अपन तो कहेंगे | बेबाक विचार
विपदा-विध्वंस व युद्ध के वक्त ही मालूम होता है कि कौन सच्चा है, कौन झूठा? कौन योद्धा है व कौन कायर? कौन देवता है और कौन शैतान! पृथ्वी के पौने आठ अरब लोगों का आज वह मुकाम है, जो कोविड-19 का संक्रमण पिछले सौ-दो सौ सालों के समुद्र मंथन का अमृत कलश बनवाएगा। मेरे इस निष्कर्ष को नोट करके रखें कि अमेरिका का देव नेतृत्व और शि्द्दत से खिलेगा। शैतानों याकि दानवी चीन के खेमे के तमाम नेता अपने को मूर्ख व यमराज प्रमाणित करेंगे। पश्चिमी सभ्यता आज भले अस्पताल में लेटी दिख रही हो लेकिन यह स्थिति समुद्र मंथन का प्रारंभिक विष पीने वाले नीलकंठ जैसी है। इसी से अंत में धन्वंतरी का विज्ञान-सत्य का अमृत कलश लिए यूरोप-अमेरिका होंगे।
मैं कितनी बड़ी बात लिख दे रहा हूं! इसलिए क्योंकि जीवन-मरण की संकट घड़ी में आज पल-पल देखने-सुनने-समझने की दस तरह की स्क्रीनें प्राप्त है। राक्षस, शैतान, तानाशाह, मूर्खों की दानवी फौज और उनके चेहरे मनुष्य को भले वायरस के जबड़े में धकेल दे रहे हों लेकिन समझदार, सत्यवादी, वैज्ञानिकों, लोकतंत्रवादियों, देवसभाओं का याकि यूरोप, अमेरिका का नेतृत्व भी बचाने के लिए पृथ्वी को प्राप्त है।
भले आप मेरी इस बात से सहमत न हों लेकिन वक्त बताएगा कि देवता वहीं है जो समुद्र मंथन से घबराता नहीं, जो पहले विष पीता है और फिर धन्वंतरी के रूप में कलश, वैक्सीन लिए दुनिया की जीव रक्षा करता है। दैत्य प्रतिनिधि राष्ट्रपति शी जिनफिंग और चीन ने जहर बनाया, फैलाया और वह शैतान की बेशर्मी के साथ दुनिया का राहु-केतु बन अपनी समृद्धि आता भले मान रहा हो लेकिन दुनिया उससे अपनी तरह से निपटेगी। अमेरिका-यूरोप जिस फुर्ती, चुस्ती, टेस्टिंग के साथ कोरोना के जहर का वैज्ञानिकता, सत्यता, शोध, समझदारी और
मैं भटक गया हूं। अमेरिका को सलाम करना था और समुद्र मंथन में पौने आठ अरब पृथ्वीवासियों के देव-दानव संर्घष को घुसेड़ दिया। मगर अपनी जगह हकीकत तो है ही कि मानव सभ्यता की पूरी दास्तां देवता और शैतान, सत्य और झूठ, ज्ञान और अज्ञान, साइंस और अंधविश्वास, समझदार और मूर्ख, देव और दैत्य, युधिष्ठर और दुर्योधन, राम और रावण की कथा अनंता है।
कोविड-19 हर पैमाने में मानव सभ्यता का सबसे बड़ा विश्वयुद्ध, महाभारत, समुद्र मंथन प्रमाणित होने वाला है।
पूरी पृथ्वी में, पृथ्वी के देशों में, देशों के भीतर, आर्थिकी में, समाज में, जीवन व्यवहार-जीवन जीने के तरीके, धर्म-आस्था, शक्ति संतुलन, वर्ग-वर्ण-शासन आदि तमाम व्यवस्थाओं पर यह विश्व युद्ध वह असर करेगा, जिसकी कल्पना अभी नहीं हो सकती।
अहो भाग्य, गनीमत जो वायरस की लड़ाई के आगे देव नेतृत्व अमेरिका (पश्चिमी सभ्यता याकि लोकतांत्रिक यूरोप को इस समुद्र मंथन में उसका हिस्सा मानें) का है।
अमेरिका में ही सबसे ज्यादा संक्रमित हैं और सर्वाधिक मौतें हैं तो वहीं पर सर्वाधिक विचार है, सत्यशोध है। वहां तंत्र और तंत्र की संस्थाएं, प्रेस-मीडिया-अदालत-बेबाकी-ईमानदारी-सत्यता से काम कर रही हैं। नेतृत्व को जांचा जा रहा है। रिसर्च-शोध हो रहा है। सत्य-विज्ञान की वहा कठोर तपस्या है।
वहां वायरस को मारने के लिए आधुनिक चिकित्सा-व्यवस्था कौशल को पूरी तरह झोंक दिया गया है तो वे सभी भी वहां दिन-रात एक किए हुए हैं जो अपने-अपने दायित्वों की प्रामाणिक कसम में जीवन जीते हैं।
अमेरिका को क्यों सलाम?
