वाराणसी 31 जनवरी 2020. राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के शहादत दिवस (Martyrdom Day of Father of the Nation Mahatma Gandhi) पर बृहस्पतिवार को मलदहिया से अंबेडकर पार्क, कचहरी तक जुलूस निकाला गया। लोग हाथों में तिरंगा झंडा और गले में संविधान की प्रस्तावना की तख्तियाँ लटकाए हुए थे। इन तख्तियों में नो एनआरसी, नो सीएए लिखा हुआ था।
जुलूस में विभिन्न संगठनों के लोग शामिल थे।
वाराणसी के पूर्व सांसद राजेश मिश्रा ने नागरिकता संशोधन अधिनियम, एनपीआर व एनसीआर का विरोध (Opposition to the Citizenship Amendment Act, NPR and NCR) करते हुए बताया कि गाँधी के हत्यारों के खिलाफ मेरी लड़ाई जिंदगी के आखिरी समय तक चलती रहेगी।
उन्होंने गाँधी को उद्धृत करते हुए कहा कि राष्ट्रपिता ने बताया है कि मैं हिंसा की शिक्षा नहीं दे सकता क्योंकि मुझे इस पर विश्वास नहीं है, मैं केवल तुम्हें यह सिखा सकता हूँ कि अपना सिर अपने जीवन की शर्त पर भी किसी के सामने झुकने मत देना।
मार्च में आए हुए लोगों को देखकर यह बात आइने की तरह साफ थी कि समाज का हर तबका बेचैन, उद्वेलित होने के साथ-साथ खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है।
जूलूस में शामिल सुप्रसिद्ध समाजवादी व पूर्व विधान परिषद सदस्य अरविंद सिंह कहते हैं कि आज की रैली का असर सर्व-समाज पर जाएगा और खासकर हिंदुओं के
इतिहासकार डॉ. मोहम्मद आरिफ बताते हैं कि जिस तरह से 1939 में हिंदू महासभा व मुस्लिम लीग ने मिलकर सिंध में सरकार बनाई और उसी समय मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान बनाने के प्रस्ताव को सिंध असेंबली में पारित किया गया, जिसके बाद से भारत में हिंदू फासीवाद व पाकिस्तान में मुस्लिम फासीवाद व आतंकवाद सिरदर्द बना हुआ है। पुनः आरएसएस ने भारत में विभाजन की राजनीति शुरू कर दी है, जिससे कार्पोरेट फासीवाद लोगों को लूटता रहे और दूसरी तरफ लोग सांप्रदायिक मुद्दों पर बँटे रहें। जिससे मंहगाई बेरोजगारी और कार्पोरेट की लूट के खिलाफ कोई जन-आंदोलन न चल सके। अंग्रेजी उपनिवेशवाद से माफी मांगने वाले व गठजोड़ करने वाले लोग अब नव-उदारवादी व साम्राज्यवादी ताकतों से गठजोड़ कर रहे हैं। यह इत्तिफाक़ ही नहीं है कि ऑक्सफोर्ड यूनियन द्वारा मोदी के ऊपर आयोजित बैठक में मोदी के समर्थन में एक पाकिस्तानी महिला ने अपना तर्क रखा।
उन्होंने कहा कि आज भी राजे-रजवाड़े व नवाबों के परस्त लोग पाकिस्तान व भारत में हिंदू व मुस्लिम सांप्रदायिकता का ज़हर घोल रहे हैं, जो एक बेहतर दुनिया के लिए खतरा है। जो लोग संविधान को नहीं मानते थे, 52 सालों तक अपने मुख्यालय पर राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया आज वे राष्ट्रवादी होने का प्रमाणपत्र बाँट रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ अपने मित्रतापूर्ण अंतरविरोधों को दरकिनार कर अंबेडकरवादी व गाँधीवादी साथ आ रहे हैं और एक नया नारा गढ़ रहे हैं। संविधान के वास्ते गाँधी व अंबेडकर के रास्ते।
