ?
भारत विभाजन जिसमें विश्व के सबसे बड़ा विस्थापन में दो करोड़ से भी ज्यादा और बीस लाख से भी ज्यादा लोग मारे गये थे। यह दुनिया की अब तक की मनुष्य निर्मित सबसे बड़ी कार्रवाई कहा जाए तो भी गलत नहीं होगा।
जिस बात को पच्चीस साल पूरे होने के पहले धर्म के आधार पर भारत के विभाजन करने वाले लोगों के मुंह पर झन्नाटेदार तमाचा यानी 26 मार्च 1971 के दिन शेख मुजीबुर्रहमान का पाकिस्तान से बंगला देश अलग होने की घोषणा। जिसे आज पचास साल यानी अर्धशताब्दी पूरा हो रहा है। यह धर्म के आधार पर भारत में भी वर्तमान समय की सत्ता सम्हलने वाली भारतीय जनता पार्टी और उसके मातृसंगठन आरएसएस के लिए बहुत बड़ा सबक है।
इतिहास की विडंबना देखिए जिस ढाका के नवाब के पहल से मुस्लिम लीग की स्थापना की गयी थी, 1906 में उसी ढाका में शहीद सुराहवर्दी और मौलाना भासानी ने 23 जून 1949 के दिन ईस्ट पाकिस्तान अवामी मुस्लिम लीग की स्थापना की है, मुस्लिम लीग से अलग होकर। और यही पाकिस्तान के बनने की अपयश गाथा शुरु हो कर 26 मार्च के 1971 के दिन स्वतंत्र बांग्ला देश की शेख मुजीबुर्रहमान द्वारा की गई घोषणा।
यह सब कुछ बीसवीं सदी के अंदर की ही घटनाएं हैं। और काफी सारे लोग पाकिस्तान की 1940 लाहौर घोषणा से लेकर 26 मार्च 1949 के दिन बांग्लादेश की घोषणा के साक्षी रहे हैं। प्रमुख रूप से भारत के देशप्रेम का ढोंग करने वाले संघ परिवार के गोलवलकर, सावरकर जैसे स्वघोषित राष्ट्रवादी बहुत ही स्वस्थ जीवन जीने का इतिहास साक्षी है।
शेख मुजीबुर्रहमान गोपालगंज सिविल कोर्ट के क्लर्क पीता शेख लतिफुर्रहमान और माता शेख सायरा खातून के बेटे 17 मार्च 1920 के दिन अविभाजित भारत मे पैदा हुए थे। मतलब पिछले साल उनकी जन्म शताब्दी का वर्ष था। और आज अर्धशताब्दी बांग्लादेश का निर्माण होने का मतलब बंगबंधु बांग्लादेश देश की स्वतंत्रता के समय गिनकर पचास साल उम्र के थे।
शेखमुजीबुर्रहमान (sheikh mujibur rahman) को प्यार से बंगबंधु बोला जाता था। क्योंकि वह शुरू से ही बहुतही अन्याय अत्यचार के खिलाफ विद्रोह करने वाले रहे हैं। अपने विद्यार्थी जीवन में ही अन्य साथियों को लेकर अपने स्कूल के अन्यायपूर्ण व्यवहार करने वाले प्रधानाचार्य को हटाने के लिए आंदोलन करने से लेकर 1940 मे ऑल इंडिया मुस्लिम स्टूडेंट फेडरेशन और बाद में 1943 में मुस्लिम लीग! बंटवारा होने के बाद दो साल के भीतर ही पश्चिमी पाकिस्तान की ज्यादती प्रशासन से लेकर भाषा जैसे महत्वपूर्ण सवाल पर दूरियां बढ़ाने का सिलसिला शुरू हुआ। तो दो साल के भीतर ही पश्चिमी पाकिस्तान की मुस्लिम लीग से अलग होकर शहीद सुराहवर्दी और मौलाना भासानी ने अवामी लीग की स्थापना करके, 1949 में ईस्ट पाकिस्तान को स्वायत्तता दी जाए यह मांग कर के, पश्चिमी पाकिस्तान की दादागिरी का विरोध, मुख्य रूप से उर्दू की जबरदस्ती का विरोध किया।
आज भी भारत में एक भाषा एक निशान और तथाकथित हिंदू धर्म के आधार पर भारत को एक सूत्र की बात करने वाले संघ परिवार के स्वयंसेवक, जो इस वक्त प्रधानमन्त्री के हैसियत से ढाका में बांग्लादेश की अर्धशताब्दी समारोह में हिस्सेदारी करने के लिए गये हैं, उस मौके पर कुछ उन्हें सीखने की उम्मीद बेकार है, क्योंकि बारह महीने चौबीसों घंटे वह चुनाव के मोड पर ही रहते हैं और बगल के पश्चिमी बंगाल और आसाम के चुनावों को देखते हुए वह पूर्व बंगाल के इस कार्यक्रम को भी नहीं भुनायेंगे यह संभावना नहीं है। वह प्रधानमंत्री कम प्रचारक ज्यादा हैं।