इसलिए कि हर व्यक्ति, हर काउंटी (गांव-पंचायत), हर प्रोफेशनल, आर्थिकी-धर्म-समाज, व्यवस्था का हर अंग वायरस के तांडव का जिंदादिली व बहादुरी से सामना कर रहा है। युद्ध के समय, मौत के सूतक के वक्त जिंदादिली-बहादुरी का क्या मतलब है? इसके जवाब में जान ले कि वहा गवर्नर को, राष्ट्रपति को जनता से यह बताने में डर नहीं है कि तैयार रहो लाखों-करोड़ों लोग संक्रमित होंगे! मरने का इतना अनुमान है जबकि हमारे पास अस्पताल नहीं हैं। टेस्टिंग, बिस्तर, पीपीई, वेंटिलेटर पर्याप्त नहीं हैं।जाहिर है लड़ाई लड़ते हुए न सच्चाई छुपाना है और न झूठ बोलना है। और झूठ बोला गया तो गवर्नर का झूठ भी पकड़ा जाएगा व राष्ट्रपति का भी पकड़ा जाएगा ताकि जनता, चिकित्साकर्मियों, व्यवस्थापकों को युद्ध मैदान की खंदकों में रहते हुए सच्चाई पता रहे कि सामने दुश्मन कितना मारक है और उन्हें अपने साधनों के साथ कैसे लड़ाई लड़नी है।
दुनिया देख-जान रही है कि अमेरिका, यूरोप के देश महायुद्ध में बरबाद होते हुए भी वायरस के ग्राफ को सपाट बना दे रहे हैं।
न्यूयार्क का गवर्नर कुओमो हो या इटली का प्रधानमंत्री, सब अपनी बेबाकी में संघीय सरकार याकि डोनाल्ड ट्रंप और यूरोपीय संघ के ब्रसेल्स मुख्यालय को समग्रता में फैसले करने, साधन-पैकेज देने को मजबूर कर दे रहे हैं। जंग के बीच लोकतंत्र की ज्वाला को और अधिक तेज बना कर वहा लड़ाई लड़ी जा रही है। डोनाल्ड ट्रंप को रोजाना प्रेस कांफ्रेंस करनी होती है तो न्यूयॉर्क, कैलिफोर्नियों के गवर्नर हों या शहरों के मेयर या काउंटी (पंचायत) प्रमुख सब लगातार जनता-मीडिया के जवाबतलब में सत्यता से हकीकत बताने की जिंदादिली लिए हुए हैं! यहीं अमेरिका, पश्चिमी सभ्यता के लोकतांत्रिक देशों की वह ताकत है, जो चीन के वायरस की शैतानी दैत्यता में असंख्य मौत के बाद भी इन्हें वैसे ही टॉप पर रखेगी, जैसे दूसरे महायुद्ध के बाद हुआ था। अमेरिका-यूरोप ज्यादा ताकतवर बन कर, चिकित्सा-विज्ञान का नया अमृत कलश बनाए बतौर मानव रक्षक उभरेंगे।
भला क्यों?
सीधी-सामान्य बात है! कलश अमृतमय तभी हो सकता है जब सत्य, बुद्धि, ज्ञान-विज्ञान का रस, अमृत लिए हुए हो! तभी मैं डोनाल्ड ट्रंप को सलामी लायक इसलिए मान रहा हूं क्योंकि मूर्खता-झूठ में भी वे जिंदादिल हैं! अमेरिका के अमृत रस याकि लोकतंत्र का वे जिंदादिली से निर्वहन कर रहे हैं। वे रोज प्रेस कांफ्रेंस करते हैं। पत्रकारों को सवाल-जवाब के बीच कोसते हैं, उन्हें झूठा करार देते हैं लेकिन न पत्रकार डरते हैं और न ट्रंप मुंह चुराते हैं। मतलब कोविड-19 की महाजंग के बीच यह और शिद्दत से जाहिर हो रहा है कि क्या गजब है अमेरिकी लोकतंत्र! सचमुच अमेरिकी लोकतंत्र के सामने भारत का लोकतंत्र उसके सौवें हिस्से का छटांग भी नहीं है।
जान लें राष्ट्रपति ट्रंप ने भी जनवरी-फरवरी में अमेरिकी लोगों को झूठ परोसा कि अप्रैल में गर्मी आ जाएगी तो वायरस मर जाएगा। या यह बात कहना कि पचास, सौ, हजार लोगों का संक्रमण भला कोई महामारी है। ग्रेट नेशन, ग्रेट पीपुल, ग्रेट राष्ट्रपति और उसके आगे वायरस किस चिड़िया का नाम!
