आपको दिन भर खाते नहीं रहना चाहिए। अगर आप तीस साल से कम उम्र के हैं, तो दिन में तीन बार खाना आपके लिए उपयुक्त होगा। अगर आप तीस से अधिक के हैं, तो उसे घटाकर दिन में दो बार करना सबसे अच्छा होगा। हमारा शरीर और दिमाग बेहतरीन रूप में तभी काम करता है, जब पेट खाली हो।
चेतन रहते हुए इस तरीके से खाएं कि ढाई घंटों के भीतर, भोजन पेट की थैली से बाहर हो जाए और बारह से अठारह घंटों में, वह पूरी तरह शरीर के बाहर हो। अगर आप यह सरल जागरुकता कायम रखें, तो आप ज्यादा ऊर्जा, फुर्ती और सजगता महसूस करेंगे।
योग में हम कहते हैं, 'भोजन के एक ग्रास को चौबीस बार चबाना चाहिए।‘ इसके पीछे काफ़ी वैज्ञानिक आधार है, मगर मुख्य रूप से उसका एक फ़ायदा यह है कि आपका भोजन पहले ही आपके मुंह में लगभग पच जाता है, वह पाचन-पूर्व स्थिति में पहुंच जाता है और आपके शरीर में सुस्ती नहीं पैदा करता। इसके अलावा, उस खाने को भी धन्यवाद देना चाहिए, क्योंकि यह आपको जीवन दे रहा है।
भोजन के एक ग्रास को चौबीस बार चबाने के लाभ
देखने में भले ही
अगर आप कुछ समय तक यह चीज करें, तो शरीर की हर कोशिका को यह पता होगा कि उसे क्या पसंद है और क्या पसंद नहीं है।
भोजन से कुछ मिनट पहले थोड़ा सा पानी पिएं या भोजन करने के तीस से चालीस मिनट बाद पानी पिएं।
सही समय के लिए सही आहार | Right diet for the right time
भारत में कब कौन सी वनस्पति उपलब्ध है और शरीर के लिए क्या उचित है, इसके मुताबिक गर्मियों में भोजन (Summer meal) एक तरीके से, बरसात में दूसरे तरीके से और सर्दियों में अलग तरीके से बनाया जाता है। इस समझदारी को अपने जीवन में शामिल करना और शरीर की जरूरत तथा मौसम और जलवायु के अनुसार खाना अच्छा होता है। उदाहरण के लिए, दिसंबर आते ही तिल और गेहूं जैसे कुछ खाद्य पदार्थ होते हैं जो शरीर में गरमी लाते हैं। सर्दियों में आम तौर पर जलवायु के ठंडा होने के कारण त्वचा खुरदरी हो जाती है। पहले लोग क्रीम या लोशन जैसी चीजों का इस्तेमाल नहीं करते थे। इसलिए हर कोई रोजाना तिल का सेवन करता था। तिल शरीर को गरम और त्वचा को साफ रखता है। अगर शरीर में काफी गरमी होगी, तो आपकी त्वचा खराब नहीं होगी। गरमियों में, शरीर गरम हो जाता है, इसलिए शरीर को ठंडक देने वाली चीजें खाई जाती थीं।
संतुलित आहार | balanced diet
आजकल डॉक्टरों का कहना है कि 8 करोड़ भारतीय मधुमेह की बीमारी की ओर बढ़ रहे हैं। इसकी एक वजह यह है कि ज्यादातर भारतीयों के आहार में एक ही अनाज शामिल होता है। लोग सिर्फ चावल या सिर्फ गेहूं खा रहे हैं। यह निश्चित तौर पर बीमारियों की वजह बन सकता है। अपने आहार में अलग-अलग अनाजों को शामिल करना बहुत अहम है। पहले लोग हमेशा ढेर सारे चने, दालें, फलियां और दूसरी चीजें खाते थे। लेकिन धीरे-धीरे वे चीजें खत्म होती गईं और आज अगर आप किसी दक्षिण भारतीय की थाली देखें, तो उसमें काफी सारा चावल और थोड़ी सी सब्जी होगी। यह एक गंभीर समस्या है।
पिछले पच्चीस से तीस सालों में लोग सिर्फ कार्बोहाइड्रेट आहार की ओर मुड़ गए हैं, जिसे बदलने की जरूरत है। सिर्फ ढेर सारा कार्बोहाइड्रेट लेने और बाकी चीजें कम मात्रा में खाने से किसी व्यक्ति की सेहत पर गंभीर असर पड़ सकता है। लोगों के दिमाग में यह बुनियादी वैचारिक बदलाव होना बहुत जरूरी है।
भोजन के बीच का अंतराल कितना हो, भोजन कब और कैसे करना चाहिए, भोजन कितने अंतराल में करना चाहिए. When and how to eat food, At what interval should the food be taken.
