आजकल सोशल मीडिया पर सरकार के पक्ष में एक अपुष्ट खबर लोग खूब प्रचारित कर रहे हैं, इसके अनुसार अमेरिका अपनी लगभग एक हजार औद्योगिक इकाइयां भारत में स्थानांतरित करने पर विचार कर रहा है. इसे इस तरह प्रचारित किया जा रहा है मानो यह सरकार की एक बहुत बड़ी उपलब्धि है. इससे पहले उत्तर प्रदेश के नोएडा में जब सैमसंग नामक चर्चित कंपनी ने स्मार्टफोन की इकाई को स्थापित किया था तब प्रधानमंत्री ने भी कहा था कि अब बहुत सारी अंतर्राष्ट्रीय कम्पनियां भारत में आने वाली हैं, और इससे रोजगार के बेहतर अवसर उपलब्ध होंगे. देश में रोजगार की क्या स्थिति है, यह सरकार और उनके भक्तों को छोड़कर सबको पता है.
दरअसल, भारत में कम्पनियां इसलिए नहीं आतीं कि यहाँ बेहतर माहौल है बल्कि इसलिए आतीं हैं कि दुनिया के किसी भी बड़े देश में प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों को अपनी मर्जी से प्रदूषण फैलाने की सुविधा नहीं मिलती. हमारे देश में यह सुविधा भरपूर है और यदि कुछ हो भी जाता है, लोग मर भी जाते हैं तो सरकारें लाशों पर मुवावजा फेंक देती हैं और हत्यारी कंपनियों पर कोई आंच नहीं आने देती. ऐसी सुविधा दुनिया में कहीं नहीं है.
पहले चीन में कंपनियों की खूब आवभगत होती थी, पर अब बढ़ते प्रदूषण ने वहां की कंपनियों को भी दूसरे देश में स्थापित करने पर मजबूर कर दिया है. चीन इन दिनों अपने अधिकतर प्रदूषणकारी उद्योगों को दक्षिणी अमेरिकी देशों में या फिर अफ्रीका में स्थापित कर रहा है.
Reports of Gas leakage from LG Polymers India located in Vizag of Andhra Pradesh, people were found lying dead in the adjacent lanes and canals.
Caution- *Video may be disturbing*. pic.twitter.com/qk1apKFAjN
— @CoreenaSuares (@CoreenaSuares2) May 7, 2020
हमारे देश में औद्योगिक दुर्घटनाओं का एक लम्बा इतिहास रहा है और किसी उद्योग को आजतक दोषी नहीं ठहराया गया है. भोपाल के यूनियन कार्बाइड की घटना (Union Carbide incident in Bhopal) तो दुनिया के सबसे भयानक औद्योगिक दुर्घटना (The world's most terrible industrial accident,) के तौर पर जानी जाती है, पर हजारों जानों की बलि लेने के बाद भी यूनियन कार्बाइड की कोई जिम्मेदारी नहीं तय की गई और ना ही किसी को दंड मिला. हाँ, उद्योगों को इतना स्पष्ट हो गया कि भारत में कितनी भी दुर्घटना हो या फिर प्रदूषण हो, सरकारें उन्हें बचा ही लेंगीं और सरकारी अधिकारी रिश्वत लेकर किसी को भी बचा लेंगे, और तो और यहाँ की न्यायापालिका भी हमेशा उद्योगों का ही पक्ष समझ पाती हैं.
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तमिलनाडु के स्टरलाइट कॉपर (Sterlite Copper of Tamil Nadu) का हाल भी लोग देश चुके हैं, जिसने प्रदूषण फैलाकर लोगों को खूब प्रभावित किया, विरोध करते 13 लोगों को गोलियों से भून डाला. पर, कंपनी का कोई अधिकारी दोषी नहीं ठहराया गया. तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Tamil Nadu Pollution Control Board) ने जब इस कंपनी से फ़ैलाने वाले प्रदूषण की चर्चा की और इसे दोषी ठहराया तो केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राष्ट्रीय हरित न्यायालय ने एकजुट होकर कंपनी को सारे आरोपों से बरी कर दिया.