पर अमेरिकी गवर्नरों, मेयरों ने राष्ट्रपति को नहीं सुना। मीडिया और प्रदेश सरकारों ने राष्ट्रपति के झूठ के छेद की हकीकत जनता को बताई और ट्रंप के बिलबिलाने, विरोध के बावजूद न्यूयॉर्क, कैलिफोर्निया आदि के गर्वनरों ने लॉकडाउन घोषित करके अपने यहा आर्थिकी पर ताले लगा वायरस से लड़ने में अपने को झोंक दिया।
फिर अमेरिका के लोकतंत्र की और वाह जो ट्रंप ने भी वक्त के संकट को गंभीरता से ले लिया। क्या गजब बात है कि जिस वैज्ञानिक डॉ. फोची को वे रोजाना अपने साथ प्रेस कांफ्रेस में खड़ा करके मीडिया को जवाब देते हैं वही वैज्ञानिक डाक्टर ट्रंप की मौजूदगी में ही वैज्ञानिक आधार पर उनकी कही बात, सोच से असहमति जतलाता है बावजूद इसके ट्रंप ने उन्हें अभी भी अपने साथ रखा हुआ है।
एक ओर उदाहरण।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने सिलसिलेवार प्रमाण सहित छापा कि ट्रंप प्रशासन में, व्हाइट हाउस के लोगों ने ही नोट, मेमो आदि से राष्ट्रपति को महामारी की भयावहता से आगाह किया था बावजूद इसके ट्रंप ने लापरवाही बरती, लॉकडाउन की बात नहीं मानी। लेकिन ट्रंप ने न्यूयॉर्क टाइम्स के रिपोर्टर की व्हाइट हाउस में उपस्थिति बंद नहीं की। ट्रंप ने अमेरिका के मीडिया, न्यूयॉर्क टाइम्स, सीएनएन, वाशिंगटन पोस्ट को झूठा, फेक बताने वाले असंख्य ट्विट किए होंगे, वे मीडिया खिलाफ कई तरह के जुमले लगातार बोलते हैं लेकिन मजाल जो विचार हुआ हो कि कैसे प्रेस को, विरोध में बोलने वाले पत्रकारों को देश की एकता, विपदा के वक्त सबकी एकजुटता जैसे जुमलेबाजी में मौन कराएं, जेल में डालें या उनके खिलाफ अपने लंगूरों, अपने समर्थक मीडिया से नैरेटिव बनवाएं!
इस बात को मैं कई बार लिख चुका हूं कि डोनाल्ड ट्रंप के राज से और साबित हुआ है कि क्या गजब है अमेरिका का लोकतंत्र! चट्टान की तरह पुख्ता और संविधान-व्यवस्था ने कोई सवा दो सौ साल से किस मजबूती से यह सुनिश्चित किया हुआ है कि यदि देश में कभी कोई राष्ट्रपति झूठ-मूर्खता-अहंकार की सुनामी ले भी आए तो लोकतंत्र की चट्टान उखड़ न पाए।
सोमवार को ट्रंप ने कहा मैं आर्थिकी को लॉकडाउन से बाहर निकालने का फैसला लूंगा। मैं और मेरी संघीय सरकार को अधिकार है कि राज्यों को क्या करना है! और जानते हैं जवाब में न्यूयार्क के गवर्नर कुओमो ने क्या कहा? उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा- संकट के इस समय में राष्ट्रपति से लड़ाई में एंगेंज नहीं होना चाहूंगा। हम मिल कर लड़ाई लड़ रहे है लेकिन संविधान ने राष्ट्रपति बनवा रखा है न कि किंग, और यह तथ्य तो बोलना होगा। राज्य तय करेंगे कि कब क्या होना है!
तब फिर मंगलवार को ट्रंप ने संशोधन कर कहा कि वे राज्यों के लिए गाइडलाइन जारी करने वाले हैं। ट्रंप एक मई से अमेरिका के आर्थिक चक्के चालू करवाने के मूड में हैं लेकिन उनकी चलेगी नहीं। वहीं होगा जो प्रदेश का गवर्नर, शहर का मेयर वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों, रिसर्चरों, चिकित्साकर्मियों आदि के मॉडल-सलाह में विचार करके फैसले से होगा। सो, अमेरिका में आने वाले महीने और मजेदार होंगे। लोकतंत्र वहा भव्य इंद्रधनुषी रूप लिए हुए होगा।
कोविड-19 अमेरिका को न केवल रिइनवेंट करेगा, बल्कि अपने लोकतंत्र से वह नया अमृत रस भी प्राप्त किए हुए होगा।
हरि शंकर व्यास
Hari Shankar Vyas
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार ‘नया इंडिया’ के संपादक हैं। उनका यह संपादकीय नया इंडिया में प्रकाशित हुआ है, वहीं से साभार )