नई दिल्ली (विनोद कोष्टी) 07 सितंबर 2022। बीती 22 अगस्त 2022 की शाम दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में पुस्तक विमोचन और उस पर चर्चा का एक कार्यक्रम हुआ। पुस्तक का शीर्षक "फ्रॉम दि रेल्म ऑफ दि नेसेसिटी टु दि रेल्स ऑफ फ्रीडम" (ज़रूरत के दायरे से मुक्ति आकाश तक) है और इसे जया मेहता और विनीत तिवारी ने संयुक्त रूप से लिखा है।
जया मेहता जोशी-अधिकारी इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के अकादमिक एवं शोध प्रभाग की प्रमुख हैं और विनीत तिवारी कवि एवं सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ ही इस इंस्टिट्यूट के समन्वयक भी हैं।
यह किताब इंस्टिट्यूट द्वारा केरल में कुडम्बश्री मिशन के अंतर्गत महिलाओं द्वारा की जा रही साझा खेती के राज्यव्यापी प्रयोग पर किए गए सुदीर्घ अध्ययन का परिणाम है।
केरल के कुडम्बश्री कार्यक्रम के पहले कार्यकारी निदेशक टी के जोश किताब के विमोचन के उपरान्त हुई चर्चा में पहले वक्ता थे। उन्होंने विस्तार से कुडम्बश्री कार्यक्रम की शुरुआत, उसके संगठन और गरीबी निवारण के निर्धारित उद्देश्य से महिला सशक्तिकरण तक उसके दायरे के विस्तार का ब्यौरा दिया।
उन्होंने कहा कि कुडम्बश्री मिशन को लोगों के लिए आसान और दक्ष बनाने के लिए अनेक शासकीय विभागों
उन्होंने कहा कि पिछले करीब दो दशकों के समय में सामूहिक खेती के इस कार्यक्रम में केरल की दो लाख से अधिक ग्रामीण महिलाओं ने छोटे-छोटे समूह बनाकर छोटी-छोटी जोतों पर खेती की है जो पूरे राज्य में अब कुल 47000 हेक्टेयर से ज़्यादा हो चुकी है। इसमें काफी सारी जमीन परती की और बंजर जमीन है जिसे महिलाओं ने सामूहिक रूप से मेहनत करके खेती योग्य बनाया।
उन्होंने कहा कि इस किताब का उपयोग देश के अन्य हिस्सों में प्रयोग करने के लिए किया जाना चाहिए।
भारतीय महिला फेडरेशन की राष्ट्रीय अध्यक्ष और मजदूर किसान शक्ति संगठन की संस्थापिका अरुणा रॉय ने इस किताब को एक बेहतरीन सन्दर्भ ग्रन्थ, पठनीय रोचक पुस्तक, जीवन्त उदाहरणों से भरी और जानकारियों से भरपूर पुस्तक बताया।
अरुणा रॉय ने कहा कि इस पुस्तक का उपयोग बहुत सारे लोग कर सकते हैं अगर चाहें तो। इसका इस्तेमाल शासन में बैठे लोग अन्य राज्यों में इस प्रकार के कार्यक्रम शुरू करने में कर सकते हैं। इसका उपयोग ग्रामीण सामाजिक कार्यकर्ता भी ऐसे लोगों को संगठित करने के लिए कर सकते हैं जो गरीब, भूमिहीन या छोटी जोतों के किसान हैं। भारत में अधिकांश जगहों पर स्वसहायता समूहों का कार्यक्रम नाकाम साबित हुआ है। उसकी कमियों को दूर करने के लिए भी इस पुस्तक की सहायता ली जा सकती है।