राजनीतिक कार्यकर्ता हरीश मिश्रा ने कहा कि असम में एनआरसी की प्रक्रिया ने 19 लाख लोगों को राज्य-विहीन कर दिया। आश्चर्य की बात यह है कि हिंदू और मुसलमान की राजनीति करने वाले हिंदू फासीवादी लोग 19 लाख राज्य-विहीन लोगों में 13 लाख हिंदुओं को पाकर हतप्रभ हैं और इसी हताशा में नागरिकता संशोधन कानून जनता में बिना बहस के पारित कर दिया गया, जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ ने भेदभावपूर्ण कहा है और यूरोपीय संघ में इसके खिलाफ प्रस्ताव आया है। वर्तमान सरकार द्वारा चलाई जा रही पूरी प्रक्रिया सावरकर व जिन्ना के द्वि-राष्ट्रवाद के सपने को पूरा करने का एक प्रयास है और साथ ही पिछड़ी जातियों व दलितों से मुसलमान बने लोगों, असंतुष्ट प्रगतिशील नागरिकों, दलितों, आदिवासियों व पिछड़ों को पुनः शूद्र बनाने की और नए संदर्भों में मनुस्मृति को लागू करने की परिकल्पना है। ऐसे में विभिन्न जातियों, धर्मों, लिंगों के लोगों को एकजुट होकर सांप्रदायिक फासीवाद को व नव-उदारवादी लूट को पूर्ण रूप से समाप्त कर भारत के संविधान की प्रस्तावना को जमीन पर लागू करने वाली सरकार बनाना होगा और उसके लिए मित्रतापूर्ण राजनीतिक अंतरविरोधों को खत्म करना होगा और यही नव-जनवादी-पूँजीवादी बदलाव होगा।
पीवीसीएचआर के संयोजक लेनिन रघुवंशी का मानना है कि हिन्दू-मुस्लिम बाइनरी हो या संघी हिन्दू राष्ट्र का कांसेप्ट हो इन दोनों को केंद्रबिंदु बनाकर डिबेट चलाना मूर्खता है। हिन्दू धर्म कोई संगठित धर्म है भी नहीं कि हिटलर की तरह मराठी ब्राह्मण अपने उत्तर भारतीय ब्राह्मणों के साथ उत्पात मचा सकते हैं। न तो विज्ञान पीछे की तरफ मुड़ा है और न ही समाज, हालांकि लोगों ने कोशिश बहुत की है। कुछ मार काट हो जाएगी लेकिन समाज पीछे की तरफ जाने से रहा।
उन्होंने कहा कि लोगों द्वारा चितपावन ब्राह्मणों को ज्यादा समझदार समझना भी एक कामयाबी है ब्राह्मण-सवर्ण साम्राज्य की। सत्ता आ जाती है तो दुनिया भर के सिद्धांत घूमने लगते हैं। संघ की कामयाबी कुछ दशकों की नहीं है, न ही 1925 से है जैसा कि क्लेम करते हैं कुछ लोग। संघी वर्गों/वर्णों की संख्या इतनी नहीं है कि ये अपने बलबूते कुछ कर सकते थे।
रघुवंशी का मानना है कि एक प्रगतिशील की तरह विश्लेषण कीजिये कि इतने मजदूरों किसानों की लड़ाई लड़ने के बाद भी कम्युनिज्म भी अखिल भारतीय स्तर पर कामयाब नहीं, तो ये मुट्ठीभर संघी गिरोह कैसे हो जाएगा बिना राष्ट्र-राज्य की मदद से।
जुलूस में पूर्व विधायक अजय राय, अनिल श्रीवास्तव, कुँवर सुरेश सिंह, राजेश्वर पटेल, प्रजानाथ शर्मा, राघवेंद्र चौबे, विनय राय, सतीश चौबे, प्रवीण सिंह बबलू, लोक मंच के संजीव सिंह, फादर प्रकाश लुइस, फादर अनिल अलमीरा, हाजी इश्तियाक अंसारी, इदरीश अंसारी, अनूप श्रमिक, सरिता पटेल, डॉ. नूर फातमा, प्रतिमा पांडेय, सर्व सेवा संघ की सीलम झा, वरिष्ठ पत्रकार ए. के. लारी, फजलुर्रहमान अंसारी, आबिद शेख, जावेद, बाबू अली साबरी समेत हजारों लोग शामिल थे।