लखनऊ, 7 मई 2020: प्रदेश में सरकार द्वारा श्रम कानूनों पर तीन साल के लिए लगाई रोक (Govt banned labour laws in Uttar Pradesh for three years) औद्योगिक विकास को अवरूद्ध कर देगी और इससे निवेशक भी निवेश करने से बचेंगे। दरअसल श्रम कानूनों द्वारा श्रमिकों को मिले अधिकारों के कारण उनका विश्वास व्यवस्था में बहाल रहता था और श्रम विभाग द्वारा विवाद उत्पन्न होने पर हस्तक्षेप करने से बेहतर उत्पादन के लिए अनिवार्य शर्त औद्योगिक शांति कायम रहती थी। सरकार द्वारा कानूनों को खत्म करने से औद्योगिक विवाद बढ़ेंगे और मालिकों के लिए भी बड़ा खतरा उत्पन्न होगा। इसलिए सरकार को इस मजदूर विरोधी, उद्योग विरोधी अध्यादेश को तत्काल प्रभाव से वापस लेना चाहिए और यदि सरकार वापस नहीं लेती तो इसके खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जायेगा। यह प्रतिक्रिया वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष दिनकर कपूर ने प्रेस को जारी अपने बयान में दी।
उन्होंने इस फैसले की तीखी निंदा करते हुए कहा कि सरकार ने यहां तक कर दिया कि अब श्रमिक उत्पीड़न पर श्रम विभाग एक अदद नोटिस तक किसी मालिक को नहीं देगा और किसी कारखाने का निरीक्षण नहीं करेगा। यह श्रमिकों को मालिकों का बंधुआ मजदूर बना देना है। वैसे तो नई आर्थिक-औद्योगिक नीतियों के लागू करने के बाद से ही श्रम कानूनों को कमजोर किया जा रहा है। अब तो वह हाथी के दिखाने वाले दांत ही रह गए थे उसे भी योगी सरकार ने उखाड़ दिया।
उन्होंने प्रवासी मजदूर को रोजगार देने के नाम पर इसे लागू करने के सरकार के तर्क को प्रवासी मजदूरों के साथ
उन्होंने कहा कि निवेश आकर्षित करने और कोरोना महामारी के दौरान बंद पड़े उद्योगों को पुनर्जीवित करने का सरकार का तर्क भी सही नहीं है। सभी लोग जानते है कि पिछले पंद्रह साल से प्रदेश में रही हर सरकार ने हर साल इंवेस्टर्स समिट करके निवेश आकर्षित करने का प्रयास किया लेकिन प्रदेश में कोई नया निवेश नहीं हुआ। तीन साल बिता चुकी इस सरकार से प्रदेश की जनता जानना चाहती है कि आखिर इनके कार्यकाल में कितना निवेश हुआ। वास्तविकता तो यह है कि कई इकाइयां खराब कानून व्यवस्था के कारण प्रदेश से चली गयीं। उन्होंने कहा कि इस काले अध्यादेश के खिलाफ मजदूरों में सोशल मीडिया के जरिए मुख्यमंत्री को पत्र भेजने का अभियान चलाया जायेगा और सहमना संगठनों के साथ व्यापक मंच तैयार कर सरकार को इसे वापस लेने के लिए बाध्य किया जायेगा।