क्या आप जानते हैं कि जब से कोविड महामारी (covid pandemic) शुरू हुई है तब से एक सप्ताह में सबसे अधिक नए संक्रमण, 2022 नव वर्ष के पहले हफ़्ते में रिपोर्ट हुए? यह बहुत चिंता की बात है क्योंकि महामारी को दो साल से ऊपर हो गए हैं, और सरकार एवं हम सब को भलीभाँति ज्ञात है कि कोरोना से संक्रमित होने से कैसे बचा जाए। कोरोना वायरस का पक्का इलाज (sure cure for corona virus) अभी न हो पर संक्रमण के बचाव के तरीक़े तो प्रमाणित हैं।
महामारी के बीते दो सालों में, विश्व में 31 करोड़ से अधिक लोग संक्रमित हुए और 55 लाख से अधिक मृत। कोविड संक्रमण और मौत की असली संख्या (real number of covid infections and deaths) तो इन आँकड़े से कहीं ज़्यादा होगी। सोचने की बात यह है कि इनमें से अधिकांश संक्रमण से बचाव मुमकिन था, अतः असामयिक मृत्यु भी टल सकती थी।
कोरोना वायरस सिर्फ़ जीवित कोशिका में ही अपनी संख्या वृद्धि करता है। यदि सरकारों ने यह मुमकिन किया होता कि हर इंसान उचित मास्क सही तरीक़े से पहन सके, भौतिक दूरी रख सके, साफ़-सफ़ाई रख सके, यदि लक्षण हों तो बिना विलम्ब सबको सही जाँच-इलाज मिले, तो कोरोना वायरस के फैलाव (spread of corona virus) में निश्चित तौर पर गिरावट आती। जिन सह-रोग और सह-संक्रमण से कोरोना का ख़तरा (danger of corona) अत्यधिक बढ़ता है, यदि सरकारों ने रोग-बचाव पर ज़ोर दिया होता तो लोग रोग और कोरोना दोनों से बचते। जो लोग इन सह-संक्रमण और सह-रोग से ग्रसित
उदाहरण के तौर पर, लॉकडाउन में शराब-तम्बाकू की दुकान सबसे पहले खुलने वाली दुकानों में रहीं। वैज्ञानिक पुख़्ता प्रमाण हैं कि तम्बाकू और शराब सेवन से जानलेवा रोगों का ख़तरा बढ़ता है और यह वही सह-रोग और सह-संक्रमण हैं जिनसे कोरोना का ख़तरा भी बढ़ता है। मधुमेह, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, कैन्सर, टीबी आदि।
प्रथम यह लक्ष्य होना ही चाहिए कि संक्रमण दर शून्य कैसे हो। जो लोग संक्रमित हैं उन तक सामाजिक सुरक्षा के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवा कैसे पहुँचे, और जो लोग अभी संक्रमित नहीं हैं वह सामाजिक सुरक्षा कवच के चलते संक्रमित न हों।
परंतु यदि हम महामारी के दो साल में हर सप्ताह जारी, विश्व स्वास्थ्य संगठन के साप्ताहिक वैज्ञानिक अप्डेट (World Health Organization weekly scientific updates) पढ़ें, तो पाएँगे कि संक्रमण दर शून्य तो दूर, शून्य के आसपास भी कभी नहीं हुआ। कुछ भौगोलिक क्षेत्र में कभी कम तो कभी चोटी छू रहा था तो कभी पठार जैसा रहा। कुछ देश जैसे कि न्यू ज़ीलैंड और थाइलैंड आदि में 2020 में कुछ हफ़्ते-महीने शून्य संक्रमण दर भी रहा पर यह अपवाद ही माना जाए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की डॉ मारिया वैन केरखोवे ने कहा कि एक ओर जनता को अपने और अपने परिवारजनों के स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदारीपूर्ण निर्णय लेने हैं तो दूसरी ओर सरकार की भी जिम्मेदारी है कि लोगों को भरपूर हर सम्भव सहयोग और मदद मिले कि वह यह निर्णय ले पाएँ। लोग मास्क पहन सकें, भौतिक दूरी रख सकें, साफ़-सफ़ाई रख सकें, हर इंसान तक जाँच-इलाज सेवा पहुँच रही हो, आदि।
