मजदूरों के बाद आदिवासियों और शरणार्थियों, पहाड़ियों का नम्बर। कोयला और खनिज प्राइवेट सेक्टर को। जल जंगल जमीन से उजाड़े जाएंगे और मारे भी जाएंगे। हम पहले भी लिख रहे थे, बोल रहे थे कि मुसलमान और पाकिस्तान को निशाना बनाकर असल एजेंडा धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के काले पर्दे में छुपाया जा रहा है।
वामपंथ ने इस कार्पोरेट हिंदुत्व के एजेंडे का कभी विरोध नहीं किया। न उन्होंने सीएए को छोड़कर नागरिकता कानून में हुए तमाम संशोधनों का विरोध किया, न मनमोहन सरकार का पिछलग्गू होने की वजह से आर्थिक सुधारों और आधार परियोजना के तहत नागरिकों के नियन्त्रण का कभी विरोध किया।
हमने दस साल तक इंटरेक्टिव उपन्यास अमेरिका से सावधान के जरिये देश को साम्राज्यवाद और पूंजी के उपनिवेश बनाने का विरोध किया। आधार और नागरिकता कानून के पास करने में वाम की भूमिका देखने से सत्तावर्ग का जाति हित और विचारधारा के पाखण्ड को देखने के बाद देश के बहुजनों से सीधे सम्वाद की जरूरत महसूस हुई।
इसलिए 2003 में साहित्य को अलविदा कहकर पत्रकारिता के कॉरपोरेट नियंत्रण को देखते हुए सीधे देश भर में जाकर देश के अमेरिकीकरण और मनुस्मृति राज के एजेंडे के विरोध के लिए में बामसेफ से जुड़ा।
2003 से 2014 तक हमने इसके खिलाफ देशभर में मोर्चा बनाने की कोशिश की। बहुजनों को अर्थव्यवस्था समझाने की कोशिश की।
नागरिकता कानून और श्रम कानूनों में संशोधन और आधार बुनियादी आर्थिक सुधार हैं, जिनके आधार पर बहुजनों और आमजनता को आजीविका, रोजगार, सम्पत्ति, शिक्षा,चिकित्सा, नागरिक और मानव अधिकारों से वंचित करने का यह पूरा तन्त्र और उसका तिलिस्म खड़ा है। बहुजन इस मनुस्मृति अश्वमेधी नरसंहार अभियान में अब हिंदुत्व की अंधी पैदल
कोरोना किसी ने नहीं फैलाई।
कोरोना सरकार ने भी नहीं फैलाई।
लेकिन सरकार कोरोना पर नियंत्रण करने के बजाय इस आपदा को कारपोरेट हिंदुत्व का एजेंडा लागू करने लगी। फरमान पर फरमान जारी हुए।
जनता को लॉकडाउन कर दिया गया।
भारत विभाजन के वक्त लोग सीमा पार से आये, दंगों के शिकार हुए और मारे गए जरूर, लेकिन अपने ही देश में घर वापसी के लिए किसी को हजारों सैकड़ों मील पैदल चलकर मौत को गले लगाना नहीं पड़ा।
20 लाख करोड़ की राहत की घोषणा हो गयी।
निकला चूँ-चूँ का मुरब्बा।
राहत नहीं उधार है, जो गरीबों को चुकाना होगा या
कर्ज में डूबकर खुदकशी करनी होगी। अमीरों को कभी चुकाने की नौबत नहीं आती। डूबते हुए बैंक सबूत हैं।
20 लाख करोड़ में से 10 लाख करोड़ की घोषणा इस पैकेज से पहले की योजनाएं हैं या खर्च किये सरकारी खर्च के आंकड़े हैं। जिनमें सूट बूट बंगला गाड़ी विदेश यात्रा विज्ञापन मीडिया पैकेज वगैरह वगैरह भी शामिल हैं हुज़ूर।
बाकी उधार हैं और कारपोरेट को जनता के बहाने देश लूटने की खुली छूट है।
नई घोषणाएं सवा तीन लाख करोड़ से ज्यादा नहीं है।
जीडीपी शून्य से नीचे।
औद्योगिक उत्पादन शून्य।
कारोबार लॉक डाउन।
कामधंधे, आजीविका लॉक डाउन।