हालांकि पाकिस्तान की निर्मिती सिर्फ और सिर्फ धर्म के आधार पर भारत को बांटने की थी। और एक संगठन गत 96 वर्षों से फिर वही गलती दोहरा रहा है, हिंदुओ का हिंदुस्तान।
इससे ज्यादा अंधेपन का उदाहरण और क्या हो सकता है ? और भाषा, खान पान रहन-सहन यह भारत जैसे विशाल देश की एक अलग पहचान है। यह स्वीकार करना तो दूर जोर जबरदस्ती से हिंदी से लेकर तथाकथित नागरिकता कानूनों से लेकर कश्मीर की और दिल्ली की स्वायत्तता को खत्म करने के तुगलकी निर्णयों को देखते हुए आज ही तमिलनाडु में द्रविड़ संस्कृति को लेकर सशक्त आंदोलन शुरू हो चुका है। और इसी तरह केरल से लेकर कश्मीर तक केंद्र सरकार के तरफ से की जा रही ज्यादतियों को देखते हुए मुझे आज बांग्ला देश की स्वतंत्रता के अर्धशताब्दी की खुशी के साथ भारत की एकता-अखंडता की भी चिंता सता रही है।
बंगाल के शहीद सुहरावर्दी 1963 के मरने के बाद शेख मुजीबुर्रहमान अवामी लीग के मुख्य नेता बन कर उभरे थे। पाकिस्तान के जनरल अय्यूब खान की तानाशाही के खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान में मार्शल लॉ के खिलाफ और जनतंत्र और स्वायत्तता को लेकर जबरदस्त आंदोलन शुरू करने में शेख मुजीबुर्रहमान की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। और उसी को देखकर पाकिस्तान की सेना द्वारा बंगाला भाषी लोगों पर अत्याचार और महिलाओं के ऊपर बलात्कार करने की तो हदें पार कर दीं। ढाका विश्वविद्यालय के बुद्धिजीवियों से लेकर बंगला भाषा के कवि, लेखक, पत्रकार एक तरह से बंगाल की सांस्कृतिक और बौद्धिक पीढ़ी को खत्म करने की कोशिश की है, जिसमें लाखों, लोग मारे गये थे और हजारों महिलाओं का बलात्कार करने की पाकिस्तान सेना का गुनाह कभी भी भूल नहीं सकते।
इसी अफरा तफरी के माहौल में अय्यूब खान ने 1970 के जनरल इलेक्शन की घोषणा की थी। और उस चुनाव में शेख मुजीबुर्रहमान की अवामी लीग पार्टी को बहुमत मिला! लेकिन उन्हें सरकार बनाने के लिए आनाकानी करने लगे! उल्टा शेख मुजीबुर्रहमान को जेल में डाल दिया। और जुल्फिकार भुट्टो की पार्टी का अल्पमत होने के बावजूद वह चुनाव के नतीजे नहीं मानते हुये पाकिस्तान में गृह युद्ध शुरू हो गया। और इस कारण शेख मुजीबुर्रहमान को 26 मार्च 1971 के दिन पाकिस्तान से अलग बंगला देश की स्वतंत्रता की घोषणा करनी पड़ी। जिस युद्ध में भारत को भी मदद करनी पड़ी। क्योंकि पाकिस्तान सेना की ज्यादतियों के कारण करोड़ों की संख्या में बंगलादेश से शरणार्थियों की भीड़ भारत में आ रही थी। जिससे भारत की आर्थिक-सामाजिक स्थिति बिगड़ने लगी थी। इसलिए मजबूर हो कर भारत की सेना को बंगाल के मोर्चे पर कार्रवाई करनी पड़ी। और जनवरी 1972 के दिन स्वतंत्र बंगला देश की प्रधानमंत्री की शपथग्रहण शेख मुजीबुर्रहमान द्वारा, श्रीमती इंदिरा गाँधीजी की उपस्थिति में ली गई है। और भारत के साथ पच्चीस साल का मैत्री के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए गए।
लेकिन 15 अगस्त 1975 के दिन शेख मुजीबुर्रहमान और उनकी पत्नी तीन बच्चों और उनकी दस साल की बिटिया शेख रसेल की सेना के एक कर्नल द्वारा प्रधानमंत्री आवास में घुसकर हत्याओं को अंजाम दिया था। और वर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनकी छोटी बहन रेहाना विदेश में पढ़ने के लिए थे, इसलिये बच गये।
