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Five years of brutal demonetisation

नोटबंदी पर देशबन्धु में संपादकीय आज | Editorial in Deshbandhu today

आज से ठीक पांच साल पहले 8 नवंबर 2016 को नरेन्द्र मोदी ने भारत की अर्थव्यवस्था से जुड़ा एक ऐतिहासिक लेकिन क्रूर फैसला (A historic but cruel decision related to India's economy) लिया था। पांच सौ और हजार रुपए के नोट एक झटके में अमान्य करने का तुगलकी फरमान प्रधानमंत्री मोदी ने देश को सुनाया था, और इसके लिए एक विस्तारित भूमिका बांधते हुए लगभग 34 मिनट का भाषण दिया था। उस भाषण की बातें ऊपरी तौर पर मखमली लग रही थी, लेकिन भीतर आम आदमी को चोट पहुंचाने वाला कोड़ा छिपा था।

अपने भाषण की शुरुआत में नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि दिवाली के पावन पर्व की समाप्ति नई आशाएं और नई खुशियों के साथ हुई होंगी।

फिर उन्होंने कहा कि जब आपने 2014 मई में हमें जिम्मेदारी सौंपी थी, तब विश्व की अर्थव्यवस्था में ब्रिक्स के सन्दर्भ में यह आम चर्चा थी कि ब्रिक्स में जो 'आई' अक्षर है, वह लुढ़क रहा है, यानी इंडिया की अर्थव्यवस्था लुढ़क रही है, लेकिन मोदीजी ने दावा किया कि उनकी सरकार ने उसे ढाई सालों में संभाल लिया। उन्होंने फिर विकास का हवाला देते हुए कहा कि विकास की इस दौड़ में हमारा मूल मंत्र रहा है 'सबका साथ, सबका विकास'।

यह सरकार गरीबों को समर्पित है और समर्पित रहेगी। इसके बाद उन्होंने उज्ज्वला योजना, जन-धन योजना, कृषि बीमा जैसी कई योजनाओं का बखान करते हुए कहा कि ये सरकार गांव, गरीब और किसान को समर्पित है।

फिर प्रधानमंत्री ने देश को भ्रष्टाचार से होने वाले नुकसान गिनाए और ये बताया कि कुछ लोग ही हैं जो भ्रष्टाचारी हैं, देश का आम नागरिक

तो ईमानदार ही है।

फिर मोदीजी ने कहा कि इस देश ने यह वर्षों से महसूस किया है कि भ्रष्टाचार, काला धन, जाली नोट और आतंकवाद - ऐसे नासूर हैं जो देश को विकास की दौड़ में पीछे धकेलती हैं।

देश में कैश का अत्यधिक सर्कुलेशन का एक सीधा सम्बन्ध भ्रष्टाचार से है। भ्रष्टाचार से अर्जित कैश का कारोबार (business of cash earned from corruption) महंगाई पर बड़ा असर पैदा करता है. इसकी मार गरीब को झेलनी पड़ती है। इस तरह आतंकवाद, काला धन, और भ्रष्टाचार के भयंकर असर को बताते हुए मोदीजी ने घोषणा की कि देश को भ्रष्टाचार और काले धन रूपी दीमक से मुक्त कराने के लिए एक और सख्त कदम उठाना जरूरी हो गया है। आज मध्य रात्रि यानि 8 नवम्बर 2016 की रात्रि 12 बजे से वर्तमान में जारी 500 रुपये और 1,000 रुपये के करेंसी नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे।

फिर उन्होंने बताया कि लोगों को इस वजह से कम से कम तकलीफ हो, इसके लिए कौन-कौन से कदम उठाए गए हैं।

और आखिर में नरेन्द्र मोदी ने भारत की जनता को राष्ट्रवाद की तगड़ी खुराक देते हुए कहा कि हर सामान्य नागरिक भ्रष्टाचार, काला धन, जाली नोट के खिलाफ इस महायज्ञ में, इस लड़ाई में अपना योगदान दे सकता है।

उन्होंने तब ये भी कहा था कि पूरे विश्व को भारत की इस ईमानदारी का उत्सव दिखाएं।

इस भाषण को लोगों ने सांस रोककर सुना और उसके बाद तो पैरों तले जमीन ही खिसक गई। पांच साल पहले बैंकों और एटीएम के बाहर दिन-रात कैसी लंबी-लंबी कतारें लगती थीं, वो दृश्य आज भी डराता है। मगर उत्सव प्रेमी मोदीजी ईमानदारी का उत्सव मनाने का आह्वान भारतीयों से कर रहे थे।

