कोविड-19 महामारी के कारण 24 मार्च की मध्य रात्रि से घोषित लॉकडाउन के कारण मध्यप्रदेश के पूर्णकालिक लगभग 2 लाख 2 हजार मछुआरा सदस्यों के सामने आजीविका का संकट पैदा हो गया है और रोजगार नहीं होने के कारण उनके जिन्दगी पर विपरीत असर हो रहा है। मछुआरों की इस कमजोर आर्थिक स्थिति को देखते हुए मछुआ कल्याण एवं मत्स्य विभाग मध्यप्रदेश ने 31 मार्च 2020 को मत्स्याखेट, मत्स्य परिवहन, मत्स्य विक्रय आदि वयवस्था सुचारू रखने हेतु कोविड-19 को दृष्टिगत रखते हुए नियमानुसार अनुमति दिये जाने हेतु समस्त कलेक्टर को पत्र लिखा। इस आदेश के तारतम्य में बरगी जलाशय के मछुआरों ने मंडला, सिवनी कलेक्टर और सबंधित क्षेत्र के विधायकों को पत्र लिख कर मत्स्याखेट कार्य शुरू करने हेतू आग्रह किया था। परन्तु राज्य मत्स्य महासंघ और ठेकेदार द्वारा आज तक मत्स्याखेट कार्य शुरू नहीं किया गया है। जबकि 15 जून से 15 अगस्त तक सरकारी आदेशों के कारण मत्स्याखेट कार्य बंद कर दिया जाता क्योंकि उक्त समय मछली का प्रजनन काल होता है। अर्थात विभागीय आदेश के बाद भी मछुआरा लगभग साढ़े चार महीने मत्स्याखेट कार्य से वंचित हो जाएगा।
मध्यप्रदेश राज्य मत्स्य महासंघ 2 हजार हैक्टर से बड़े 18 जलाशयों में मत्स्य पालन एवं प्रबंधन (Fisheries and management in reservoirs) का कार्य करता है, जिसका कुल क्षेत्रफल 2 लाख 8 हजार हैक्टर है, जिसका मुख्य उद्देश्य मत्स्य विकास तथा संबद्ध मछुआरों एवं उनके परिवारों की सामाजिक आर्थिक उन्नति करना है।
महासंघ की 2015 के रिपोर्ट (2015 report of Madhya Pradesh State Fisheries Federation)
बहुत सारे स्थानीय मछुआरा मत्स्याखेट तो करते हैं परन्तु प्राथमिक मछुआरा समिति में उनका नाम दर्ज नहीं होता है, जिसे स्थानीय भाषा में लोकल मछुआरा कहा जाता है जो सरकारी योजनाओं से वंचित रहता है। इस कारण कार्यशील मछुआरों की संख्या कम दिखता है।
सर्व प्रथम बरगी जलाशय में ठेकेदारी प्रथा (Contracting practice in Bargi reservoir) के खिलाफ 1992 में मछुआरों द्वारा सैकङो किश्तियों की 50 किलोमीटर रैली निकाल कर विरोध दर्ज किया था।1993 में राष्ट्रपति शासन के दौरान तत्कालीन राज्यपाल कुंवर महमूदअली खान ने आखेटीत मछली के 20 प्रतिशत हिस्से पर मछुआरा का मालिकाना हक घोषित किया था।साथ ही मछुआरों की प्राथमिक समिति गठित करने का आदेश सहकारिता विभाग को दिया था। जिसके कारण बरगी जलाशय में 54 प्राथमिक समितियों का गठन हो पाया।
1994 मे दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में गठित सरकार ने बरगी बांध से विस्थापित होने वाले समुदाय के प्रति न्यायपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया और बरगी जलाशय में मत्स्याखेट एवं विपणन का अधिकार 54 प्राथमिक सहकारी समितियों के फेडरेशन को 5 सितंबर 1994 को सोंप दिया।
पूर्व प्रशासनिक अधिकारी एवं भारत जनआंदोलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वर्गीय ब्रहम देव शर्मा ने इसे मजदूर से मालिक बनने की यात्रा कहा था। अनुभव की कमी, विभागीय अड़ंगे और विधान सभा के हर सत्र में फेडरेशन को लेकर लगातार पूछे गए सवाल का जबाब देते हुए 1994 से 2000 तक इन 6 सालों में औसत 450 टन का उत्पादन प्रति वर्ष, 319.94 लाख मछुआरों को पारिश्रमिक भुगतान, 1 करोड़ 37 लाख राज्य सरकार को रायल्टी, मछुआरों बिना ब्याज के नाव जाल हेतु ऋण, लगभग 100 विस्थापितो को इस कारोबार में रोजगार आदि दिया गया था।
