मुझे एक कहानी याद आती है जो हम बचपन में सुना करते थे। तीन मित्र समुद्र के किनारे बने एक होटल के पूल के किनारे बैठे मौसम का आनंद ले रहे थे। थोड़ी ही दूर समुद्र का किनारा भी नजर आ रहा था। कुछ लोग पूल में तैरने का आनंद ले रहे थे तो कुछ लोग समुद्र में डुबकियां लगा रहे थे। यह नजारा देखकर तीनों के मन में एक ही बात आ रही थी कि उन्हें भी तैरने का आनंद लेना चाहिए। समस्या यह थी कि तीनों ही मित्रों को तैरना नहीं आता था।
पहले मित्र ने सोचा, होता क्या है तैरने में, थोड़े से हाथ-पांव ही तो मारने हैं, तैरना आ जाएगा और उन्होंने आव देखा न ताव, झट से पूल के उस हिस्से में छलांग लगा दी जिधर पानी गहरा था। थोड़ी ही देर में जब वे डूबने-उतराने लगे तो वे सहायता के लिए पुकारने लगे। पूल में पहले तैर रहे लोगों ने उनको पकड़ा और किनारे पर ले आये। अब ये साहब अपनी बेवकूफी पर पछताने लगे और उन्होंने कसम खा ली कि जीवन में अब कभी दोबारा वे तैरने का दुस्साहस नहीं करेंगे। दूसरे मित्र ने उनका यह हाल देखकर पहले ही सोच लिया कि तैरना उनके बस का नहीं है और उन्होंने जीवन में कभी दोबारा पानी में उतरने की बात सोची भी नहीं। लेकिन तीसरे मित्र ने थोड़ी समझदारी दिखाई। उन्होंने स्विमिंग पूल के उस हिस्से में कोशिश शुरू की जहां पानी उथला था। धीरे-धीरे उनका आत्मविश्वास बढ़ा तो वे पूल के उस हिस्से में गए जहां पानी गहरा था, पर तब भी वे किनारे-किनारे तैरते रहे जहां सहारे के लिए पाइप लगे हुए थे। आत्मविश्वास कुछ और बढ़ा तो वे गहरे पानी में तैरने
सफलता और असफलता में क्या फर्क है?
सफलता और असफलता में इतना ही फर्क है। पहले मित्र ने काम के लिए आवश्यक कौशल के बिना ही जल्दबाजी में काम आरंभ कर दिया, असफल हुए और फिर सोच लिया कि यह काम जीवन में कभी दोबारा नहीं करना जबकि दूसरे मि़त्र ने कुछ भी प्रयास किये बिना ही हार मान ली। काम के लिए आवश्यक काबलियत के बिना जल्दबाजी में काम करना तथा प्रयास किये बिना ही हार मान लेना, दोनों ही असफलता का कारण बनते हैं, जबकि धैर्यपूर्वक काम सीखकर काम करना सफलता की गारंटी है। मैं अपनी वर्कशाप में जब लोगों को सफलता के गुर सिखाता हूं तो उन्हें एक फार्मूला देता हूं जिसे हम पी-4 फार्मूला कहते हैं। सफलता के इस फार्मूले का पहला पी है पैशन फार एक्सेलेंस, यानी, उत्कृष्टता की भावना, सफलता का दूसरा पी है प्राब्लम वर्सेज एडवेंचर, यानी, समस्या बनाम साहस भरा काम, तीसरा पी है पेशेंस एंड कंपैशन, यानी धैर्य और दयालुता या संवेदनशीलता, और चौथा पी है प्रिंसिपल आफ प्रोडक्टिविटी, यानी, उत्पादकता का सिद्धांत।