कृषि विकास दर शून्य।
वित्तीय घाटा साढ़े पांच प्रतिशत।
राज्यों का खजाना खाली।
केंद्र और राज्यों का राजस्व भी शून्य समझिए।
ऐसे में वित्त मंत्री की घोषणाओं का मतलब और नतीजा दोनों समझ लीजिए।
बीस लाख करोड़ के पैकेज के झांसे में देश की सारी संपत्ति, सारे संसाधन देशी विदेशी पूंजी के हवाले।
जनता की न सरकार है और न देश में जनता का कुछ बचा है। सबकुछ निजी पूंजी के हवाले है।
1757 से 1857 तक देश में ईस्ट इंडिया कम्पनी का राज था।
अब हजारों लाखों कम्पनियों ने देश के एक एक इंच की इजारेदारी ले ली है।
हम जो घरों में हैं, हमें अहसास नहीं है कि हम भी देश भर में मारे जा रहे करोड़ों मजदूरों की तरह देर सवेर मारे जाएंगे और यह नरसंहार फिलहाल कोरोना के नाम है जैसा कि फिल्मों में हत्या के बाद हत्यारे बेदाग बच निकल जाते हैं उसी तरह इस नरसंहार के हत्यारों पर उंगली नहीं उठा सकते।
बलि से पहले चारा खा रही बकरियों की तरह हम खुशहाल हैं।
न्याय पालिका के हाल के फैसलों और मन्तव्यों की यही कानूनी और कारपोरेट पृष्ठ भूमि है कि देश में अब ऐसा कुछ भी नहीं है, जो कारपोरेट नहीं हैं।
हम देशभक्त नहीं, कारपोरेट भक्त हैं।
जो कारपोरेट राज विरोधी, वही हिंदुत्व विरोधी और राष्ट्रद्रोही। मीडिया आपको यही समझा रहा है और आप भी समझ रहे हैं।
कोयला और खनिज के लिए आदिवासी इलाकों में बसे आदिवासियों और शरणार्थियों तथा पहाड़ों से जंगल के लोगों को खाली कराने की जरूरत थी।
इसलिए नागरिकता कानून और तमाम कायदे कानून बदल दिए गए।
अब बेदखली से आपको कौन बचाएगा?
कोयला और खनिज की लूट का विरोध करने वाले देशद्रोही माओवादी बताकर मार दिए जाएंगे।
मूक जनता को मारने के लिए खूबसूरत धोखा। जाति, धर्म,भाषा, नस्ल और तमाम तरह के उकसावे के लिए देशभक्त मीडिया चौबीसों घण्टे सक्रिय है। आपस में लड़कर मारे जाएंगे। हत्या की कवायद से बचेंगे हत्यारे।
कुल मिलाकर
आपदा बना कारपोरेट लूट का अवसर। सब कुछ, सारे संसाधन, सारी संपत्ति कम्पनियों के हवाले।
रामराज्य में मनुस्मृति लागू।
कोरोना की आड़ में नरसंहार
कम्पनी कानून में बदलाव। कम्पनी के खिलाफ अपराध दर्ज करने के रास्ते बंद। अदालतों में मुकदमें नहीं होंगे।
कोरोना लॉकडाउन में श्रम कानून पूरी तरह खत्म।
नागरिकता कानून और आधार के जरिये जल जंगल जमीन से बेदखली। बेदखली के लिए मरने की सारी स्थितियां तैयार।
निजी कंपनियों को विदेशों में लिस्टिंग की सुविधा। देश का धन विदेश में लुटाने का इंतज़ाम।
दुर्घटनाएं संजोग नहीं। योजनाबद्ध कत्ल हैं ताकि कातिल पर कोई उंगली न उठा सकें।
मजदूर न रेल पटरी पर सोते और न पैदल भागते अगर रोज़ी रोटी छीनकर उन्हें दौड़ा-दौड़ाकर भगाने की लॉक डाउन परिस्थितियां पैदा नहीं कर दी जातीं।
विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय ऑन लाइन। गरीबों,किसानों और मजदूरों, दलितों, पिछड़ों, मुसलमानों और आदिवासी के बच्चों के लिये कोई अवसर नहीं। आरक्षण खत्म।
योजनाबद्ध नरसंहार।
पलाश विश्वास