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विशाखापत्तनम स्थित साउथ कोरियाई कंपनी, एलजी पोलीमर्स, से गैस लीक होने की खबर (News of gas leaks from Visakhapatnam-based South Korean company, LG Polymers) भी सभी समाचार माध्यमों पर 7 अप्रैल को दिनभर दिखाई देती रही, गिरते पड़ते लोग भी दिखते रहे, राहत पैकेज की बात भी की गई और फिर मामला ओझल कर दिया गया. गैस किसी उद्योग से रिसी, यह साबित करने में कोई महीनों का समय नहीं लगता है फिर भी राहत की बात राज्य सरकार क्यों करती है यह समझ से परे है, सीधे उद्योग को ही क्यों नहीं यह राहत का काम करने के लिए बाध्य किया जाता है.
जिस रात यह घटना हुई, उसी रात छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में भी पेपर मिल से गैस रिसाव हुआ और तमिलनाडु के कडलूर में नैवेली लिग्नाईट कारपोरेशन के प्लांट में धमाका हुआ.
After the first lockdown NOC was granted to LG Polymers that it was an "essential" industry. I don't understand how a plastics manufacturing unit can be called "essential". Someone in the ruling party @YSRCParty must be responsible for this @ysjagan #VizagGasLeak
— Kesineni Nani (@kesineni_nani) May 7, 2020
इस देश में उद्योगों से सम्बंधित अधिकतर सरकारी विभागों का काम कोई नहीं है, उन्हें सिर्फ रिश्वत वसूलने का वेतन सरकार देती है. जाहिर है, न तो सरकारी अधिकारी और न ही उद्योग किसी भी दुर्घटना के लिए जिम्मेदार होते हैं. दुर्घटना होती है, एक दिन अफरातफरी मचाती है, समाचार बनता है और फिर अगले दिन से कुछ प्रभावित परिवारों को छोड़कर सबकुछ सामान्य हो जाता है. इस बीच सरकार मुवावजे का ऐलान कर देती है, जिससे लोग खुश हो जाते है और सबकुछ भूल जाते हैं.
एलजी पोलीमर्स से गैस रिसाव (Gas leak from LG Polymers) के बाद यूनियन कार्बाइड दुर्घटना को भी लोगों ने एक दिन के लिए याद किया. इन दोनों दुर्घटनाओं का पैमाना तो अलग है, प्रभाव भी अलग है, फिर भी बहुत समानताएं हैं. दोनों बहुराष्ट्रीय कम्पनियां हैं, दोनों से गैस का रिसाव देर रात में हुआ, दोनों उद्योग पहले बंद थे और फिर वापस खोलने की तैयारी कर रहे थे, दोनों उद्योगों से गैस का रिसाव द्रव से हुआ जो टैंक में रखा था.
देश में कितनी औद्योगिक दुर्घटनाएं होती हैं, इसका आंकड़ा किसी के पास नहीं है. अधिकतर दुर्घटनाओं की जानकारी भी किसी के पास नहीं होती और सम्बंधित उद्योग कर्मचारियों को डरा धमकाकर उनका मुंह बंद कर देते हैं. फिर भी सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2014 से 2016 के बीच देश में औद्योगिक दुर्घटनाओं में लगभग 54000 लोगों ने अपनी जान गवाई. पर, इस सम्बन्ध में काम करने वाले गैर-सरकारी संस्थाओं के अनुसार यह आंकड़ा बहुत कम है, वास्तविक आंकड़ा इससे 15 गुना अधिक होगा.
जाहिर है कि प्रदूषण और दुर्घटनाओं को जो देश सरकारी स्तर पर बढावा देता हो, वहां आखिर दुनिया भर से भगाए जा रहे प्रदूषणकारी उद्योग क्यों नहीं जायेंगे? हमारी सरकारें तो ऐसे उद्योगों का स्वागत करती हैं और सरकारी समर्थक इसे सरकार की जीत मानते हैं. आखिर, मरती तो जनता है जिसका कोई मोल नहीं है.
महेंद्र पाण्डेय