Honesty is not something to celebrate, nor to show off. that's a life worth

भारतीय परंपरा और संस्कृति की बात करने वाले नरेन्द्र मोदी क्या ये नहीं जानते कि ईमानदारी न उत्सव मनाने की चीज है, न दिखावे की। वह एक जीवन मूल्य है, जो हरेक को अपने जीवन में धारण करना चाहिए। और जिसे धारण किया जाए, वो धर्म होता है। इस नाते ईमानदारी धर्म है। मगर आज उस धर्म का जनाजा देश में निकल चुका है और लोग अब तक छाती पीट कर रो रहे हैं।

सरकार अब भी डींगे हांकने में लगी है। नोटबंदी का ऐलान करते हुए भारत की अर्थव्यवस्था से लेकर, गरीबों के कल्याण, किसानों का उत्थान और महंगाई को लेकर जितनी बातें प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में की थीं, सब हवा हवाई साबित हुईं। देश से न भ्रष्टाचार खत्म हुआ, न आतंकवाद और जिस कैशलेस इकॉनॉमी का ढोल बार-बार पीटा गया था, उसकी हकीकत भी सामने आ गई है।

नोटबंदी से देश और देश के लोग दोनों गरीब हो गए

नोटबंदी में लोगों की जेब से तो नकदी निकाल ली, लेकिन उन अमीरों की तिजोरी में रखे काले धन को सरकार नहीं निकाल पाई, जिनके कारण देश में आर्थिक गैरबराबरी बढ़ी है। बल्कि मोदी सरकार के फैसलों के कारण देश और देश के लोग दोनों गरीब हो गए। कोरोना काल में मध्यमवर्ग की संख्या घटी है और गरीबों की संख्या बढ़ी है। जबकि चंद उद्योगपतियों की दौलत में इजाफा हुआ है। इन्हीं उद्योगपतियों के हाथों में देश की सार्वजनिक संपत्ति तेजी से दी जा रही है। रहा सवाल नोटबंदी के बाद नकदी कम होने का, तो पांच साल में उसका उल्टा असर ही दिखाई दे रहा है।

अर्थव्यवस्था में नकदी की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. आंकड़े बताते हैं कि पिछले महीने आठ अक्टूबर को समाप्त हुए पखवाड़े पर नकदी 28.30 लाख करोड़ रुपये के रिकॉर्ड स्तर पर रही, जो कि नोटबंदी से पहले चार नवंबर 2016 की तुलना में 57.48 फीसदी अधिक है। उस समय जनता के हाथों में 17.97 लाख करोड़ रुपये की नकद राशि उपलब्ध थी, जो कि अब 10.33 लाख करोड़ रुपये बढ़ गई है। वहीं यदि नोटबंदी के बाद की स्थिति से तुलना करते हैं तो नकद राशि में 211 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। 25 नवंबर 2016 को 9.11 लाख रुपये की नकदी बाजार में उपलब्ध थी।

आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, 23 अक्टूबर, 2020 को ख़त्म हुए पखवाड़े में जनता के हाथ में दिवाली से पहले 15,582 करोड़ रुपये की और नकदी आई थी। यह हर साल 8.5 फ़ीसदी की या फिर 2.21 लाख करोड़ रुपये की रफ़्तार से बढ़ी है।

Lakhs of jobs were lost in the country due to demonetisation.

नोटबंदी की वजह से देश में लाखों रोजगार चले गए थे। आतंकवाद की कमर टूटने का जो दावा था, वह गलत साबित हुआ था, काला धन भी वापस नहीं आया और अब 'कैशलेस इकॉनमी' (cashless economy) पर भी मोदी सरकार गलत साबित हुई है। वैसे ये कहना ज्यादा सही होगा कि मोदी सरकार के दावों पर भरोसा करके जनता गलत साबित हुई है। ये गलती कब और कैसे सुधरती है, ये देखना होगा।

आज का देशबन्धु का संपादकीय (Today’s Deshbandhu editorial) का संपादित रूप साभार.