उन्होंने कहा कि कुडम्बश्री का आख्यान यह बताता है कि कैसे वही सहकारिता आंदोलन जो शेष भारत में नाकाम हुआ, केरल में कैसे कामयाबी से बढ़ा है। यह इसलिए वहाँ सम्भव हुआ क्योंकि वहाँ लोकतंत्र और प्रशासन जनभागीदारी के साथ चलाया गया और जो संरचनात्मक सुधार किए गए, वो जनता के नजरिए से किये गए। कुडम्बश्री इस बात का भी उदाहरण है कि कैसे प्रशासन ने लकीर का फकीर न बनते हुए जनता के हित में कानूनों को अवरोध बनने से रोकते हुए व्यावहारिक तौर पर इस्तेमाल किया। ये किताब केवल किसी वैकल्पिक, आर्थिक गतिविधि का ब्यौरा नहीं है, बल्कि ऐसी तमाम औरतों की कहानियां हैं जो स्वाभिमान, करुणा और दयालुता से भरीं हुई हैं। इस नजरिए से भी इस किताब को पढ़ना बहुत दिलचस्प है कि धर्म, जाति और लिंग के भेद जहाँ आपस में सम्बन्ध कायम होने से रोकते हैं, वहीं कुडम्बश्री ने इन्हें आपस में जोड़ने के मजबूत सूत्र में बदल दिया।
अरूणा रॉय ने किताब के दो अनुच्छेदों का पाठ भी किया।
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के महासचिव और राज्यसभा के पूर्व सांसद कॉमरेड डी राजा ने कहा कि यह पुस्तक सभी राजनीतिक दलों के लोगों को पढ़नी चाहिए ताकि वे अपने-अपने प्रभाव क्षेत्रों में बदलाव लाने के लिए इस किताब में दर्ज उदाहरणों और प्रयोगों से मदद ले सकें। उन्होंने जोशी-अधिकारी इंस्टिट्यूट के इस श्रमसाध्य प्रयास की प्रशंसा की और ऐसे अन्य विश्वसनीय व समाजोपयोगी शोधों को सामने लाने की अपेक्षा जताई।
कॉमरेड राजा ने कहा कि सीपीआई खेती के संकट को लेकर बहुत चिंतित है और इसको लेकर सड़कों पर संघर्षों से लेकर यह मुद्दा हमारी पार्टी ने राजनीतिक प्रस्तावों में भी महत्त्व के साथ उठाया है।
सहकारिता का आंदोलन कामयाबी होने का नुस्खा बताती किताब
एक्शन एड एसोशिएशन (इंडिया) के सहनिदेशक तनवीर काज़ी ने कहा कि इस किताब की विशेषता जटिल प्रक्रियाओं को सरलता से बताया जाना है। अनेक केस स्टडीज के माध्यम से यह किताब बताती है कि अगर हाशिये के लोग भी एकजुट हो जाएँ तो सहकारिता का आंदोलन कामयाब हो सकता है। यह किताब गहराई से समाज के सबसे अंतिम पायदान पर मौजूद लोगों की एकजुटता की ताक़त बयान करती है। इससे नीति निर्माण करने वाले लोग सबक ले सकते हैं।
उन्होंने कहा कि इस किताब को एक देशव्यापी सहकारिता आंदोलन के मॉड्यूल के रूप में भी बदला जा सकता है। इसके लिए शुरुआत में ऐसे समुदायों और समूहों की पहचान कर उन्हें चिह्नित करना होगा जो साथ में आने और विकल्पों को आजमाने के लिए तैयार हों।
किताब की लेखिका जया मेहता ने कहा कि इस किताब का दायरा भारतीय खेती के संकट से पीड़ित लोगों को अलग-अलग समाधान सुझाने और महिला सशक्तिकरण करने से कहीं आगे जाता है। यह किताब कुडम्बश्री के उदाहरण और अध्ययन के मार्फ़त पूंजीवादी दुनिया का ही एक विकल्प ढूढ़ने की कोशिश करती है। पूँजीवादी दुनिया की पहचान एकाधिकारवादी और शोषणकारी बाजार व्यवस्था से होती है जिसमें कुछ लोगों के हाथों में ही पूँजी और ताक़त इकट्ठी होती जाती है और ज़्यादातर लोग गरीबी और अभावों में पिसते रहते हैं। भारत में खेती का क्षेत्र किसानों की बड़ी आबादी और अधिकांश ग्रामीण जनता के लिए पर्याप्त