बरगी मॉडल के आधार पर तवा जलाशय में मत्स्याखेट एवं विपणन का अधिकार (Fishing and marketing rights in Tawa reservoir) स्थानिय प्राथमिक मछुआरा सहकारी समिति के फेडरेशन को दिया गया था। शुरू से इस निर्णय का विरोध करने वाले ठेकेदार, नेता और नौकरशाह ने साज़िश कर इस अभिनव प्रयोग को खत्म कर फिर ठेकेदारी प्रथा कायम कर दिया।
नेता और नौकरशाह का ठेकेदारों के साथ रिश्ते जग-जाहिर हैं। ठेकेदारी प्रथा में औसत उत्पादन 175 - 200 टन के बीच रह गया है परन्तु इस गिरते उत्पादन को लेकर विधान सभा में कोई सवाल नहीं उठाता है। बरगी फेडरेशन पर मुख्य आरोप यही था कि राज्य की निर्धारित उत्पादन क्षमता से बहुत ही कम उत्पादन है।
उल्लेखनीय है कि 2007 में मुख्य सचिव मध्यप्रदेश शासन की अध्यक्षता में हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया कि मत्स्याखेट एवम विपणन कार्य मछुआरों की प्राथमिक समितियां करेगी और इन समितियों का जलाशय स्तर पर यूनियन का गठन किया जाएगा।
मत्स्याखेट में संलग्न मछुआरों को पारिश्रमिक (Remuneration to fishermen engaged in fishing) के अतिरिक्त मत्स्य विपणन (Fish marketing) से प्राप्त लाभ का लाभांश भी दिया जाएगा।इन निर्णयों बाद भी सभी जलाशयों में ठेकेदारी प्रथा जारी है।
राज्य महासंघ और बरगी ठेकेदार के बीच 2018 में हुए अनुबंध के अनुसार कतला चार किलो से बड़ा पकड़ने पर पारिश्रमिक 28 रूपये प्रति किलो की दर से भुगतान निर्धारित किया गया है, जबकि राजस्थान सरकार द्वारा जारी 2019 के आदेशानुसार मेजर कार्प कतला 5 किलो का दर 148 रूपये प्रति किलो निर्धारित किया गया है। इसी तरह अन्य प्रजाति की मछली पकड़ने की पारिश्रमिक दर (Fishing remuneration rate) 28 रूपये प्रति किलो से भी कम है। कम दर देकर राज्य मत्स्य महासंघ मछुआरों की आर्थिक हालात और कमजोर कर रही है।
महासंघ द्वारा प्रदेश में जलाशय विकास, मछुआरा विकास और सहकारिता विकास (Reservoir Development, Fisheries Development and Cooperative Development) को मजबूत करना अपेक्षित था परन्तु महासंघ ने ठेकेदारी प्रथा को ही बढ़ावा दिया है। इन नीतियों के कारण प्राथमिक सहकारी समिति और जलाशय स्तर का फेडरेशन निष्क्रिय हो गया है। मत्स्य बीज़ संचय में पूर्ण पारदर्शिता नहीं होने से उत्पादन लगातार घट रहा है, जिससे रोजगार के लिए मछुआरों का भारी संख्या में पलायन हो रहा है।
मछुआरों के लिए बनाई गई कल्याणकारी योजनाओं (Welfare schemes for fishermen) का लाभ भी सही ढंग से और सभी को नहीं मिल पाना एक बड़ा कारण है। ठेकेदार लाभ प्राप्त करने के लिए जलाशय का अधिक से अधिक दोहन करता है और मछुआरों को छोटी साइज की प्रतिबंधित मछली पकड़ने के लिए प्रेरित करता है। ठेकेदार के सुरक्षा गार्ड द्वारा मछुआरों के साथ मारपीट करना आम बात है और राज्य मत्स्य महासंघ मछुआरों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ मौन रहता है। शोषित होने का मुख्य कारण मछुआरों का असंगठित है।
राज कुमार सिन्हा
बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