´आदि विद्रोही’ उपन्यास पढ़ते हुए आप एक ऐसी दुनिया में प्रवेश करते हैं जो देखने में प्राचीन है लेकिन सचमुच में एकदम सामयिक है। आज हम जिन सुंदर और भव्य राजमार्गों से गुजरते हैं उनके पीछे लटके मुर्दों को नहीं देखते। हमें राजमार्ग आकर्षित करते हैं, लेकिन उनके पीछे लटके मुर्दे नजर नहीं आते।
राजमार्ग बनने का अर्थ है समृद्धि का आना ! यही बात पिछली सरकार समझा रही थी और यही बात मोदी सरकार समझा रही है ! लेकिन समृद्धि आकर नहीं दी !!
आम लोगों की जिन्दगी में पामाली बढ़ी है। आत्महत्या की घटनाएं बढ़ी हैं, अपराध बढ़े हैं ।विकास कहीं पर भी नजर नहीं आ रहा।
´आदि विद्रोही´ उपन्यास का रोम से कापुआ जाने वाला राजमार्ग और जगह-जगह सलीब पर लटकी गुलामों की लाशें याद करें। उनमें से ही एक लाश स्पार्टकस की भी थी। वह गुलामों का नायक था। ये गुलाम रोम की समृद्धि के सर्जक थे, लेकिन वंचित, पीड़ित और गुलाम थे।
रूपक के रूप में यह कापुआ जैसे शहर और राजमार्ग आज भी हमारे बीच में मौजूद हैं। रोम से कापुआ जाने वाले मार्ग को ऐपियन मार्ग कहते थे, इस पर छः हजार चार सौ बहत्तर लाशें टिकटियों पर झूल रही थीं। इन लाशों का जिक्र करने के बाद लेखक ने सवाल उठाया है ´इतनी ज्यादा लाशें क्यों ॽ दूसरों को नसीहत देने के लिए तो एक दो आदमियों को सज़ा दी जाती है। मगर छः हजार चार सौ बहत्तर, इतने क्यों ॽ´
लाशों और विकास के बीच यह संबंध आज भी बना हुआ है।
इस सवाल के उत्तर में हेलेना कहती है ´वे
प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी
Jagadishwar Chaturvedi जगदीश्वर चतुर्वेदी। लेखक कोलकाता विश्वविद्यालय के अवकाशप्राप्त प्रोफेसर व जवाहर लाल नेहरूविश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। वे हस्तक्षेप के सम्मानित स्तंभकार हैं। उनकी एफबी टिप्पणी।
Highways attract us, but we don't see the dead hanging behind the highways