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मैं जिस तरह के लोगों के साथ उठता बैठता हूं, उनमें से ज्यादातर लोगों की धारणा इस आधुनिक युग (Modern age) में भी यही बनी हुई है कि कुछ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उम्र से संबंधित हैं और इसीलिए किसी भी परीक्षण से गुजरने की जरूरत अभी तक नहीं हुई है. ‘जैसे आर्थोपेडिक समस्याओं (orthopedic problems) को अक्सर बुढ़ापे की समस्या (old age problem) के रूप में ही देखा जाता है, लेकिन जिस तरह की जीवनशैली (lifestyle) हम जी रहे हैं, उनमें गतिहीन जीवनशैली (sedentary lifestyle), लंबे समय तक बैठने (long sitting), खराब आहार (poor diet), अत्यधिक तनाव (excessive stress), कई लोगों में गर्भाशय ग्रीवा की समस्याओं (cervical problems), पीठ के निचले हिस्से में दर्द (lower back pain) और अन्य संधिशोथ स्थितियों का निदान किया जा सकता है. दरअसल, 25 से 32 आयु वर्ग के युवाओं के बीच इस तरह की बीमारी कुछ ज्यादा प्रतिशत के साथ दिन-ब-दिन बढ़ रही है.’

Health: Break myths, consult doctors, get rid of myths, give proper testers

3 एच केयर डॉट इन, नई दिल्ली की फाउंडर एंड सीईओ डॉ. रुचि गुप्ता से जब इस बारे में बात की गई तो उन्होंने कई मिथकों के बारे में बताया और अन्य जानकारियां दीं।

उन्होंने कहा कि ‘25 - से 35 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों में एक गलत धारणा है कि इस आयु वर्ग में मधुमेह (diabetes), थायराइड (thyroid), कोलेस्ट्रॉल (cholesterol) आदि नहीं दिखती हैं. लेकिन सभी परीक्षणों का संचालन करने पर पता चला कि उनके द्वारा दिये गये तर्क पूरी तरह से अस्वीकार्य हैं.’

डॉ. गुप्ता ने तर्क देते हुए कहा,

‘कुछ चीजें ऐसी भी होती हैं, जो प्रारंभिक अवस्था में होने के कारण कोई लक्षण नहीं दिखा पाती हैं, लेकिन

यदि आप केवल निदान के लिए जाते हैं, जब लक्षण प्रमुख होते हैं, तो समय बर्बाद होने के कारण उपचार के दौरान समय पर निदान को रोक दिया जाता है. ऐसी स्थिति में क्लिनिकली देखभाल फायदेमंद है और इसीलिए सभी को लगातार चेकअप के लिए डॉक्टर के पास नियमित रूप से जाना चाहिए, क्योंकि हमें नहीं पता होता है कि हमारे शरीर में कौन सी बीमारी छुपी हुई है यह अनिवार्य नहीं है कि यदि आप दुबले हैं, तो आपका कोलेस्ट्रॉल का स्तर सामान्य ही होगा.’

डॉ. रुचि गुप्ता ने जिन मिथकों पर बात की उन्हें बिन्दुबार समझते हैं। -

मिथक - कुछ लोगों का मानना यही है कि रक्त परीक्षण अस्वास्थ्यकर लोगों के लिए है और उन्हें रक्त परीक्षण की आवश्यकता नहीं है. इसका कुछ भी मतलब नहीं है और यह परीक्षण गलत हैं.

तथ्य - कुछ चीजें ऐसी भी हैं, जो प्रारंभिक अवस्था में होते हुए कोई लक्षण नहीं दिखा सकती हैं और यदि आप निदान के लिए जाते हैं, तो ही लक्षण प्रमुख हैं. बार-बार चेकअप शरीर के व्यवहार और उसका सही तरह से देखभाल कैसे करें, इसकी जानकारी देता है. इस तरह के मिथक वाले कई लोग खून की जांच करवाते हैं. परिणाम स्वास्थ्य में कमी का संकेत देते हैं. परिणामों की सटीकता के बारे में, कई लोग मानते हैं कि परिणाम सही नहीं हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी जीवनशैली या आहार के बारे में सोचना कुछ भी गलत नहीं है. लेकिन तथ्य यह है कि ये रक्त परीक्षण सटीक रूप से क्लिनिकल बीमारी को दर्शाता है और साथ ही इस बात का भी संकेत देता है कि आपका स्वास्थ्य परीक्षण अवधि में कहां चल रहा है. निवारक कारणों से स्वास्थ्य की निगरानी के लिए नियमित परीक्षण एक बहुत प्रभावी उपकरण हो सकता है.

मिथक -ऐसा माना है कि कुछ बीमारी या स्थिति जैसे मधुमेह, थायराइड या कोलेस्ट्रॉल बुजुर्गों के लिए हैं.

तथ्य - 25 से 35 वर्ष की आयु के लोगों में यह गलत धारणा है कि इस आयु वर्ग में भी मधुमेह, थायराइड, कोलेस्ट्रॉल सामान्य नहीं हैं. लेकिन परीक्षणों का संचालन करने पर पता चला कि सभी स्तर असामान्य थे. जीवनशैली में परिवर्तन जैसे गतिहीन जीवनशैली, खराब आहार सेवन, ऑफिस में अधिक तनाव आदि के साथ, लोग बीमारियों के प्रति कम प्रतिरक्षा बन गए हैं, उम्र के कारक के बावजूद, यहां तक कि युवा पीढ़ी ने भी ऐसी स्थितियों को प्राप्त करना शुरू कर दिया है.

मिथक -सामान्य परिणामों के लिए मधुमेह की जांच से एक रात पहले चीनी न खाएं.

