..सुनो लड़कियों सीना पिरोना काढ़ना सीखो...
बरस चौदह तक आते-आते ब्याह..
फिर सब ऊँ स्वाहा...
बीस बरस तक दो चार बच्चे...
घोड़े पे राजकुमार वाले तुम्हारे तमाम ख़्वाब सच्चे... फिर जो होगा घरों में ही होगा...
मार कुटाई .. लात घूँसा..
वो भरें तो भरने दो खाल में भूसा.....
ठीक है सिलेण्डर,कुप्पियां मिट्टी का तेल तनिक पहुँच से दूर है...
पर इन दिनों एसिड बड़ा मशहूर है...
लगवाओ टाट के परदे.. या.. चिक..
मर्द औरत.. अलग अलग स्याला बंद करो खिच खिच...
औरतों नौकरी छोड़ो.. गुल्लको दाल के डब्बों में छुपा कर पैसा जोड़ो.. चवन्नियां अठन्निया आना...
भाई साथ चलेगा तुम्हें जहाँ जहाँ हो जाना...
चार शादियों के रिवाज.. फिर तलाक़..
नीयत बदल जाये तो.. हलाला...
तब भी चुप्प थी अब भी चुप्प है चच्ची फुफ्फो खाला...
सब्र करो लड़कियों अल्लाह पाक को दो अवाज़ें..
फिर से पहनो बुर्के पढ़ो पंच वक्ता नमाज़े...
सुनो तुम मर्द के साथ है जिदंगी वरना सब ख्व़ार है...
नसीहतें मानो.. डरो.. डर कर रहो...
यह विरासतों का व्यापार है...
मेल ईगो का बुखार इसी से उतरता है..
तभी वो बेख़ौफ़ अकड़ कर खुली सड़कों पर चलता है..
करते हुए जुगाली..
बात बात पर निकालते हुए माँ बहन की गाली...
तो समाज डरता है..
तुम बस घर बैठकर इसकी ख़ैरियत की दुआंये करो..
उम्र के कुछ साल वाल बढ़ जाये सो करवा चौथ भी धरो...
क्योंकि यह मर गया तो.. तुम्हें.. . कौन पालेगा ?
ज़माना ग़लत निगाहीं से तकेगा... बुरी नज़र डालेगा... ..
मेरी ना मानो तो इतिहास में जाओ...
इतिहास में साफ़ लिखा है...
विधवाओं को कैसी प्रताणना थी कैसे घेरते थे...
देवदासियों पर.. पुरोहित.. हाथ फेरते थे...
फूल गज़रों से सजे हाथ...
वो बनारसी घाट...
कोठों पर सजी शामों में गाना बजाना...
उफ्फ तौबा कितनी होशियारी से बुना था.. इन मकड़ों ने ताना बाना.....
और तुम थीं.. कि बच निकलीं.. .
फलक तक पहुँचाने लगी उड़ाने.. एय नाज़ुक परो वाली तितली...
अब तुम्हारी ख़ुदमुख़्तारियां डराने लगी हैं..
तभी... हर तरफ़ से रेप ही रेप की अवाजें आने लगीं हैं...
मगर यह दुख स्याला..
इस मुल्क का क़ानून भी तो लड़कियों को नहीं ओटता .. .
सुनो यह मुआमले दबा देना भी राजनैतिक बिसात है...
सुप्रीम कोर्ट में भी उन्हीं मर्दों की जात है...
तो भूल जाओ कि तुम्हें कोई इंसाफ़ मिलेगा..
यह हिन्दुस्तान है...
यहाँ रेप... यूँ ही... बदस्तूर चलेगा..
लड़कियों सुनो..
अब रावण अपहरणों की ठानेंगे..
राम फिर से धोबियों.. का कहा मानेंगे..
फिर द्रोपदियों के होंगे.. पाँच पाँच.. पति..
मर गया तो... संग में.. होना पड़ेगा सती...
और फिर जब पद्मावतियों के जौहर से अँगार फूटेगा...
समय फिर से गृहलक्ष्मी का बीज मंत्र घोटेगा..
तब वो तुम्हें फिर से देवी सा पूजेंगे..
संस्कारों.. संस्कृतिओ.. में तुम्हारी जय के मंगल गीत गूँजेगे...
फिर कोई रेप शेप का चीत्कार नहीं होगा..
दमन हो जायेगा तुम्हारा.. तो फिर बलात्कार नहीं होगा...
डॉ. कविता अरोरा