आजीविका उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं हैं। यह किताब सहयोग, सहकार और कामगार लोगों के साझा आर्थिक आधार की ताक़त की बात करती है,विशेषकर खेतिहर मजदूरों और छोटे किसानों की जिनके भीतर इस पूरी व्यवस्था को बदल डालने की क्रांतिकारी क्षमता मौज़ूद है। खेती के क्षेत्र में इनपुट-आउटपुट के तमाम सूत्रों पर फिलहाल कॉरपोरेट और खेती का व्यवसाय करने वाली कम्पनियों का कब्ज़ा है जिसे आंदोलन के ज़रिए कोऑपरेटिव और श्रमिकों के समूहों के लिए आरक्षित किया जा सकता है। इस तरह से भूमिहीन मजदूर और छोटे किसान शोषणकारी और दमनकारी व्यवस्था से मुक्त हो सकते हैं।
जया मेहता ने कॉमरेड ए बी बर्धन और एस पी शुक्ला के अनुभवी मार्गदर्शन को याद किया, जिन्होंने इस काम को करने के लिए प्रेरणा और सक्रिय सहयोग दिया। उन्होंने डॉ एस राधा (केरल) के कठिन परिश्रम और संदीप चाचरा के समय पर उपलब्ध करवाए गए सहयोग को भी रेखांकित किया।
उन्होंने कहा कि यह किताब केरल की उन महिलाओं की क्रांतिकारी क्षमता को सलाम करती है जो अभावों और गरीबी में रह रही थीं और जिन्होंने सामूहिकता के ज़रिए अपने जीवनदर्शन और सामर्थ्य का विस्तार किया। समाज के अभावग्रस्त तबके किस तरह एक राजनीतिक प्रक्रिया के भीतर भी प्रभावशाली हस्तक्षेप कर सकते हैं कुडम्बश्री कि साझा खेती में जुटी महिलाएँ इसका एक जीवन्त उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जोशी-अधिकारी इंस्टिट्यूट के निदेशक डॉ अजय पटनायक ने कहा कि भारत में खेती में हो रहे लोगों के हाशियाकरण की समस्या को जनभागीदारी वाले कोआपरेटिव मॉडल से सुलझाया जा सकता है। साझा उत्पादन करने वाले समूहों को अगर एक व्यापक मंच पर मिलाया जा सके तो वे खेती के कॉरपोरेटीकरण के खिलाफ बड़ी राजनीतिक चुनौती पेश कर सकते हैं।
किताब के सहलेखक और जोशी-अधिकारी इंस्टिट्यूट के समन्वयक विनीत तिवारी ने पेरू के क्रांतिकारी कवि सीज़र वलेयो की कविता का पाठ किया जिससे यह पुस्तक समाप्त होती है।
अंत में पुस्तक के प्रकाशक आकर बुक्स के संस्थापक के.के. सक्सेना ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया।
कार्यक्रम में कॉमरेड अमरजीत कौर, कॉमरेड पल्लब सेनगुप्ता, प्रो. नंदिनी सुन्दर, डॉ सईदा हमीद, डॉ सुबोध मालाकार, कॉमरेड सुचरिता, कॉमरेड बिरजु नायक, रंजिनी, नादिया, राजीव कुमार, दयामणि बारला, श्वेता, रमेश, कोनिनिका रे, सारिका श्रीवास्तव, प्रमोद बागड़ी, विवेक शर्मा, अशोक राव, विमल कुमार, विभूतिनारायण राय, विजयप्रताप, अभिषेक श्रीवास्तव, नित्यानन्द गायेन, कॉमरेड धीरेंद्र शर्मा, विनोद कोष्टी, प्रोफ़ेसर लता सिंह, आशिमा रॉयचौधरी, जोसेफ़ मथाई एवं अनेक अन्य अकादमिक विद्वानों, आंदोलनकारियों, राजनेताओं, शोधार्थियों और पत्रकारों ने महत्त्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज की। अनेक लोगों ने इसे ज़ूम एवं फेसबुक लाइव पर भी देखा।