नई दिल्ली, 29 जून 2022 (डॉ. सीमा जावेद). जर्मनी में जी-7 शिखर सम्मेलन में पीएम नरेंद्र मोदी की मौजूदगी (PM Narendra Modi's presence at G-7 summit in Germany) ने जहां एक ओर दुनिया के पटल पर भारत की प्रासंगिकता को एक बार फिर साबित किया, वहीं प्रधानमंत्री ने इस वैश्विक मंच का भरपूर फायदा उठाते हुए दुनिया को न सिर्फ़ शांति का संदेश दिया बल्कि यह भी साफ़ किया कि जलवायु गुणवत्ता के प्रति भारत का निश्चय (India's commitment to climate quality) उसके प्रदर्शन से साफ़ झलकता है और दुनिया को उससे सीखना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने बताया कि तमाम अड़चनों के बावजूद भारत ने गैर-जीवाश्म स्रोतों पर 40 प्रतिशत ऊर्जा-निर्भरता लक्षित समय से लगभग एक साल पहले ही हासिल कर ली है। यह तब है जब दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी अकेले भारत में रहती और दुनिया में हो रहे कुल कार्बन उत्सर्जन में भारत का योगदान महज़ पाँच प्रतिशत है।
सम्मेलन के एक सत्र में उन्होंने यह भी साफ़ किया कि यह सिर्फ़ एक भ्रांति है कि गरीब देश पर्यावरण को अपेक्षाकृत अधिक नुकसान पहुँचाते हैं और दुनिया को भारत का हज़ारों सालों का इतिहास देखना चाहिए इस विचारधारा को ख़ारिज करने के लिए।
यह तो बात हुई भारत कि, मगर बात अगर इस बैठक के नतीजों की करें तो उन पर गौर करना बेहद ज़रूरी है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध इस युद्ध में यह जानकारी बेहद ज़रूरी है।
साल 2035 तक कोयले से चलने वाले बिजली क्षेत्र का डीकार्बोनाइजेशन
यह मानते हुए
रूस- यूक्रेन युद्ध को आधार बनाते हुए ऊर्जा सुरक्षा के नाम पर जर्मन चांसलर स्कोल्ज़ के नेतृत्व में नेताओं का निर्णय था कि गैस में निवेश पर चर्चा की जाए।
अपने स्वयं के ऊर्जा संकट को देखते हुए इन नेताओं ने "इस दौर में एलएनजी की बढ़ी हुई उपलब्धता की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया और स्वीकार किया कि वर्तमान संकट के जवाब में इस क्षेत्र में अस्थायी निवेश आवश्यक है।"
ध्यान रहे कि इस कदम की अस्थायी प्रकृति पर इन नेताओं ने बल तो दिया, मगर यहाँ ये याद रखना होगा कि ऐसा करना दशकों तक उत्सर्जन के स्तर को बढ़ा कर रख सकता है और जलवायु प्रतिबद्धताओं को खतरे में डाल सकता है।
तेल की कीमत पर एक कैप या रोक लगाने के लिए इटली का सुझाव सफल नहीं हुआ और तमाम नेता भी 2030 तक कोयले को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने में विफल रहे।
इस शिखर सम्मेलन ने हालांकि "2030 तक व्यापक रूप से कार्बन रहित सड़क परिवहन" और 2035 तक "पूरी तरह से या मुख्य रूप से डीकार्बोनाइज्ड बिजली क्षेत्र" के लिए सहमति बनाई।
जी7 देशों ने COP26 में दक्षिण अफ्रीका के साथ शुरू की गई साझेदारी के क्रम में भारत, इंडोनेशिया, सेनेगल और वियतनाम के साथ जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप (JETP) के लिए अपनी प्रतिबद्धता पर जोर दिया। जी7 द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है, कि "इन महत्वपूर्ण कदमों के साथ, हम इच्छुक देशों के साथ मौजूदा पहलों के साथ तालमेल बिठाने और मौजूदा समन्वय तंत्र का उपयोग करके देश के नेतृत्व वाली भागीदारी के लिए घनिष्ठ संवाद के साथ अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हैं।"
खाद्य संकट
हालांकि जी7 देशों ने वर्तमान भोजन की कमी को दूर करने के लिए एक प्रतिज्ञा तो ली, लेकिन वैश्विक खाद्य प्रणाली की खामियों से निपटने के लिए एक सामूहिक योजना बनाने से फिर भी चूक गए। यह खामियाँ इस क्षेत्र को बेहद संवेदनशील बनाती हैं।
एक बेहद सावधानीपूर्वक शब्दों में किए गए समझौते में, जी7 देश खाद्य प्रणाली में सुधार पर असहमत होने के लिए सहमति बनाई है। पर्यवेक्षकों की मानें तो यह एक चिंता का विषय है और इसके चलते एक और वैश्विक खाद्य मूल्य संकट हमारे करीब है।
अपनी प्रतिक्रिया देते हुए इतालवी जलवायु थिंक टैंक ईसीसीओ के निदेशक लुका बर्गमास्ची कहते हैं, "कागज पर तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर COP26 प्रतिबद्धता से कोई पीछे हटता नहीं दिखता है मगर असल मुद्दा होगा यह देखना कि जी-7 देश आने वाले समय में इस क्षेत्र में निवेश कैसे करते हैं।"
इसी बात पर ज़ोर देते हुए ग्लोबल सिटीजन के वाइस प्रेसिडेंट फ्रेडरिक रोडर, ने कहा, “अब जी7 नेताओं के पास दुनिया को यह दिखाने के लिए कुछ ही महीने हैं कि वे गंभीर हैं। याद रहे कि कार्रवाई शब्दों से ज्यादा मायने रखती है।"
भारत की नज़र से बोलते हुए डब्ल्यूआरआई इंडिया के एनर्जी प्रोग्राम में एसोसिएट डायरेक्टर दीपक श्रीराम कृष्णन, कहते हैं, “जी7 ने भारत के साथ जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप (JETP) के लिए बातचीत की इच्छा व्यक्त की है। ऐसे में हमें चाहिए कि हम जी 7 के आगे दबने कि जगह उनसे वो मांगें जो हमें असल में चाहिए। बाहरहाल, भारत के लिए विदेशी मदद से ज़्यादा ज़रूरी अपने संसाधनों के विकास और उनपर निर्भरता बनाना है।”