तथ्य - मधुमेह एक धीरे-धीरे विकसित होने वाली प्रक्रिया है और सच तो यही है कि इसका रक्त शर्करा के स्तर में वृद्धि के साथ कोई लेना-देना नहीं है. यदि आप परीक्षण से पहले मीठे का सेवन करते हैं, ऐसे में परीक्षण के परिणाम केवल रक्त में उच्च ग्लूकोज स्तर को इंगित करेंगे, यदि वास्तव में चीनी के स्तर में कोई गड़बड़ी है तभी. यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि मधुमेह के एक परिवार के इतिहास वाले लोगों को नियमित रूप से यह जांच होनी चाहिए, क्योंकि स्थिति खतरनाक होने का जोखिम बना रहता है. जब हालत आनुवंशिक रूप से पारित हो जाती है, तब भी यदि आप मिठाई नहीं खाते हैं तो भी रक्त शर्करा के स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. नियमित मधुमेह जांच केवल रक्त शर्करा के स्तर की प्रवृत्ति को जानने में मदद करेगी, ताकि सही देखभाल के लिए जांच की जा सके.

मिथक - कम उम्र के बच्चों को न केवल एक अच्छा आहार, बल्कि उन्हें कोई तनाव नहीं होता. उनकी जीवनशैली भी सही दिशा में होती है, इसलिए ऐसा माना जाता है कि उन बच्चों में विटामिन डी की कमी नहीं होनी चाहिए.

तथ्य - सच यही है कि विटामिन की कमी सबसे आम समस्याओं में से एक है और उम्र से संबंधित नहीं है. बता दें कि 80-90 प्रतिशत से अधिक लोगों को विटामिन डी की कमी है. इनमें 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे भी शामिल हैं. हमें यह समझना चाहिए कि ये समस्याएं उम्र से संबंधित नहीं हैं, क्योंकि यह बीमारी किसी के साथ भी हो सकती हैं. हम यह भी मानते हैं कि दूध, दही, कैल्शियम और अन्य संबंधित पूरक और खनिज आदि जैसे पर्याप्त संतुलित आहार लेने के बाद विटामिन की कमी नहीं हो सकती है. दरअसल, हम इस तथ्य को भूल जाते हैं कि विटामिन डी की कमी केवल आहार सेवन से पूरा नहीं होता है. कई कारक इसकी कमी को प्रभावित करते हैं जैसे कि रहने की शैली, आप जिस स्थान पर रहते हैं, वहां किस तरह का वातावरण है आदि. 5 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ ऐसा ही होता है, जहां मिलावटी वातावरण ऐसी कमियों का कारण बन सकता है. इस प्रकार इस तरह की कम उम्र में भी आवश्यक परीक्षण प्राप्त करना विशेश रूप से आवश्यक हो जाता है.

मिथक -सभी क्लिनिकल इमेजिंग विधियों (Clinical Imaging Methods) में विकिरण और एक्स-रे शामिल हैं जो कि इन दिनों विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं के लिए खतरनाक साबित हो रहे हैं.

तथ्य - हालांकि यह सच है कि एक्स-रे (X-ray), सीटी स्कैन (CT scan), कैथीटेराइजेशन (catheterization) और मैमोग्राफी (Mammography) जैसे कुछ इमेजिंग तरीकों में विकिरण शामिल है, लेकिन सच तो यही है कि अल्ट्रासाउंड और एमआरआई स्कैन जैसे अन्य तरीके विकिरण मुक्त हैं. गर्भवती महिलाओं के मामले में इस बात पर ध्यान हमें रखना होगा कि पहली तिमाही के दौरान पेट के स्कैन से उस समय गुजरना उचित नहीं होता है, जब भ्रूण के अंग विकसित हो रहे हैं, क्योंकि गर्भ में विकिरण हानिकारक हो सकते हैं. हालांकि आपातकालीन परिस्थितियों में स्कैन करके आवश्यक सावधानी बरती जा सकती है. बात यह है कि पेट को पूरी तरह से ‘लीड एप्रन’ से संरक्षित किया जाना चाहिए. वैसे, छाती का एक्स-रे स्वतंत्र रूप से किया जा सकता है.

मिथक - सभी रेडियोलॉजिक डायग्नोसिस (Radiological Diagnosis) में रेडिएशन (Radiation) होते हैं और इसीलिए स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं.

तथ्य - सभी रेडियोलॉजिकल मशीनें (Radiological Machines) एमआरआई और अल्ट्रासाउंड जैसे रेडिएसंस के सिद्धांत पर काम नहीं करती हैं. लेकिन इस तथ्य के कारण कि वे उन मामलों में प्रतिक्रिया देने में थोड़ा समय लगा सकते हैं, जहां तत्काल निदान की आवश्यकता होती है, प्रतिक्रिया की गति बहुत कम है. केवल ऐसे मामलों में अन्य उपकरण जैसे एक्स-रे का उपयोग किया जाता है. दरअसल, ऐसी स्थिति में चिकित्सक रोगी की सुरक्षा सुनिश्चित करने और अनावश्यक स्कैन से बचने या विकिरण मुक्त स्कैनिंग या कम से कम संभव खुराक के साथ सभी नियमों का पालन करता है. यहां यह भी बता दें कि रेडियोलॉजिक डायग्नोसिस (Radiological Diagnosis) एक बार तो कर ही सकते हैं, क्योंकि ऐसा करने से शरीर का कोई भी अंग प्रभावित नहीं होता.

प्रस्तुति - उमेश कुमार सिंह

नोट - यह समाचार किसी भी हालत में चिकित्सकीय परामर्श नहीं है।  आप इस समाचार के आधार पर कोई निर्णय कतई नहीं ले सकते। स्वयं डॉक्टर न बनें किसी योग्य चिकित्सक से सलाह लें।)

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