जब से भारत में लॉकडाउन को 3 मई तक के लिए बढ़ा दिया गया है (The lockdown in India has been extended till 3 May), इस घोषणा के साथ ही एक बार फिर से देश में अनिश्चितता का माहौल गर्म होता जा रहा है। जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं दिहाड़ी मजदूरों और गरीबों की भूख को समझने वालों की भीड़ में भी कमी और उनकी संवेदनशीलता में कमी आती जा रही है। क्योंकि बुद्धुजीवियों की जमात (जी हां बुद्धिजीवी नहीं, तबलीगी जमात नहीं ) कोरोना से निपटने के लिए लॉकडाउन बेहद ज़रूरी (Lockdown is very important to deal with Corona) बता रही है, इसलिए सभी को लॉकडाउन का पालन चाहे-अनचाहे करना ही होगा।
इस लॉकडाउन से गरीबों को कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है और लॉकडाउन के दौरान ऐसे गरीबों की मदद के लिए सरकार की ओर से क्या क़दम उठाए जा रहे हैं (What steps are being taken by the government to help such poor people during lockdown)? इसकी एक मिसाल सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण द्वारा ट्विटर पर दिल को झकझोर देने वाला एक वीडियो शेयर कर लॉकडाउन के चलते गरीबों की दयनीय स्थिति को दर्शाते हुए पेश की है।
इस वीडियो में गरीबी और भुखमरी से बेहाल एक शख्स सड़क पर गिरा हुआ दूध अपने हाथों से मटके में भरता नजर आ रहा है। वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि जिस दूध को वह शख्स मटके में भर रहा है, वहीं कुत्ते भी उसे चाट रहे हैं।
प्रशांत भूषण ने लिखा ट्वीट में लिखा कि इस भूखे गरीब की तरह उन लाखों लोगों के बारे में सोचें, जो कुत्तों के साथ सड़क पर फैले दूध को इकट्ठा करने की कोशिश कर रहा है।
मीडिया
ये वीडियो मनुष्यता रखने वाले किसी भी व्यक्ति के दिल को झकझोर देने के लिए काफी है। साथ ही ये वीडियो लॉकडाउन के दौरान सरकार की ओर से गरीबों के लिए किए गए व्यवस्था के दावों पर सवाल भी खड़े करता है।
ऐसे वक्त में देश के लगभग हर बड़े शहर में हजारों लोगों का भूख मिटाने के लिए फिजिकल डिस्टेंस का अनुपालन न करते हुए एक जगह एकत्रित होना बेहद ही चिंताजनक है। लेकिन अब शायद पेट की भूख ने कोरोना के डर को इन गरीब मजदूरों के दिल से निकाल दिया है। तभी भूख मौत पर हावी होती जा रही है। ये उन सरकारों की भी नाकामी है जो इन गरीबों को दो वक्त का खाना नहीं दे सकी। कुछ गैर सरकारी संगठन अपनी तरफ से हर संभव कोशिश कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ताली-थाली और दीए में लगे रहे, पर गरीबों के कोई राहत पैकेज लेकर नहीं आए। भोजन के अधिकार (Right to food) के तहत सभी मजदूरों व गरीबो को राशन मिलना चाहिए, अगर देश मेx कोई भूख से मर गया तो फिर PM care fund बनाने का उद्देश्य क्या है ?
वैसे गरीब की जान केवल भारत में ही नहीं, अपितु हर जगह ही सस्ती मानी जाती है। इसलिए जी-7, जी-20 में शुमार सभी यूरोप और अमेरिका के देश आज महामारी से बुरी तरह प्रभावित हैं। वहां भी तो निजी स्वास्थ्य सेवाओं और बीमा कंपनियों के मुनाफ़े ने आम आदमी की जान से सौदा किया है।
कोरोना ने पूरी दुनिया को कष्ट में तो अवश्य डाला है, लेकिन आत्मचिंतन और आत्मावलोकन का एक सुनहरा मौका भी दिया है ताकि हम सभी अपनी ग़लतियों को सुधारें और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर दुनिया का निर्माण करें।
सभी बस कोशिश कीजिएगा कि किसी भी समाज के भाई को ये एहसास मत होने देना कि वो अपना नहीं है। क्योंकि वे भिखारी नहीं हैं। अपने ही भाई-बहन हैं। वो काम करके और स्वाभिमान के साथ पैसा कमाने के लिए गॉवों से बाहर आए। खुद्दार व्यक्तियों को हमेशा ही दान लेने में शर्म महसूस होती है।
मैंने व्यक्तिगत रूप से यहाँ पर मदद करते हुए महसूस किया वो ग्लानि से भरे हुए बोल पड़ते हैं कि आज मांग के खाने में आत्महत्या करने का मन हो रहा है। जब अमीर दानकर्ता पके हुए चावल, दो रोटी वितरित करने के लिए आए और तो मेरे परिवार के साथ अनगिनत तस्वीर लीं।
अतः मैं आपसे तथा आपके माध्यम से विनम्र निवेदन करना चाहता हूँ कि मदद करते हुए उनके परिवार की फ़ोटो कदापि ना लें वो परिस्थितियों से घायल हैं भिखारी नहीं ।???
अमित सिंह शिवभक्त नंदी
As the lockdown is extended till May 3, think of the millions of people like this poor starving man competing with dogs to collect spilt milk from the streets! https://t.co/lYvyFSXt75
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) April 14, 2020