उसके बाद बंगलादेश में भी पाकिस्तान जैसे सेना का दबदबा होने के कारण मार्शल लॉ लगाने वाले भी आये गये। लेकिन गत पंद्रह वर्ष से शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख हसीना वाजेद चुनाव के द्वारा सत्ता में है। तो उम्मीद करते हैं कि बंगला देश की सांप्रदायिक शक्तियों का मुकाबला करने की जी तोड कोशिश कर रही है। क्योंकि मैं खुद 2015 में एशियन सोशल फोरम के कार्यक्रम के लिए ढाका विश्वविद्यालय के प्रांगण में एक हफ्ते के लिए बंगला देश होकर आ रहा हूँ और एक दिन ढाका के धनमंडी इलाके में रह रहे हिंदूओं के साथ और बंगला देश मे रह रहे हिंदूओं के संगठन के कार्यालय, जो कि धनमंडी इलाके के ढाकेश्वरी देवी के मंदिर के अहाते में है तो मैंने उसके पदाधिकारियों के साथ दो घंटे से ज्यादा समय बातचीत की है और उनके कहने का अर्थ है कि जब-जब शेख मुजीबुर्रहमान और अब उनकी बेटी शेख हसीना वाजेद सत्ता में हैं तो हिंदू बहुत ही सुरक्षित महसूस करते हैं और उनकी वजह से पुलिस से लेकर प्रशासन में काफी महत्वपूर्ण पदों पर हिंदू हैं। कई-कई तो न्याय व्यवस्था में और बंगला देश की संसद तथा मंत्री के पदों पर हैं। अकेले ढाका शहर में पचास लाख हिंदू हैं और बंगला देश के अलग-अलग हिस्सों में कुल मिलाकर तीन करोड़ हिंदू आज भी बंगला देश में रह रहे हैं। यह तथ्य बंगला देश हिंदू संगठन के कार्यालय में बैठे अधिकारियों के हवाले से लिख रहा हूँ।
और सबसे महत्वपूर्ण बात उन्होंने मुझे हाथ जोड़कर कहीं थी कि आप भारत वापस जाने के बाद भारत के हिंदुत्ववादी विचारधारा के संगठनों को जरूर बताएं कि जब-जब आप भारत में रह रहे मुसलमानों को तकलीफ देते हो (उन्होंने बाबरी मस्जिद, भागलपुर और गुजरात दंगों के उदाहरण दिया था) तब-तब बंगला देश के मुलत्ववादी मुसलमानों द्वारा हमारे ऊपर हमले हुए हैं। तो आप भारत के मुलत्ववादी हिंदू संगठन के लोगों को हमारे तरफ से इतनी बात जरूर बताएं।
और मैंने बंगला देश की यात्रा के बाद हेडगेवार विचार मंच नागपुर ने अखबार की खबर के हवाले से मुझे फोन कर के पूछा कि आप बंगला देश होकर आये हो, तो आप हमारे मंचपर आकर अपने अनुभव बताएं और मैंने भी लगे हाथ यह मौका लिया और मेरे उस कार्यक्रम में मुख्य रूप से बंगला देश लडाई में भाग लिये सेना और वायु सेना के अधिकारी ज्यादा थे।
मैं अपनी आदत के अनुसार बंगलादेश के हिंदूओं ने जितनी रिपोर्टें और अन्य जानकारी दी हैं, ऐसे सभी पेपर्स लेकर बोला और शुरूआत में ही मैंने कहा कि बंगला देश के हिंदुओं ने मुझे विशेष रूप से आप लोगों से मिलना और हमारे तरफ से यह कहना है कि जब जब आप लोगों के कारण भारत की मुस्लिम आबादी असुरक्षित की गई, तब तब उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप हमारे उपर हमले हुए हैं, अन्यथा हम लोग यहाँ पर आजकल शेख हसीना वाजेद सत्ता में है तो हिंदू बहुत ही सुरक्षित महसूस करते हैं और उनकी यही बात आप लोगों से मिलकर बताने हेतु मैं भी आया हूँ। अब आप लोगों की प्रतिक्रिया के लिए मैं उत्सुक हूँ।
और उम्मीद करता हूँ कि बंगला देश की स्वतंत्रता की अर्धशताब्दी समारोह के आगे आने वाले पचास साल यानी शताब्दी का वर्ष आने तक बंगला देश की स्वतंत्रता अक्षुण्ण रहे और मैं खुद भारत-पाकिस्तान-बंगला देश मैत्री महासंघ का एक सचिव होने के नाते तीनों देश की आपसी सहयोग और दोस्ती और दुरूस्त करने की आवश्यकता है। सिर्फ इन देशों की सरकारों के भरोसे छोड़ कर नहीं चलेगा।
क्योंकि सभी राजनीतिक दलों के अपने-अपने देशों में चुनाव जीतने की प्राथमिकता होती है। और उसके कारण आपसी द्वेष पर भी चुनाव जीतने की मजबूरी कहिये या मक्कारी कहिये इसमें कोई भी दूध का धुला नहीं है। इसलिए तीनों देश की सामान्य जनता की पहल से ही सही प्रक्रिया चल सकती है और हम सब उसी दिशा में अपने फोरम की तरफ से कोशिश कर रहे हैं।
डॉ. सुरेश खैरनार 26, मार्च,2021,नागपुरी