नई दिल्ली: 8 नवंबर 2016 की वह भयावह शाम। रात के आठ बजे थे और टीवी चैनलों पर भारत के प्रधानमंत्री देश को संबोधित कर नोटबंदी की घोषणा रहे थे। नोटबंदी की घोषणा करते वक्त प्रधानमंत्री ने जो वादे किए थे वे अब गलत साबित होते नज़र आ रहे हैं। और तो और सरकार की संस्थाओं ने ही अब नोटबंदी को न केवल गलत ठहराया है बल्कि नोटबंदी को भारतीय अर्थव्यवस्था का ऐसा खलनायक घोषितकिया है, जिसके दुष्परिणाम लंबे समय तक भारत का अवाम, मजदूर-किसान, व्यापारी, सब भुगतेंगे।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में यह बताया गया कि नोटबंदी के दौरान कुल 99% प्रतिबंधित किए गए नोट बैंकों में वापिस जमा हो गए। इसका अर्थ हुआ कि सिर्फ 1.4% हिस्से को छोड़कर बाकी सभी 1000 रुपए के नोट सिस्टम में लौट चुके हैं। यानी कि, सिर्फ 8.9 करोड़ नोट ही ऐसे रहे जो सिस्टम में नहीं लौटे।
अब विपक्ष सवाल कर रहा है कि नोटबंदी से होने वाले फायदों को लेकर जो दावे किए जा रहे थे, उनके विफल होने पर जिम्मेदारी कौन लेगा ?
आरबीआई की रिपोर्ट से जो सच सामने आया है, वह प्रधानमंत्री द्वारा नोटबंदीकी घोषणा करते वक्तच किए गए दावों पर सीधे सवाल खड़ा करता है।
वादा नं. 1- काला धन पर लगाम कस जाएगी..
8 नवंबर को जब प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया तो इसे सबसे अधिक कालेधन पर लगाम कसने वाले कदम के
इसके बाद 15 अगस्त, 2017 को लाल किले की प्राचीर से दिए अपने भाषण में मोदी ने शोध का हवाला देते हुए कहा था कि 3 लाख करोड़ रुपया, जो कभी बैंकिंग सिस्टम में नहीं आता था, वह आया है। इन दावों पर उठ रहे सवालों पर विपक्ष ने सवाल उठाए तो सरकार ने नोटबंदी के आंकड़ों पर विपक्ष के बयान को नासमझी में की जा रही टिप्पणी बताया। सरकार का कहना है कि ये पूरी प्रक्रिया बहुत कामयाब रही है। इससे बाजार में पैसा आया है, लोगों को आसान दरों पर कर्ज मिला है। सरकार ने कहा है कि नोटबंदी कामयाब रही। वापस आए नोटों के आधार पर कामयाबी या नाकामी की बात नासमझी है।
केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने विपक्ष की ओर से नोटबंदी को फेल करार दिए जाने पर जवाब देते हुए कहा कि नोटबंदी का असर अंदाजे के मुताबिक ही रहा है और इससे आने वाले समय में अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचेगा। लेकिन यह आने वाला समय कौन सा है, जेटलीयह नहीं बता पाए।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने नोटबंदी के फैसले को लेकर केंद्र सरकार और RBI पर निशाना साधते हुए कहा कि सिर्फ एक फीसदी प्रतिबंधित नोट वापस नहीं आ सके और आरबीआई के लिए ये शर्म की बात है।
पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने सवालिया लहजे में कहा कि क्या नरेंद्र मोदी सरकार ने नोटबंदी का ये फैसला काले धन को सफेद करने के लिए लिया था। श्री चिंदबरम ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा-
रिजर्व बैंक ने 16,000 करोड़ जुटाए लेकिन नए नोटों की छपाई पर 21,000 करोड़ रुपए खर्च कर दिए, इन अर्थशास्त्रियों को नोबल पुरस्कार मिलना चाहिए।
RBI 'gained' Rs 16000 crore, but 'lost' Rs 21000 crore in printing new notes! The economists deserve Nobel Prize.
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) August 30, 2017
चिदंबरम ने ट्वीट किया,
'बंद किए गए 15,44,000 करोड़ रुपए के नोटों में से रिजर्व बैंक के पास 16,000 करोड़ रुपए नहीं लौटे। ये महज 1 फीसदी है। रिजर्व बैंक पर लानत है जिसने नोटबंदी का 'सुझाव ' दिया।'
Rs 16000 cr out of demonetised notes of Rs 1544,000 cr did not come back to RBI. That is 1%. Shame on RBI which 'recommended' demonetisation
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) August 30, 2017
बसपा नेता व पूर्व सांसद सुधींद्र भदौरिया ने कहा
करारा झटका तो जनता को लगा है,जो दवाई,भोजन,रोज़गार के अभाव में जी रही है।
Rs 16000 cr out of demonetised notes of Rs 1544,000 cr did not come back to RBI. That is 1%. Shame on RBI which 'recommended' demonetisation
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) August 30, 2017
वहीं कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा है कि नोटबंदी की हठधर्मिता सामने आ गई है। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी का झूठ लोगों के सामने आ गया है।
श्री सुरजेवाला ने कहा नोटबंदी की देशबंदी के लिए मोदीजी ज़िम्मेवार। देश से माफ़ी माँगें।
नोटबंदी की देशबंदी के लिए मोदीजी ज़िम्मेवार। देश से माफ़ी माँगें। मेरा वक्तव्य-: pic.twitter.com/dx5kfZtPjf
— Randeep S Surjewala (@rssurjewala) August 30, 2017
वादा नं. 2- आतंकवाद और नक्सलवाद, दोनों, पर गाज गिरेगी...