सही सवाल है, पैसा ही नहीं आया तो सफलता बेमानी है। यही एक ट्रैप है, एक जाल है जिसमें हम अक्सर उलझ जाते हैं और फिर वहीं अटके रह जाते हैं, जबकि यदि काम इस भावना से किया जाए कि हमारा काम सर्वोत्कृष्ट हो तो जो हम चाहते हैं वह अपने आप होता चलता है। जब हम खुद को ज्यादा काबिल बनाने के रास्ते पर चलते हैं तो हम बेहतर काम कर पाते हैं। परिणाम यह होता है कि देर-सवेर हमारे उच्चाधिकारी या हमारे ग्राहक हमारे काम को नोटिस करते हैं और हमारी साख बन जाती है, लेकिन यदि हम पहले पैसा कमाने या प्रमोशन पाने की कोशिश में जुट जाएं और हममें अपेक्षित योग्यता न हो तो हमें निराशा ही हाथ लगेगी।
सफलता का दूसरा नियम समस्या बनाम साहसिक कार्य का अर्थ बड़ा साधारण है लेकिन गहरा है। शुरू होने से पहले हर नया काम कठिन है, उसमें जोखिम है, असफलता का डर है, लेकिन वही काम जब संपन्न हो जाए तो या तो आसान है या फिर साहस भरा काम। एवरेस्ट विजय से पहले सर एडमंड हिलैरी और थापा तेनज़िंग के लिए एवरेस्ट भी एक चुनौती था, उसके लिए उन्हें अपने आप को तैयार करना आवश्यक था ताकि रास्ते के तूफानों का मुकाबला कर सकें, अपने शरीर को शून्य से नीचे का तापमान सहने के लिए तैयार कर सकें, सामान पीठ पर लाद कर सीधी ऊंची चढ़ाई चढ़ सकें, और दिन भर की यात्रा के बाद भी इतनी शक्ति बचाकर रखें कि पहाड़ की टेढ़ी-मेढ़ी ऊंचाइयों पर अपना तंबू गाड़ सकें और फिर अगले दिन फिर से अपनी यात्रा शुरू कर सकें। काम में असफल होना एक बात है और हार मान लेना एकदम अलग बात है। वैज्ञानिक आविष्कार पहली ही बार सफल नहीं हो जाते, जीवन के ज्यादातर काम भी लगातार प्रयास करने और प्रयास करते रहने पर ही संभव हो पाते हैं।
Patience and sensitivity means
सफलता के तीसरे नियम धैर्य और संवेदनशीलता का मतलब है कि टीम के बाकी लोग हमें पसंद करें, हमारे साथ मिलकर काम करना चाहें। इसके लिए आवश्यक है कि हम लोगों की बात ध्यान से सुनें, उनके सुझावों का आदर करें, जहां आवश्यक हो, टीम को श्रेय दें। इसी तरह हम उनके काम आयें, उनकी समस्याएं समझने की कोशिश करें, उन्हें सुलझाने में उनका साथ दें। ये छोटे-छोटे गुण हमें लोकप्रिय बना देते हैं और लोग हमारे साथ काम करना और जुड़े रहना पसंद करते हैं।
सफलता का चौथा महत्वपूर्ण सिद्धांत है उत्पादकता का नियम। इसके लिए दो मूलभूत आवश्यकताएं हैं। पहली तो यह कि हममें काम सही ढंग से पूरा करने के लिए आवश्यक योग्यता हो, यह योग्यता तकनीकी भी हो सकती है, इसे सीखना आपका काम है, लेकिन उत्पादकता से जुड़ा दूसरा पहलू है अनुशासन। दिन भर का काम शुरू करने से पहले सभी पेंडिंग कामों का सूची बनाकर उनमें से आवश्यक और महत्वपूर्ण काम छांट लेना, बिना समय बर्बाद किये उन्हें बारी-बारी से करते चलना, समाप्त हो चुके काम को सूची से काटते चलना, समय के सदुपयोग की कुंजी है। नियम यह है कि इस बीच आप सोशल मीडिया पर समय न बिताएं, हर तीन घंटे बाद 5 मिनट का ब्रेक लें और फिर काम शुरू कर दें। इन चार नियमों के पालन से सैकड़ों लोगों ने सफलता पाई है, हम सब भी इनका लाभ लेकर आसानी से सफलता की सीढ़ियां चढ़ सकते हैं।
पी. के. खुराना
लेखक एक हैपीनेस गुरू और मोटिवेशनल स्पीकर हैं।