डॉ मारिया वैन केरखोवे ने ज़रूरी बात कही कि मास्क यदि सही से साफ़ हाथों से नहीं पहना जाएगा, नाक और मुँह दोनों कसके नहीं ढंकेगा, या ठुड्डी पर लटकेगा या कान से एक ओर झूलेगा, आदि, तो भले ही हमें यह ग़लतफ़हमी रहे कि हम मास्क के कारण सुरक्षित हैं पर असलियत यही है कि ऐसे नाम मात्र मास्क पहनने से हम संक्रमण से नहीं बच सकेंगे। मास्क हमें सही तरह से पहनना ज़रूरी है।
वरिष्ठ संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ ईश्वर गिलाडा ने कोविड महामारी के आरम्भ से ही, देश-व्यापी एस॰एम॰एस॰ अभियान संचालित किया जिससे 'बस अब जीता है' हैश्टैग ने भी काफ़ी बढ़ाया। दिल्ली की मेट्रो में इसी संदेश को देखने को मिलता है और अनेक जगह एसएमएस संदेश पढ़ने को मिल जाएँगे। एसएमएस यानी कि, सोशल डिस्टन्सिंग (physical distance भौतिक दूरी), मास्क और सैनिटेशन (साफ़-सफ़ाई)।
कोविड वैक्सीन लाँच (covid vaccine launch) होने के पश्चात डॉ गिलाडा की टीम ने इसको एस॰एम॰एस॰वी॰ अभियान में परिवर्तित किया और वैक्सीन का संदेश (Vaccine message) भी जनजागरूकता के लिए जोड़ा। डॉ गिलाडा ने सिटिज़न न्यूज़ सर्विस (सीएनएस) से कहा कि ऐसे अभियान व्यापक स्तर पर अत्यंत प्रभावकारी ढंग से चलाने होंगे जिससे कि जनजागरूकता के साथ-साथ लोगों तक सामाजिक सुरक्षा और सेवा भी पहुँचे जिससे कि वह स्वास्थ्य-वर्धक निर्णय अपने हित में ले सकें।
कोविड नियंत्रण में रात्रि कर्फ़्यू से कोई जन स्वास्थ्य लाभ नहीं (No public health benefit from night curfew in covid control)
डॉ केरखोवे ने कहा कि सरकारों को समझदारी से वैज्ञानिक और प्रमाणित तरीक़ों से ही अपने परिप्रेक्ष्य में सबके लिए उचित कोविड नियंत्रण कार्यक्रम संचालित करने चाहिए। महामारी की चुनौती से निबटने के लिए (To meet the challenge of pandemic) कार्यसाधकता बहुत ज़रूरी है।
There is no scientific basis for imposing night curfew in the context of covid control
पर भारत में अनेक प्रदेश सरकारों ने रात्रि कर्फ़्यू लगाया है जिसका जन स्वास्थ्य की दृष्टि से कोई लाभ नहीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रमुख वैज्ञानिक डॉ सौम्या स्वामीनाथन (Dr. Soumya Swaminathan, Chief Scientist of the World Health Organization) ने कहा कि कोविड नियंत्रण के संदर्भ में रात्रि कर्फ़्यू लगाने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। दिनभर सड़कों पर भीड़भाड़ के साथ-साथ यह भी सर्वविदित है कि दूरी बना के रखना तो दूर मास्क तक सब नहीं पहने हैं। अनेक प्रदेशों में भीड़ वाली बड़ी चुनावी रैली हुई हैं।
डॉ सौम्या स्वामीनाथन ने कहा कि सरकारों को वैज्ञानिक और प्रमाणित ढंग से कोविड नियंत्रण नीतियाँ और कार्यक्रम (COVID control policies and programs in a scientific and proven manner) संचालित करने चाहिए। एक ओर हमें कोविड संक्रमण के फैलाव पर रोक लगानी है तो दूसरी ओर कोविड से संक्रमित लोगों को अस्पताल में भर्ती न होना पड़ें, और असामयिक मृत न हों यह सुनिश्चित करना है। इसी के साथ यह भी देखना ज़रूरी है कि अर्थव्यवस्था चलती रहे, लोगों के रोज़गार प्रभावित न हों, क्योंकि लोगों ने बहुत झेल लिया है।