प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी को लेकर जब इसके फायदे गिनाए थे तब यह भी कहा था कि इससे आतंकवाद और नक्सलवाद की कमर टूट जाएगी। उनका कहना था कि इन दोनों को असल में नकली नोटों और काले धन से मदद मिलती है।
अब भारतीय रिजर्व बैंक ने बताया है कि वित्त वर्ष 2016-17 में कुल 7,62,072 जाली नोट पकड़े गए, जो वित्त वर्ष 2015-16 में पकड़े गए 6.32 जाली नोटों की तुलना में 20.4 प्रतिशत अधिक हैं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पिछले वित्त वर्ष में नोटबंदी के बाद 500 रुपये और 1000 रुपये के जाली नोट तुलनात्मक रूप से अधिक संख्या में पकड़े गए।
अब नोटबंदी के बाद पकड़े गए नकली नोटों की संख्या पिछले साल से कुछ ही ज़्यादा है, इसलिए यह दावे केसाथ नहीं कहा जा सकता कि नोटबंदी का असर आतंकवाद और नक्सलवाद पर पड़ा है। नोटबंदी के बाद कई बड़े आतंकी हमले हुए हैं, जोयह साबित करने के लिए काफी हैं कि नोटबंदीका आतंकवाद पर कोई असर नहीं पड़ा। हालांकि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि कश्मीर में 'पत्थरबाज़ बेअसर हुए हैं।' लेकिन इस तर्क के समर्थन में जेटली ने कोई सुबूत पेश नहीं किया है।
वादा नं. 3- जाली नोट समाप्त होंगे
नोटबंदी के फ़ायदे गिनाते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि इससे जाली नोटों को ख़त्म करने में सहायता मिलेगी। आरबीआई को इस वित्तीय वर्ष में 762,072 फर्ज़ी नोट मिले, जिनकी क़ीमत 43 करोड़ रुपये थी। इसके पिछले साल 632,926 नकली नोट पाए गए थे। यह अंतर बहुत ज़्यादा नहीं है।
वादा नं. 4- भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी..
भ्रष्टाचार पर लगाम भी नोटबंदी की प्रमुख कवायद के तौर पर पेश किया गया था, लेकिन अभी तक तो ऐसा होता नहीं दिखा।
नोटबंदी का ऐलान करते वक्त इसे भ्रष्टाचार, काले धन और जाली नोटों के खिलाफ जंग बताया था। आरबीआई की रिपोर्ट के बाद सरकार के इस दावे पर सवाल उठ रहे हैं। नोटबंदी से पहले 15.44 लाख करोड़ की कीमत के 1000 और 500 के नोट प्रचलन में थे। इनमें से कुल 15.28 लाख करोड़ रुपए की कीमत के नोट बैंकों में वापस आ गए।
वादा नं. 5- कारोबारियों, किसानों और मजदूरों को फायदे होंगे...
विपक्ष ही नहीं, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े भारतीय मज़दूर संघ और भारतीय किसान संघ ने भी नोटबंदी पर सवाल उठाए हैं।
वामपंथी विचारक अरुण माहेश्वरी कहते हैं –
“एक क्षण में इस चमत्कारी जादूगर ने नोटबंदी को नोटबदली में बदल दिया, लेकिन पूरे तीन महीने से भी ज़्यादा समय तक देश भर में शोर मचाता रहा - देखो, मसल डाला है मैंने काला धन वालों को, जाली नोटों की हवा निकाल दी है और आतंकवादियों को तो भूखों मार डाला है।
लेकिन जब प्रधानमंत्री आँखें मटका-मटका कर 'नोटबंदी' की अपनी इस महान योजना की घोषणा कर रहे थे, तभी हम सरीखे सनकी लोगों को यह समझते देर नहीं लगी थी कि यह है संघी पाठशालाओं में तैयार होने वाले ओछे दिमाग़ों की एक ख़ास उपज।“
प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी कहते हैं –
“अब कारपोरेट घरानों के संगठनों की भी आवाज मोदी सरकार के खिलाफ निकलनी शुरु हो गयी। पीएम मोदी जिस डाल पर बैठे हैं उसी को काट रहे हैं।”
प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी कहते हैं –
“655 कंपनियां दिवालिया होने की राह पर! गजब की सरकार है धड़ाधड़ कंपनियां दिवालिया हो रही हैं और देश विकास कर रहा है!!”
वे कहते हैं
“पीएम मोदी का विकासविरोधी चेहरा बेनकाब होता जा रहा है, विकास को ही निगलना शुरू कर दिया है उनकी नीतियों ने।“
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