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देश को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की ईमानदारी का कायल होना चाहिए। अपनी ईमानदारी में इन्होने तो स्वघोषित ईमानदारों को पीछे छोड़ दिया है। जनता को अंधेरे में रखना इनकी आदत नही है। सो घोषणा कर दी कि ‘अच्छे दिन’ लाने में भाजपा को कम-से-कम पच्चीस साल लग जाएंगे। कुछ समय पहले इन्होने घोषणा कर दी थी कि आम चुनावों में मोदी जी ने विदेशों से काला धन लाकर हर देशवासी के खाते में पंद्रह-पंद्रह लाख रुपए डालने की जो बात कही थी वह सिर्फ एक राजनीतिक ‘जुमला’ था। सही बात पचा नहीं पाते हैं सो बोल दिया कि ‘ अच्छे दिन ’ अभी नहीं आएंगे (और पच्चीस साल का मतलब है कभी नहीं आएंगे)। अब लोग इनके पीछे पड़ गए हैं और पार्टी सफाई दे रही है।

लेकिन अमित शाह ने यह सब बोल कर अपना दिल तोड़ दिया है। अपने खाते में पंद्रह हजार रुपए नहीं आएंगे, ये सुन कर झटका तो लगा था, मगर खुद को हमने समझा लिया था कि कोई बात नहीं, अपने खाते में पंद्रह हजार रुपए न सही, देश के खाते में ‘अच्छे दिन ’ तो आ रहे हैं! हम ‘ अच्छे दिनों ’ से ही काम चला लेंगे। हम सपना देखते थे कि देश में ‘अच्छे दिनों ’ की बयार बहती हमारे दरवाजे की तरफ दस्तक देने के लिए कदम बढ़ा रही है। मगर अमित शाह ने अड़ंगा लगा दिया और ‘अच्छे दिन’ औंधे मुंह गिर पड़े। अब लगता है कि ये सपना भी पूरा नहीं होगा।

अमित जी ने ये ठीक नहीं किया। लोगों ने तो आपको वोट यह मान कर दिया कि ‘अच्छे दिन’ अभी आ रहे हैं। अब आप बोल रहे हो कि

पच्चीस साल बाद आएंगे। ये तो वादा-खिलाफ़ी है। पहले ही बताना था कि साहब वोट अभी दो ‘अच्छे दिन’ बाद में लेना। तब जनता भी सोचती कि पच्चीस साल बाद आने वाले ‘ अच्छे दिनों ’ के लिए आपको गद्दी आज ही क्यों दें? अब जितने लोगों ने आपको वोट दिया उसमें से ज्यादातर तो पच्चीस साल में निपट ही जाएंगे। जो बचेंगे उनमें ‘ अच्छे दिनों ’ की आस नहीं बचेगी। ऐसे में आप पच्चीस साल बाद ‘अच्छे दिन’ ला भी दो तो भी क्या होगा। लगता है मिर्ज़ा गालिब ने आप ही के लिए लिखा था –

हमने माना, कि तग़ाफ़ुल न करोगे, लेकिन
ख़ाक हो जाएंगे हम, तुमको ख़बर होने तक”

इस प्रकरण से ‘ अच्छे दिनों ’ के बारे में हम कुछ भ्रम में पड़ गए हैं। मोदी जी बोलते हैं कि ‘अच्छे दिन’ तो आ गए। अमित शाह बोल रहे हैं पच्चीस साल में आएंगे। और पार्टी समझा रही है कि कुछ-कुछ तो आ गए हैं मगर असली वाले ‘अच्छे दिन’ पच्चीस साल में आएंगे। वो भी तब जब पार्टी पंचायत से लेकर प्रधानमंत्री पद तक सत्ता में रहे। ये अच्छी बात नहीं है। लेन-देन की शर्तें ऐसे नहीं बदली जाती हैं। पहले बोला था कि मोदी आएंगे तो ‘अच्छे दिन’ आएंगे, अब बोल रहे हैं कि हर गांव के पंच भी जब पार्टी से आएंगे तब ‘अच्छे दिन’ आएंगे! एक भी गांव छूट गया तो ‘अच्छे दिन’ फिर कन्नी काट लेंगे।

भाजपा अब ये भी कह रही है कि “बिजली, पानी और सड़क” वाले “अच्छे दिन” इसी पांच साल में आएंगे। पच्चीस साल वाले ‘अच्छे दिन’ में तो भारत विश्व गुरु बन जाएगा “जैसा वो अंग्रेजों के आने से पहले था”। हमारी राय इस पर थोड़ी अलग है। ऐसा प्रतीत होता है कि भारत ‘विश्व गुरु’ तो इसी पांच साल में बन जाएगा। हमने पूरी दुनिया को ‘योग’ तो करा ही दिया, अब ‘विश्व गुरु’ बनने में जो बाकी कसर है वो संस्कृत, भगवद्गीता और वेदों से कर देंगे। हमारा मानव संसाधन मंत्रालय इस दिशा में बहुत तेजी से काम कर रहा है। जल्दी ही दुनिया हमारे प्राचीन ज्ञान का लोहा मानने वाली है। जहां तक बिजली, पानी, सड़क, रोज़गार आदि का सवाल है, उसके लिए शायद पच्चीस साल भी कम पड़ जाएं। भाजपा को अपनी गणना की जांच कर लेनी चाहिए।

उधर कांग्रेस अमित शाह के बयान की आलोचना कर रही है। उसे आलोचना का अनुभव-सिद्ध अधिकार है। पार्टी जानती है कि जो काम आधी सदी में नहीं हुआ उसे ये पच्चीस साल में क्या ख़ाक करेंगे। वैसे भी, बिजली, पानी, सड़क, मंहगाई, बेरोजगारी आदि तो हमारे देश की शाश्वत समस्याएं हैं। इन्हे देश की नश्वर सरकारें भला कैसे दूर करेंगी। और ऐसा नहीं है कि भाजपा यह समझती नहीं है। अच्छी तरह समझती है तभी तो जनता के लिए ‘अच्छे दिन’ को पच्चीस साल के लिए टाल दिया है। बाकी रसूखदारों के लिए ‘अच्छे दिनों’ की कमी न पहले थी और न अब है। कहीं ऐसा तो नहीं कि अमित शाह ‘अच्छे दिनों’ के बारे में भी यही कहना चाहते थे कि ये बस एक राजनीतिक ‘जुमला’ था – काले धन की वापसी की तरह!

कुल मिला कर ‘जुमलों’ से ही सरकार बनी और जुमलों से ही सरकार चल रही है। जुमलों का बाज़ार खूब गर्म है – काले धन की वापसी से लेकर ‘घर वापसी’ तक, ‘अच्छे दिन’ से लेकर ‘विश्व गुरु’ बनने तक और ‘स्वच्छता अभियान’ से लेकर ‘सेल्फी अभियान’ तक!

- लोकेश मालती प्रकाश

लोकेश मालती प्रकाश, लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार व शिक्षा का अधिकार कार्यकर्ता हैं।

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