हलके में न लें ओमिक्रॉन कोरोना वायरस को (don't take omicron corona virus lightly)
पूर्व के कोरोना वायरस के प्रकार की तुलना में, ओमिक्रॉन कोरोना वायरस में 45 म्यूटेशन हैं जिसके कारण वह अधिक सरलता से इंसानों के कोशिकाओं को संक्रमित करता है और पनपता है। इन्हीं म्यूटेशन के कारण वह प्रतिरोधक क्षमता से बच जाता है और जो लोग पूरी खुराक टीकाकरण करवा चुके हैं या पूर्व में संक्रमित हो चुके हैं, उनकी एंटीबॉडी से बच कर यह वायरस इन्हें भी संक्रमित कर रहा है।
ओमिक्रॉन कोरोना वायरस इंसान के ऊपरी श्वास नली (upper respiratory tract) में संक्रमित हो कर पनपता है जबकि अन्य कोरोना वायरस जैसे कि डेल्टा निचले श्वास नली और फेफड़े में पनपते रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ टेड्रोस अधनोम घेबरेएसस ने कहा कि डेल्टा के मुक़ाबले ओमिक्रॉन कोरोना वायरस कम गम्भीर लगता है परंतु उसको “माइल्ड” या मामूली या हल्का समझना सही नहीं होगा। ओमिक्रॉन कोरोना वायरस के कारण भी लोग अस्पताल में गम्भीर रूप से बीमार हो रहे हैं और मृत हो रहे हैं। चूँकि ओमिक्रॉन कोरोना वायरस आसानी से फैलता है इसीलिए कम समय में अधिक संख्या में लोग संक्रमित हो रहे हैं और स्वास्थ्य व्यवस्था पर अत्याधिक भार पड़ रहा है।
डॉ मारिया वैन केरखोवे ने कहा कि एक ओर तो अस्पताल में रोगियों की संख्या बढ़ोतरी पर है पर दूसरी ओर स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या घट रही है क्योंकि स्वास्थ्यकर्मी भी संक्रमित हो रहे हैं। इसके कारण न केवल कोविड की देखभाल प्रभावित हो रही है बल्कि अन्य रोगों के उपचार में भी समस्या आ रही है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आपातकाल चिकित्सा विभाग के निदेशक डॉ माइकल राइयन ने कहा कि दक्षिण अफ़्रीका और अमरीका में हुए शोध के अनुसार, डेल्टा की तुलना में ओमिक्रॉन से संक्रमित व्यक्ति, परिवार में अन्य सदस्यों को 10% से 60% अधिक संक्रमित कर रहा है। परंतु जो लोग पूरा टीकाकरण करवा चुके हैं उन्हें ख़तरा कम है।
डॉ राइयन ने कहा कि घर के भीतर यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि यदि हमें तबियत ठीक न लगे तो स्वयं को अन्य लोगों से दूर करें, मास्क पहनें और अन्य संक्रमण नियंत्रण अपनाएँ, ज़रूरत के अनुसार जाँच-इलाज करवाएँ।
टीकाकरण करवाने से कोविड होने पर गम्भीर परिणाम कम होंगे इसीलिए जो लोग टीकाकरण के लिए योग्य हैं वह अपना पूरा टीकाकरण करवाएँ और समय पर बूस्टर लगवाएँ। पर टीकाकरण करवाने पर भी मास्क पहनना, दूरी बना के रखना, साफ-सफ़ाई रखना, और अन्य संक्रमण नियंत्रण के सभी मुमकिन निर्देशों का पालन करना ज़रूरी है जिससे कि अंतत: शून्य संक्रमण दर का सपना साकार हो सके।
शोभा शुक्ला और बॉबी रमाकांत
(शोभा शुक्ला और बॉबी रमाकांत, सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) और आशा परिवार से जुड़े हैं।)