योग में कहा गया है कि एक भोजन कर लेने के बाद आपको आठ घंटे बाद ही दूसरा भोजन करना चाहिए। खाने के इस नियम का पालन आप तब भी कर सकते हैं, जब आप घर से बाहर हों। ये तो बात हुई योग के नियम की, लेकिन सामान्य स्थिति में भी किसी इंसान को दो भोजनों के बीच कम से कम 5 घंटे का अंतर तो रखना ही चाहिए। ऐसा क्यों कहा जा रहा है? इसलिए क्योंकि खाली पेट ही हमारा मल उत्सर्जन तंत्र अच्छे तरीके से काम कर पाता है।
खाने से पहले जरा ठहरें | भोजन कैसे करना चाहिए
मान लें आप बहुत ज्यादा भूखे हैं और खाना आपके सामने रख दिया जाए, तो क्या होता है? आप टूट पड़ते हैं उस खाने पर।
दरअसल, जब आप बहुत ज्यादा भूखे होते हैं तो आपका पूरा शरीर बस एक ही चीज चाहता है, जल्दी से जल्दी खाना। लेकिन तब आप एक पल के लिए रुकें।
खाना शुरू करने से पहले हर उस शख्स और चीज के प्रति आभार व्यक्त करें, जिसकी बदौलत यह खाना आप तक पहुंचा है। मसलन वह खेत, वह किसान, वह व्यक्ति जिसने खाना बनाया और वह भी जिसने इसे आपको परोसा।
आजकल डॉक्टरों का कहना है कि 8 करोड़ भारतीय मधुमेह की बीमारी की ओर बढ़ रहे हैं। इसकी एक वजह यह है कि ज्यादातर भारतीयों के आहार में एक ही अनाज शामिल होता है। लोग सिर्फ चावल या सिर्फ गेहूं खा रहे हैं। इसके अलावा, उस खाने को भी धन्यवाद देना चाहिए, क्योंकि यह आपको जीवन दे रहा है। देखने में भले ही यह छोटी सी बात लग रही है लेकिन यह आप पर आपके शरीर की पकड़ को ढीला कर देती है। इससे यह अहसास होता है कि आप महज एक शरीर नहीं हैं।
जब आप बहुत भूखे होते हैं तो आप महज एक शरीर होते हैं। अपने अंदर थोड़ा सा जगह बनाएं अब आपको लगेगा कि आप अब उतने भूखे नहीं हैं। भूख जहां की तहां है, आप भी वहीं हैं, पर फिर भी लगेगा मानो सब ठीकठाक है।
भोजन की कोई अच्छी आदत नहीं होती! इस बात पर ध्यान दें कि उचित खान-पान के ये सामान्य नुस्खे ज्यादातर लोगों पर लागू होते हैं मगर निश्चित तौर पर, हर किसी के शरीर की संरचना अनूठी होती है और किसी खास बीमारी से पीड़ित लोगों को आहार या भोजन की मात्रा में कोई बदलाव करने से पहले चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए।
(देशबन्धु में प्रकाशित लेख का संपादित रूप साभार)
( नोट - यह समाचार किसी भी हालत में चिकित्सकीय परामर्श नहीं है। यह समाचारों में उपलब्ध सामग्री के अध्ययन के आधार पर जागरूकता के उद्देश्य से तैयार की गई अव्यावसायिक रिपोर्ट मात्र है। आप इस समाचार के आधार पर कोई निर्णय कतई नहीं ले सकते। स्वयं डॉक्टर न बनें किसी योग्य चिकित्सक से सलाह लें।)
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